
राहुल गांधी ने पिछले साल जुलाई में लोकसभा में कहा था, ''आप लिखकर ले लो आपको विपक्षी इंडिया गठबंधन गुजरात में हराने जा रहा है.'' मौका था लोकसभा में नरेंद्र मोदी सरकार के विश्वास प्रस्ताव पर बहस का. लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में यह राहुल गांधी का संसद में पहला भाषण था. उन्होंने यही बात संसद सत्र के बाद अपने गुजरात दौरे में भी दोहराई थी. इसके बाद उन्होंने गुजरात का दो बार दौरा किया है. वो एक बार फिर गुजरात के अहमदाबाद में हैं. इस बार मौका है कांग्रेस के अधिवेशन का. कांग्रेस गुजरात की सत्ता से करीब तीन दशक से दूर है. कांग्रेस अपने इस अधिवेशन में आगे की लड़ाई और संगठन को मजबूत करने की रणनीति पर चर्चा करेगी. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस बीजेपी को गुजरात में हरा पाएगी, जिसका दावा राहुल गांधी ने संसद में किया था.
राहुल गांधी की चुनौती
राहुल ने बीजेपी को हराने का दावा तब किया था, जब कांग्रेस संसद ने तीन अंकों में सीटें जीतने से केवल एक सीट दूर रह गई थी. इससे कांग्रेस और उसके नेताओं के हौंसले बुलंद थे. लेकिन उसके बाद हुए महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा, जम्मू कश्मीर और दिल्ली के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हिस्से में कुछ खास नहीं आया है. उसे हर जगह हार मिली है. उसे कुछ सफलता झारखंड और जम्मू कश्मीर में मिली. लेकिन वहां वह जूनियर पार्टनर थी.राहुल गांधी ने सात मार्च को गुजरात का दौरा किया. इस दौरान उन्होंने कहा,''गुजरात में कांग्रेस की लीडरशिप में दो तरह के लोग हैं. उनमें बंटवारा है. एक हैं जो जनता के साथ खड़े हैं, जिनके दिल में कांग्रेस की विचारधारा है. दूसरे वे हैं, जो जनता से कटे हुए हैं, दूर बैठते हैं और उनमें से आधे बीजेपी से मिले हुए हैं. अगर हमें 10, 15, 20, 30 या 40 लोगों को भी हाटना पड़े, तो हम एक उदाहरण स्थापित करके ऐसा कर देंगे.'' राहुल के इस बयान से सनसनी फैल गई. लेकिन राहुल गुजरात की सच्चाई ही बयान कर रहे थे.

गुजरात के पिछले पांच विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन.
कई दशकों से प्रदेश की सत्ता से बाहर रहने का असर यह हुआ है कि कांग्रेस गुजरात में नेतृत्व के संकट का सामना कर रही है. उसका वहां कोई ऐसा बड़ा नेता नहीं है जिसकी पूरे प्रदेश में पहचान हो और जिसके पीछे कार्यकर्ता खड़े हैं. नेतृत्व के संकट का समाधान करने के लिए कांग्रेस ने कई कदम उठाए, जिग्नेश मेवाणी और हार्दिक पटेल जैसे नेताओं को पार्टी में शामिल किया. लेकिन इसका कोई फायदा कांग्रेस को होता हुआ नहीं दिखा. कांग्रेस ने पटेल को प्रदेश अध्यक्ष तक बनाया, लेकिन वो पार्टी में जान नहीं फूंक सके और अंतत: बीजेपी में शामिल हो गए.राहुल ने जिस समस्या की ओर इशारा किया है, उसे इस तरह समझ सकते हैं कि कांग्रेस राज्य की सत्ता से कई दशक से गायब है, लेकिन उसके नेताओं का कारोबार दिन-रात बढ़ा हुआ है, वह भी तब जब राज्य में बीजेपी की सरकार है.
गुजरात में कांग्रेस को कौन जानता है
कांग्रेस के सत्ता से बाहर होने का परिणाम यह हुआ है कि राज्य में 30 साल तक के युवाओं को यह पता नहीं है कि कांग्रेस क्या है और उसकी सरकार कैसा काम करती है. लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि गुजरात में कांग्रेस का वोट नहीं है. अगर पिछले पांच विधानसभा चुनावों की बात करें तो पातें हैं कि राज्य में करीब 30 फीसदी वोट कांग्रेस के पास है. अगर पिछले पांच चुनावों की बात करें तो कांग्रेस का सबसे बेहतर प्रदर्शन 2017 में रहा. जब कांग्रेस ने 41.44 फीसदी वोट और 182 सदस्यों वाली विधानसभा में 77 सीटें मिली थीं. कांग्रेस और बीजेपी की सीटों और वोट शेयर में क्रमश: 22 सीटों और करीब आठ फीसदी का अंतर था. इस समय राज्य में मुकाबला केवल दो ही दलों कांग्रेस और बीजेपी के बीच था. इस परिणाम ने कांग्रेस के हौसले को उड़ान दी थी कि बीजेपी को हराया जा सकता है.

गुजरात में कांग्रेस के अधिवेशन से पहले कार्य समिति की बैठक में भाग लेते नेता.
साल 2022 के चुनाव में गुजरात का मुकबला त्रिकोणीय हो गया. आम आदमी पार्टी ने इस चुनाव जोरदार उपस्थिति दर्ज कराई. इसका परिणाम यह हुआ कि 179 सीटों पर लड़ने वाली कांग्रेस केवल 17 सीटें ही जीत पाई और 41 सीटों पर तो वह जमानत भी नहीं बचा पाई. उसका वोट फीसदी 41.44 फीसदी से घटकर 27.28 फीसदी रह गया. वहीं आप ने 12.92 फीसदी वोटों के साथ पांच सीटें जीत ली थीं.उसने कांग्रेस के वोटों में ही सेंध लगाई थी. इसका परिणाम यह हुआ कि बीजेपी ने इस चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज की. उसे 52.5 फीसदी वोट और 156 सीटें मिली थीं. इस चुनाव के बाद कांग्रेस के पांच विधायक उसका साथ छोड़कर बीजेपी से हाथ मिला चुके हैं. शायद इसी समस्या की ओर राहुल गांधी ने इस साल मार्च में इशारा किया था.

कांग्रेस पिछले 30 सालों से गुजरात की सत्ता से दूर है. उसे अब तक बीजेपी को हराने का फार्मूला नहीं मिला है.
गुजरात में कांग्रेस की चुनौती
साल 2022 की करारी हार के बाद कांग्रेस को 2024 के लोकसभा चुनाव में थोड़ा हौसला मिला. जब उसने गुजरात में एक सीट पर जीत दर्ज की. वह भी तब जब उसने आप से समझौता किया.लोकसभा चुनाव में उसे 31.24 फीसदी वोट मिले. लेकिन आप के साथ उसका गठबंधन टूट चुका है. आप फिर अलग-अलग चुनाव लड़ने को तैयार है. लेकिन दिल्ली में मिली हार के बाद उसे झटका लगा है.अब 64 साल बाद गुजरात में राष्ट्रीय अधिवेशन कर कांग्रेस अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को बीजेपी से लड़ने और उसे हराने का रणनीतिक संदेश देना चाहती है.
गुजरात में अगला विधानसभा चुनाव 2027 में होना है. उसकी तैयारी कांग्रेस ने अभी से शुरू कर दी है. गुजरात में हो रहा कांग्रेस का अधिवेशन उसके उसी तैयारी का परिणाम है.नरेंद्र मोदी ने गुजरात में मुख्यमंत्री रहते हुए जो काम किए उसे बीजेपी विकास के 'गुजरात मॉडल' के रूप में पेश करती है. हर चुनाव में बीजेपी का यह मॉडल मुख्य मुद्दा होता है. लेकिन बीजेपी के 'गुजरात मॉडल' को उसे अपने ही 'यूपी मॉडल' से चुनौती मिलने लगी है. ऐसे में कांग्रेस को अब गुजरात में उम्मीद नजर आने लगी है. उसे लगने लगा है कि बीजेपी को गुजरात में हराया जा सकता है. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि राज्य में कांग्रेस का अपना संगठन हो. अपने नेता और कार्यकर्ता हों, जो लोगों से खुद को कनेक्ट कर सकें. कांग्रेस के पास अभी करीब दो साल का समय है. ऐसे में अगर वह जनता से जुड़ने वाले नेता और कार्यकर्ता तैयार कर लेती है तो बीजेपी को हराने का सपना पूरा हो सकता है. बीजेपी अभी भी गुजरात में अजेय बनी हुई है.
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