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This Article is From Nov 07, 2023

कॉलेजियम ने तीन हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों के नामों की शीर्ष अदालत के लिए की सिफारिश

कॉलेजियम ने अपने प्रस्ताव में कहा है कि उच्चतम न्यायालय में मंजूरी प्राप्त कुल न्यायाधीशों की संख्या 34 है और अभी यह 31 न्यायाधीशों के साथ संचालित हो रहा है. न्यायालय में काफी संख्या में लंबित मामले हैं.

कॉलेजियम ने तीन हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों के नामों की शीर्ष अदालत के लिए की सिफारिश
(फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम ने सोमवार को तीन उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों के नामों की सिफारिश शीर्ष अदालत के न्यायाधीश के रूप में की.

कॉलेजियम ने दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा, राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह और गुवाहाटी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश संदीप मेहता के नाम की सिफारिश शीर्ष अदालत के न्यायाधीशों के रूप में की.

कॉलेजियम में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत शामिल हैं. यदि केंद्र ने कॉलेजियम की सिफारिश को स्वीकृति दे दी, तो शीर्ष अदालत में न्यायाधीशों की संख्या 34 हो जाएगी, जो इसकी कुल संख्या है.

कॉलेजियम ने अपने प्रस्ताव में कहा है कि उच्चतम न्यायालय में मंजूरी प्राप्त कुल न्यायाधीशों की संख्या 34 है और अभी यह 31 न्यायाधीशों के साथ संचालित हो रहा है. न्यायालय में काफी संख्या में लंबित मामले हैं.

कॉलेजियम ने कहा, ‘‘लंबित मामलों की लगातार बढ़ती संख्या के कारण न्यायाधीशों पर काम का बोझ काफी बढ़ गया है. इसे ध्यान में रखते हुए, यह सुनिश्चित करना आवश्यक हो गया है कि न्यायालय में न्यायाधीशों की पूर्ण संख्या हो और किसी भी समय कोई रिक्ति न रहे. इसे मद्देनजर रखते हुए कॉलेजियम ने नामों की सिफारिश कर सभी तीन मौजूदा रिक्तियों को भरने का निर्णय लिया है.''

इसने कहा, ‘‘कॉलेजियम ने उच्चतम न्यायालय में नियुक्ति के लिए उच्च न्यायालयों के पात्र मुख्य न्यायाधीशों और वरिष्ठ न्यायाधीशों के नामों पर विचार-विमर्श किया. शीर्ष अदालत में पदोन्नत करने के लिए, विचारार्थ क्षेत्रों में आने वाले न्यायाधीशों द्वारा लिखे गए फैसलों को (कॉलेजियम के) सदस्यों के बीच वितरित किया गया था, ताकि समय रहते उनके न्यायिक कौशल पर सार्थक चर्चा की जा सके और उनकी न्यायिक कुशाग्रता का आकलन किया जा सके.''

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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