
चेन्नई की एक महिला अदालत आज सुबह हाई-प्रोफाइल अन्ना यूनिवर्सिटी यौन उत्पीड़न मामले में अपना फैसला सुनाने वाली है. बता दें कि पांच महीने पहले 19 साल की इंजीनियरिंग छात्रा पर एक बिरयानी विक्रेता ज्ञानसेकरन ने कैंपस में कथित तौर पर हमला किया था.
आरोपी हिस्ट्रीशीटर है और उस पर पहले भी चोरी के आरोप लगे हैं. उस पर 23 दिसंबर 2024 को पीड़िता ने यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाया था. दरअसल, 23 दिसंबर 2024 की रात को ज्ञानसेकरन ने कथित तौर पर यूनिवर्सिटी कैंपस में पीड़िता और उसके पुरुष मित्र के पास गया, उन्हें धमकाया और उसके दोस्त पर हमला करने के बाद महिला का यौन उत्पीड़न किया.
पुलिस रिपोर्ट से पता चलता है कि उसने अपने मोबाइल फोन पर भी इस रिकॉर्ड किया था. मामले में एफआईआर दर्ज की गई थी लेकिन इसके लीक होने और पीड़िता की पहचान उजागर होने के चलते लोगों में आक्रोश था और इसके बाद मद्रास उच्च न्यायालय के निर्देश के बाद मामले को एक महिला विशेष जांच दल (एसआईटी) को सौंप दिया गया था.
एसआईटी ने फरवरी 2025 में 29 गवाहों, 75 दस्तावेजों, सीसीटीवी फुटेज और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों का हवाला देते हुए 100 पन्नों का आरोपपत्र दाखिल किया. आरोपों में बलात्कार, यौन उत्पीड़न, आपराधिक अतिचार और स्पष्ट सामग्री को रिकॉर्ड करने और प्रसारित करने के लिए आईटी अधिनियम का उल्लंघन शामिल है. ज्ञानसेकरन पर गुंडा अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था और वह न्यायिक हिरासत में है. हालांकि, उसने आरोपों से इनकार किया था.
चेन्नई पुलिस ने शुरू में एफआईआर लीक होने का कारण केंद्र सरकार द्वारा प्रशासित पोर्टल में तकनीकी गड़बड़ी को बताया. हालांकि, उच्च न्यायालय ने इस चूक की निंदा करते हुए इसे "पीड़ित को दोषी ठहराना" बताया और दस्तावेज की संवेदनशील सामग्री को देखते हुए जांच का आदेश दिया. AIADMK और भाजपा ने सत्तारूढ़ DMK सरकार पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में विफल रहने का आरोप लगाया, जिसमें कैंपस सुरक्षा में ढिलाई का हवाला दिया गया है.
DMK ने अपनी प्रतिक्रिया का बचाव करते हुए त्वरित गिरफ्तारी, SIT गठन और मुकदमे की तेजी से सुनवाई पर प्रकाश डाला. जवाब में, अन्ना विश्वविद्यालय ने कड़े सुरक्षा उपाय किए, जिसमें बाहरी लोगों के लिए प्रतिबंधित प्रवेश, अनिवार्य आईडी कार्ड और बढ़ी हुई सीसीटीवी निगरानी शामिल है. एसआईटी की जांच को "अचूक" कहा गया है, लेकिन हमले के दौरान ज्ञानसेकरन द्वारा किसी अज्ञात "सर" को कथित फोन कॉल के बारे में सवाल बने हुए हैं. पुलिस ने इसे एक चाल के रूप में खारिज कर दिया, लेकिन विपक्षी दलों ने स्पष्टता की मांग की है. मद्रास उच्च न्यायालय ने राज्य को पीड़ित को 25 लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा देने का भी निर्देश दिया था.
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