कांग्रेस (Congress) ने राजस्थान के उदयपुर में चल रहे चिंतन शिविर (Udaipur Chintan Shivir) में पार्टी के असंतुष्ट नेताओं की अहम मांग को मानते हुए बड़ा फैसला लिया है. पार्टी ने कांग्रेस संसदीय बोर्ड को गठित करने की मांग को स्वीकार कर लिया है. हालांकि इस फैसले को अमलीजामा पहनाने के लिए कांग्रेस कार्यसमिति की मंजूरी की जरूरत होगी, जो पार्टी की शीर्ष निर्णय़कारी संस्था है. इसके लिए चुनाव होगा या इसके सदस्य कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा नामित होंगे, यह मुद्दा समिति पर छोड़ दिया गया है. यह कांग्रेस के असंतुष्ट धड़े के नेताओं की अहम मांग थी औऱ संसदीय बोर्ड चुनाव समिति की जगह लेगा. यह लोकसभा और विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों का चयन करेगा. सूत्रों का कहना है कि गांधी परिवार के करीबी इस बात को लेकर अडिग थे कि कांग्रेस संसदीय बोर्ड से जुड़े प्रस्ताव को मंजूरी न मिलने पाए और इसको लेकर पार्टी के भीतर तकरार थी.
कमजोर वर्गों के लिए पार्टी पदों पर 50% कोटा आरक्षित करने की तैयारी कर रही कांग्रेस
137 साल पुरानी पार्टी के दूसरे दलों से गठबंधन के सवाल पर यह निर्णय़ किया गया है कि दूसरे दलों के साथ राज्य स्तर पर गठजोड़ किया जाए. ऐसे दलों से जो बीजेपी के साथ न जुड़े हों. हालांकि नेतृत्व के मुद्दे पर बड़ा सवाल बना हुआ है, क्योंकि राहुल गांधी ने ऐसे कोई संकेत नहीं दिए हैं कि वो पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ेंगे. यह चुनाव इसी साल के अंत में होना है. कांग्रेस ने एससी-एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों के लिए पार्टी के सभी पदों में से 50 फीसदी आऱक्षित करने की योजना भी बनाई है.
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सूत्रों ने बताया कि उदयपुर में 13-15 मई को होने जा रहे इस चिंतन शिविर में जो ‘नवसंकल्प' दस्तावेज जारी होगा, वह आगे के कदमों की घोषणा (एक्शनेबल डिक्लियरेशन) होगा जिसमें यह संदेश भी दिया जाएगा कि राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन के लिए ‘मजबूत कांग्रेस' का होना जरूरी है तथा गठबंधन से पहले कांग्रेस को मजबूत किया जाना महत्वपूर्ण है. सूत्रों ने यह भी बताया कि इस शिविर में कांग्रेस अध्यक्ष के स्तर पर बदलाव को लेकर शायद चर्चा नहीं हो क्योंकि इसके चुनाव की घोषणा पहले ही हो चुकी है.
इस चिंतन शिविर में राजनीति, सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण, अर्थव्यवस्था, संगठन, किसान एवं कृषि तथा युवाओं से जुड़े विषयों पर छह अलग-अलग समूहों में 430 नेता चर्चा करेंगे यानी हर समूह में करीब 70 नेता शामिल हैं. कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि तीन दिनों के मंथन की पूरी कवायद का मकसद पार्टी को अगले लोकसभा चुनाव के लिए तैयार करना है.
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