- जांच समिति ने पाया की नौ साल की अमायरा ने स्कूल की चौथी मंजिल की दीवार से कूदकर जान दे दी थी.
- समिति ने घटना के दो दिन बाद 3 नवंबर को स्कूल में इंस्पेक्शन किया और 11 नवंबर को इसके सदस्य छात्रा के घर गए थे.
- इस रिपोर्ट में CBSE एफिलिएशन बाय लॉज (2018) और बच्चों की सुरक्षा के नियमों के कई उल्लंघन की बात सामने आई है.
क्या स्कूल में छात्रों की बातों और शिकायतों को नजरअंदाज करना जानलेवा हो रहा है? जयपुर के बाद दिल्ली में भी एक स्कूली छात्र ने सुसाइड कर दिया. इन दोनों की ही बातों को स्कूल टीचर्स ने नजरअंदाज किया था. जयपुर में पहली नवंबर को एक स्कूली छात्रा की मौत की जांच में सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन (CBSE) की जांच समिति ने पाया की नौ साल की अमायरा ने स्कूल की चौथी मंजिल की दीवार से कूदकर जान दे दी थी. समिति ने इस घटना के दो दिन बाद तीन नवंबर को स्कूल में इंस्पेक्शन किया और 11 नवंबर को इसके सदस्य छात्रा के घर गए थे. रिपोर्ट में कहा गया है कि अमायरा ने 45 मिनट तक उसके क्लासमेट की 'गलत बात' टीचर को बताई. लेकिन उसकी बातों को नजरअंदाज किया गया. जांच समिति की इस रिपोर्ट में CBSE एफिलिएशन बाय लॉज (2018) और बच्चों की सुरक्षा के नियमों के कई उल्लंघन की बात सामने आई है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि कि स्कूल में बुली करने को नजरअंदाज किया गया. अमायरा के माता-पिता ने बच्चे को स्कूल में बुली करने और चिढ़ाने की बार-बार शिकायत की लेकिन स्कूल ने उसे नजरअंदाज कर दिया. क्लास टीचर पुनीता शर्मा ने माना कि छात्रा ने उन्हें बताया था कि अमायरा के एक सहपाठी (क्लासमेट) ने 'खराब शब्दों' का इस्तेमाल किया था.
सबूतों से छेड़छाड़
जैसा कि यह खबर आने के बाद ही NDTV ने भी अपनी रिपोर्ट में बताया था, जांच समिति ने भी पाया कि जिस जगह छात्रा नीचे गिरी थी, उसे फोरेंसिक जांच से पहले धो दिया गया था, जिससे संभावित सबूत नष्ट हो गए. यानी यह सबूतों से छेड़छाड़ का स्पष्ट मामला भी है.
वहीं समिति ने सुरक्षा में चूक की बात भी अपने रिपोर्ट में दर्ज की है. इसमें लिखा गया है कि छात्रा चौथी कक्षा में थी जो ग्राउंड फ्लोर पर है और बगैर किसी की नजर में आए वो चौथी मंजिल पर पहुंच गईं. साथ ही इसमें यह भी लिखा गया कि स्कूल में दुर्घटनाओं को रोकने के लिए ऊपरी मंजिलों पर स्टील के सुरक्षा जाल नहीं हैं.
इसके अलावा समिति ने स्टूडेंट्स की अजीब हरकतों पर नजर रखने के लिए CCTV सर्विलांस फुटेज पर नजर रखने के लिए स्कूल की तरफ से कोई नियमित स्टाफ के नहीं होने की बात भी अपने रिपोर्ट में लिखी है.
सुरक्षा नियमों का गंभीर उल्लंघन
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि जांच समिति जब स्कूल में गई तब कई स्टूडेंट और स्टाफ ने ID कार्ड्स नहीं पहने थे, इससे इमरजेंसी के दौरान किसी की पहचान करने में देरी हो सकती है.
जांच समिति ने स्कूल की तरफ से सक्रिय कदमों में भी कमी पाई गई. जांच में पाया गया कि स्कूल के पास सेफ्टी और सिक्योरिटी कमेटी नहीं है. समिति ने पाया कि परेशान बच्चे की तरफ से तनाव के संकेत मिलने के बावजूद स्कूल उसकी काउंसलिंग करवाने में असफल रहा.
CBSE की रिपोर्ट इस नतीजे पर आई कि स्कूल ने सुरक्षा नियमों का गंभीर उल्लंघन किया है, जिसकी वजह से एक 'निर्दोष बच्चे' की जान चली गई, उस बच्चे को 'बहुत अधिक ट्रॉमा और मेंटल हैरेसमेंट' का सामना करना पड़ा.
अमायरा के माता-पिता ने स्कूल की एफिलिएशन कैंसिल करने समेत सख्त कार्रवाई करने की मांग की है.
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रिपोर्ट में और क्या-क्या लिखा गया?
टीचर का सर्पोट नहीं मिलना- जांच समिति की रिपोर्ट में अमायरा को टीचर का सपोर्ट नहीं मिलने की बात भी लिखी गई है. इसमें लिखा गया है कि अमायरा ने क्लासमेट्स के 'गलत शब्दों' की बात 45 मिनट के दौरान पांच बार टीचर को बताई लेकिन मदद मिलने की जगह उस पर चिल्लाया गया और उसे ही क्लास से निकाल दिया गया. खुद टीचर ने 2 नवंबर को पुलिस (SHO) के सामने यह माना था कि अमायरा ने कई बार शिकायत की थी, पर कोई कार्रवाई नहीं की गई.
अवैध इन्फ्रास्ट्रक्चर: स्कूल की बिल्डिंग में सेफ्टी नियमों के हिसाब से मंजूरी से अधिक फ्लोर हैं. साथ ही इसकी सीढ़ियों की रेलिंग असुरक्षित हैं जिनपर आसानी से चढ़ा जा सकता है.
एंटी-बुलिंग कानून: स्कूल की एंटी-बुलिंग कमिटी ने कथित तौर पर पिछले डेढ़ साल में कई शिकायतें मिलने के बावजूद पेरेंट्स से कभी संपर्क नहीं किया, जो अनिवार्य सर्कुलर का उल्लंघन है.
चाइल्ड प्रोटेक्शन पॉलिसी: बार-बार मिले तनाव के संकेतों पर कार्रवाई न करना, बाल संरक्षण और पोक्सो (POCSO) कमेटी की गाइडलाइन का उल्लंघन है.
बच्चे की काउंसलिंग: अमायरा को कभी भी काउंसलर के पास नहीं भेजा गया. न घटना वाले दिन, और न ही पहले की शिकायतों के दौरान.
स्टाफ की अनुपस्थिति: फ्लोर अटेंडेंट कथित रूप से घटना के समय अपनी ड्यूटी पर मौजूद नहीं था और उसने बच्चे को बालकनी पर चढ़ते हुए नहीं देखा.
...तो शायद बच जाती शौर्य पाटिल की जान
दिल्ली के शौर्य पाटिल नाम के छात्र ने मेट्रो स्टेशन से छलांग लगातर आत्महत्या कर ली. 10वीं कक्षा के छात्र शौर्य बेहद तनाव में थे. आरोप है कि टीचर्स लगातार उसे टॉर्चर कर रहे थे. स्कूल के बाहर जुटे छात्रों ने बताया कि शौर्य पाटिल ने अपनी मौत से कुछ घंटों पहले टेंशन में होने की बात कबूल की थी और उन्होंने अपने कई टीचर्स पर बच्चों को अपमानित करने का आरोप लगाया. ये बात शौर्य के क्लासमेट्स ने स्कूल के काउंसलर को बताई थी, लेकिन इसे नजरअंदाज कर दिया गया. अगर स्कूल प्रशासन ने शौर्य की तनाव की स्थिति को गंभीरता से लिया होगा, तो शायद उसकी जान को बताया जा सकता था.
शौर्य के पिता प्रदीप पाटिल ने बताया कि जिस दिन उनके बेटे ने आत्महत्या की, उस दिन उसे स्कूल में डांटा गया और सबके सामने अपमानित किया गया था. पिता ने बताया कि जब उनका बेटा मंच पर रो पड़ा, तो एक टीचर ने मजाकिया लहजे में कहा, "जितना रोना है रो लो, मुझे कोई परवाह नहीं." प्रदीप पाटिल ने एनडीटीवी को बताया, "मेरे बेटे की मौत के बाद, प्रिंसिपल ने मुझे फ़ोन किया और कहा, 'आपको जो भी मदद चाहिए, हमें बताएं, हम आपकी मदद करेंगे. मैंने उनसे कहा कि मुझे मेरा बेटा वापस चाहिए."
बच्चों कई बार अपने मन की बात अपने परिचितों से कहते हैं. कई बार उनका तरीका शायद उतना प्रभावी नहीं होगा. लेकिन पैरेंट्स और टीचर्स को छात्रों को समझने की कोशिश करनी चाहिए. छोटी-छोटी बातें बच्चों के कोरे मन में कहां तक कर घर कर जाएं, कहा नहीं जा सकता है. ऐसे में कभी बच्चों की शिकायतों और बातों को इग्नोर नहीं करना चाहिए.
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