अक्सर तलाक के मामले में पति को अपनी पत्नी को गुजारा करने के लिये एलिमनी देनी पड़ती है. लेकिन महाराष्ट्र के औरंगाबाद (Aurangabad) में एक ऐसा मामला सामने आया है जिसमें पति नही बल्कि उसकी पत्नी को अपने पूर्व पति को हर महीना गुजारा भत्ता देना होगा. दरअसल बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) की औरंगाबाद बेंच ने एक महिला को आदेश दिया है कि वो अपने पूर्व पति को हर महीने तीन हजार रुपये गुजारा भत्ता दे. इस साल 26 फरवरी को पारित एक आदेश में, हाई कोर्ट की औरंगाबाद पीठ की न्यायमूर्ति भारती डांगरे ने 2017 और 2019 में स्थानीय अदालत द्वारा पारित आदेशों को बरकरार रखा. दीवानी अदालत ने निर्देश दिया था कि महिला अपने पूर्व पति को 3,000 रुपये का अंतरिम मासिक गुजारा भत्ता दे.
दरासल महिला एक स्कूल टीचर है और कोर्ट ने स्कूल के प्रधानाध्यापक को महिला की सैलरी से हर महीने 5,000 रुपये काटने और अदालत में जमा करने का आदेश दिया है. ऐसा इसीलिए किया गया क्योंकि अदालत के आदेश के बावजूद अगस्त 2017 से महिला ने अपने अलग रह रहे पति को गुजारा भत्ता नहीं दिया गया . महिला ने निचली अदालत के आदेशों का विरोध करते हुए तर्क दिया कि उसने 2015 में अपने पति को तलाक दे दिया था. उस व्यक्ति ने दो साल बाद स्थायी गुजारा भत्ता की मांग करते हुए स्थानीय अदालत का दरवाजा खटखटाया था.
महिला के वकील ने तर्क दिया कि एक बार विवाह समाप्त हो जाने के बाद, किसी भी पक्ष को किसी भी रखरखाव या गुजारा भत्ता का दावा करने का अधिकार नहीं है. हालांकि, उस व्यक्ति के वकील ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 में इस तरह से भरण-पोषण या गुजारा भत्ता के दावे पर कोई प्रतिबंध नहीं है. असल में उस व्यक्ति ने दावा किया कि उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं था और वह कुछ स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित था जिसने उसे काम करने के लिए अयोग्य बना दिया.
उन्होंने कहा कि महिला ने अपनी शिक्षा पूरी कर ली है और शादी के बाद शिक्षिका बन गई है. उनकी याचिका में कहा गया है, "पत्नी को डिग्री हासिल करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए उसने अपनी महत्वाकांक्षा को दरकिनार करते हुए घरेलू मामलों का प्रबंधन किया." न्यायमूर्ति डांगरे ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 और 25 निर्धन पति या पत्नी को भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार प्रदान करती है और निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखती है.
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