बिलकिस बानो (Bilkis Bano) केस पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)में गुरुवार (14 सितंबर) को सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की समय से पहले रिहाई पर फिर सवाल उठाए हैं. जस्टिस बीवी नागरत्ना ने सुनवाई के दौरान कहा, "हम सजा में छूट की अवधारणा के खिलाफ नहीं हैं. कानून में इसे अच्छी तरह से स्वीकार किया गया है. स्पष्ट करें कि ये दोषी कैसे माफ़ी के योग्य बने. इसके साथ ही दोषियों को बहुत दिनों की पैरोल का भी मौका मिला." शीर्ष अदालत ने पूछा कि कैसे कुछ दोषियों को विशेषाधिकार दिया जा सकता है? इस मामले पर अगली सुनवाई 20 सितंबर को होगी.
इस दौरान जस्टिस लूथरन ने कहा कि इस मामले में केवल दोषियों की रिहाई पर बात हो. मामले की क्रूरता पर नहीं. उन्होंने कहा कि दोषियों को पहले ही अपराध को लेकर सजा दी चुकी है. इसके पहले सुनवाई 30 अगस्त को हुई थी. तब कोर्ट ने मुंबई की ट्रायल कोर्ट में जुर्माना भरने पर एक दोषी को फटकार लगाई थी. अदालत ने कहा था कि आपने कोर्ट की अनुमति के बिना जुर्माना क्यों भरा?
वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने एक दोषी के लिए अपनी दलीलें शुरू करते हुए कहा, "आजीवन कारावास की सजा पाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को सुधार का मौका भी दिया जाता है. सुधार को इस आधार पर बंद नहीं किया जा सकता कि अपराध जघन्य था. इसके अलावा सजा में छूट का प्रावधान बनाया गया है."
गुजरात दंगे के दौरान का है मामला
2002 में गोधरा ट्रेन जलाने की घटना के बाद भड़के सांप्रदायिक दंगों के डर से भागते समय उनके साथ गैंगरेप किया गया था. तब बिलकिस बानो की उम्र 21 साल थीं. वे पांच महीने की प्रेग्नेंट भी थीं. दंगाइयों ने बिलकिस की मां समेत चार और महिलाओं का भी रेप किया. इस दौरान हमलावरों ने बिलकिस के परिवार के 17 सदस्यों में से 7 लोगों की हत्या कर दी.
इस मामले में 11 लोगों को दोषी ठहराया गया था. 15 अगस्त 2022 को गुजरात सरकार ने सभी दोषियों को जेल से रिहा कर दिया था.
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