सुप्रीम कोर्ट ने उस वक्त हैरानी जताई जब पता चला कि बिलकिस बानो केस के दोषियों में से एक ने बरी होने के बाद गुजरात में वकालत शुरू कर दी है. बिलकिस बानो केस के दोषियों की रिहाई के खिलाफ सुनवाई कर रहे जस्टिस उज्जल भुइयां ने पूछा कि क्या रेप जैसे गंभीर अपराध का कोई दोषी वकालत जैसा आदर्श पेशा अपना सकता है?
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ के सामने बताया गया कि एक दोषी राधेश्याम शाह वकील है. इस पर जस्टिस ने मौखिक टिप्पणी की कि क्या रेप का सजायाफ्ता दोषी का वकालत करना उचित है?
सजा का मतलब सुधारना
इस टिप्पणी पर दोषियों के वकील ऋषि मल्होत्रा ने जवाब दिया कि, सजा का मतलब सुधारना होता है. सजा काटने के दौरान शाह के अच्छे सुधारात्मक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और सराहना का प्रमाणपत्र भी हासिल किया. आजीवन कारावास के दंड के तौर पर अपने साढ़े पंद्रह साल की कैद के दौरान शाह ने कला, विज्ञान और ग्रामीण विकास विषयों में परा स्नातक (मास्टर) डिग्री हासिल की. उसने जेल में साथी कैदियों के लिए स्वैच्छिक पैरा लीगल सेवाएं भी दीं. वो इस मामले में आरोपी होने से पहले भी मोटर व्हीकल एक्सीडेंट मामले के पीड़ितों को मुआवजा दिलाने के लिए वकील के तौर पर प्रैक्टिस करता था.
तभी जस्टिस नागरत्ना ने तपाक से पूछ लिया कि क्या शाह अभी भी वकालत कर रहा है? इसके जवाब में मल्होत्रा ने कहा- हां, उसने फिर प्रैक्टिस शुरू कर दी है, क्योंकि वह आरोपी होने से पहले भी करता था और रिहाई के बाद भी.
वकालत है नोबल प्रोफेशन
फिर जस्टिस भुइयां ने पूछा कि क्या किसी गंभीर दोष में सजायाफ्ता को वकालत का लाइसेंस दिया जा सकता है? क्योंकि वकालत तो नोबल प्रोफेशन है.
मल्होत्रा ने जवाब दिया कि वैसे तो सांसद और जनप्रतिनिधि होना भी आदर्श होता है लेकिन वे भी तो दोषी साबित होकर सजा काटते हैं, फिर चुनाव लड़ते हैं.
जस्टिस भुइयां ने कहा कि यहां विषय यह नहीं है. यहां बार काउंसिल को एक दोषी को लाइसेंस नहीं देना चाहिए था. वह एक दोषी है, इसमें कोई शक नहीं है.
सिर्फ सजा कम की गई है ना कि दोष सिद्धि
मल्होत्रा ने कहा कि उसने अपनी सजा पूरी कर ली थी. इस पर जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि शाह ने अपनी पूरी सजा नहीं काटी थी. उसे उम्रकैद की सजा दी गई थी. सिर्फ उसकी सजा कम की गई है ना कि दोष सिद्धि.
बिलकिस बानो का गैंगरेप,उसकी तीन साल की बेटी सहित सात की हत्या की गई थी
बता दें, साल 2002 में गुजरात दंगों में 21 साल की गर्भवती बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप करने और उसकी तीन साल की बेटी सहित सात रिश्तेदारों की हत्या के अपराध में मुंबई की अदालत ने सन 2008 में राधेश्याम शाह समेत 11 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. सुनवाई गुजरात से महाराष्ट्र ट्रांसफर की गई थी. बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2017 में इनकी सजा बरकरार रखी. इसके दो साल बाद 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को निर्देश दिया था कि वो बिलकिस को 50 लाख रुपये मुआवजा, उसकी योग्यता के मुताबिक सरकारी नौकरी और घर दे.
इसके बाद राधेश्याम शाह ने गुजरात हाईकोर्ट में सजा खत्म कर समय पूर्व रिहाई की अर्जी लगाई तो कोर्ट ने कहा यह सरकार का अधिकार है. फिर गुजरात सरकार ने राज्य नीति के मुताबिक सभी 11 दोषियों को रिहा कर दिया. पहले राजनीतिक और बुद्धिजीवी लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में उसे चुनौती दी. फिर बिलकिस ने भी याचिका दाखिल की है.
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