बिहार की राजनीति में एक बार फिर उथल-पुथल मची है. राजनीति के जानकारों का मानना है कि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की पार्टी जदयू एक बार फिर महगठबंधन को छोड़कर एनडीए गठबंधन का हिस्सा बन सकती है. पटना से लेकर दिल्ली तक इस बात की चर्चा है कि बीजेपी और जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi) की पार्टी के समर्थन से नीतीश कुमार एक बार फिर मुख्यमंत्री बनेंगे. हालांकि साल 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में जदयू और बीजेपी गठबंधन को बहुत ही मुश्किल से बहुमत मिला था. ऐसे में अगर 7-8 विधायक भी विरोध करते हैं तो नीतीश कुमार का बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने की कोशिश को झटका लग सकता है.
बिहार विधानसभा का क्या है समीकरण?
बिहार विधानसभा में विधायकों की कुल संख्या 243 है. 2020 के चुनाव में राजद सबसे बड़ी दल बनकर उभरी थी. पार्टी को 75 सीटों पर जीत मिली थी.वहीं भारतीय जनता पार्टी को 74 सीटों पर जीत मिली थी. बीजेपी, जदयू, हम, और VIP के गठबंधन को 125 सीटों पर जीत मिली थी. बसपा, लोजपा और निर्दलीय को एक-एक सीटों पर जीत मिली थी. वहीं राजद, कांग्रेस और वामदलों के गठजोड़ ने 110 सीटों पर जीत दर्ज किया था. एआईएमआईएम को 5 सीटों पर सफलता मिली थी.
हालांकि बाद में VIP के चार में से तीन विधायक बीजेपी में शामिल हो गये और एक विधायक की मौत के बाद वो सीट राजद ने जीत लिया. इसी तरह एआईएमआईएम के 5 में से 4 विधायक राजद में शामिल हो गए. लोजपा, बसपा और निर्दलीय विधायक ने जदयू का दामन थाम लिया.
जादुई आंकड़े तक पहुंचने की राजद की कोशिश
नीतीश कुमार के RJD से नाता तोड़ने की अटकलों के बीच राजद ने 122 के जादुई आंकड़े तक पहुंचने के लिए 8 और विधायकों को साधने की कवायद शुरू कर दी है. राजद+कांग्रेस+लेफ्ट की सीटों को मिला लिया जाए तो 79+19+16 यानी 114 का नंबर बनता है. मतलब साफ है बहुमत के लिए 8 विधायकों की कमी है. लालू खेमा इन्हीं 8 विधायकों को साधने में जुट गया है. वहीं, नीतीश कुमार जेडीयू के प्रमुख नेताओं के साथ बैठक कर रहे हैं. एआईएमआईएम के बचे हुए एक मात्र विधायक अख्तर उल ईमान भी पूर्व में राजद में रह चुके हैं. ऐसे में संभावना है कि जरूरत पड़ने पर राजद को उनका साथ मिल सकता है. ऐसे में राजद को सरकार बनाने के लिए मात्र 7 विधायकों की जरूरत है.
विधानसभा में राजद के स्पीकर
बिहार विधानसभा में राजद के अवध बिहारी चौधरी स्पीकर हैं. ऐसे में राजद के लिए विधानसभा में एक संभावना दिखती है. महाराष्ट्र, झारखंड सहित कई राज्यों में स्पीकर ने विधायकी को लेकर फैसले करने में काफी समय लेकर अपरोक्ष तौर पर सत्ताधारी दल को फायदा पहुंचाया है.
जदयू के कुछ विधायकों के अलग बैठक करने की आयी थी खबर
हाल ही में ललन सिंह के जदयू अध्यक्ष पद से हटने से पहले मीडिया में यह खबर सामने आयी थी कि जदयू के लगभग 1 दर्जन विधायकों ने अलग बैठक की है. और ये विधायक राजद प्रमुख लालू प्रसाद के संपर्क में हैं. इन विधायकों में कुछ ऐसे विधायक भी थे जो लालू प्रसाद के यादव जाति के हैं और पूर्व में राजद में रह चुके हैं.
मध्यप्रदेश और कर्नाटक मॉडल भी लगा सकते हैं लालू
विधानसभा में पार्टी को तोड़ने के लिए जरूरी विधायकों की संख्या नहीं होने के हालात में लालू प्रसाद बीजेपी का मॉडल, बीजेपी और जदयू पर लगा सकते हैं. जिस तरह बीजेपी ने पहले कर्नाटक में और बाद में मध्य प्रदेश में पिछले कार्यकाल के दौरान कांग्रेस के विधायकों को पद से इस्तीफा दिलवाकर विधानसभा में बहुमत के आंकड़ों को कम कर दिया था और अपनी सरकार बना ली थी. ठीक उसी तरह लालू यादव भी जदयू के विधायकों के सामने यह ऑप्शन भी रख सकते हैं.
लालू प्रसाद के सामने क्या है चुनौती?
लालू प्रसाद की रणनीति के लिए अगर कोई सबसे कमजोर कड़ी है तो वो कांग्रेस पार्टी है. कांग्रेस के 19 विधायक हैं और कई बार यह संभावना जतायी जाती रही है कि वो विधायक जदयू नेता नीतीश कुमार के संपर्क में हैं. वहीं जदयू के अशोक चौधरी पूर्व में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं उनकी भी कांग्रेस के विधायकों से अच्छे संबंध रहे हैं. हाल के दिनों में अशोक चौधरी नीतीश कुमार के बेहद करीबी माने जाते हैं. ऐसे में लालू प्रसाद की मुहिम को सबसे अधिक खतरा कांग्रेस के विधायकों से है.
बीजेपी के पास क्या है विकल्प?
लालू प्रसाद के तमाम कवायद को बीजेपी और नीतीश कुमार एक झटके में खत्म कर सकते हैं. अगर नीतीश कुमार बिहार विधानसभा को भंग कर दें तो लालू प्रसाद या कोई भी दल सरकार बनाने की हालत में नहीं रह जाएगा. हालांकि खबरों के अनुसार लगभग 2 साल पहले विधानसभा चुनाव में जाने के लिए अभी बीजेपी के विधायक भी तैयार नहीं हैं.
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