
- तेजस्वी यादव ने बिहार की सभी 243 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है, जिससे गठबंधन में तनाव बढ़ा है.
- महागठबंधन में सीट बंटवारे और मुख्यमंत्री पद को लेकर चल रहे विवाद तेजस्वी के एकतरफा फैसले से और गहरा गए हैं.
- तेजस्वी यादव की मुख्यमंत्री बनने की जल्दबाजी महागठबंधन की एकजुटता को कमजोर कर सकती है.
तेजस्वी यादव 36 साल की उम्र में बिहार का मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं. यह उनकी अपरिपक्वता को दिखाता है. इससे गठबंधन की एकता को ठेस पहुंच सकती है. एक ऐसा गठबंधन जो एक मजबूत सत्तारूढ़ पार्टी को चुनौती देने के लिए जरूरी है. राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने बिहार की सभी 243 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. यह एक साहसिक लेकिन जोखिम भरा कदम है.
तेजस्वी यादव ने कहा क्या है
मुजफ्फरपुर के कांटी में आयोजित एक जनसभा में तेजस्वी यादव ने कहा, "इस बार तेजस्वी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगा, चाहे बोचहां हो या मुजफ्फरपुर, तेजस्वी लड़ेगा. मैं आप सभी से अपील करता हूं कि मेरे नाम पर वोट दें. तेजस्वी बिहार को आगे ले जाएगा...हमें मिलकर इस सरकार को हटाना है." तेजस्वी का यह बयान सिर्फ चुनावी रणनीति नहीं है, बल्कि यह महागठबंधन (आरजेडी, कांग्रेस, वाम दल और छोटे दलों का गठबंधन) को कमजोर कर सकता है. यह गठबंधन सत्तारूढ़ नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) के खिलाफ बना है.
तेजस्वी यादव ने यह बयान ऐसे समय दिया है, जब महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर तनाव की खबरें आ रही हैं. विवाद इस बात को लेकर भी है कि नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में जीतने मिलने की दशा में अगला मुख्यमंत्री कौन होगा. कांग्रेस और अन्य छोटे दल अधिक लायक अधिक सीटों की मांग कर रहे हैं. इससे एनडीए के खिलाफ एकजुट मोर्चे में तनाव पैदा हो रहा है. विधानसभा की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा करके तेजस्वी ने न केवल इन मांगों को दरकिनार कर दिया है, बल्कि खुद को महागठबंधन का चेहरा भी घोषित कर दिया, जिसे कांग्रेस ने अभी तक समर्थन नहीं दिया है.
क्या जल्दबाजी दिखा रहे हैं तेजस्वी यादव
तेजस्वी यादव का यह बयान एक बड़ी भूल है. वह 36 साल की उम्र में बिहार का मुख्यमंत्री बनने की जल्दबाजी में दिख रहे हैं. यह उनकी अपरिपक्वता को दिखाता है और गठबंधन की सामूहिक भावना को कमजोर करता है, जो एक मजबूत सत्तारूढ़ पार्टी को चुनौती देने के लिए जरूरी है. हाल ही में संपन्न हुई 17 दिन की वोटर अधिकार यात्रा में राहुल गांधी और तेजस्वी के कंधे से कंधा मिलाकर चलने से एकता का जो संदेश गया था, वह अब तेजस्वी के एकतरफा ऐलान से धूमिल हो गया है. इससे समर्थकों में भ्रम और निराशा फैल सकती है. गठबंधन की राजनीति में हितों का संतुलन जरूरी है. तेजस्वी का सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान महागठबंधन के सहयोग और समझौते के सिद्धांतों का अपमान है. इस बयान से उन्होंने गठबंधन धर्म को तोड़ा है. इससे NDA के खिलाफ मजबूत चुनौती देने वाली एकता खतरे में पड़ सकती है.
बिहार के मुख्यमंत्री पद के लिए नेताओं की लोकप्रियता
रैंक | नेता | फरवरी (% में) | अप्रैल (% में) |
1 | तेजस्वी यादव | 40.6 | 35.5 |
2 | प्रशांत किशोर | 14.9 | 17.2 |
3 | नीतीश कुमार | 18.4 | 15.4 |
4 | सम्राट चौधरी | 8.2 | 12.5 |
5 | चिराग पासवान | 3.7 | 5.8 |
6 | शाहनवाज हुसैन | 1.3 | 1.7 |
7 | शकील अहमद | 0.1 | 1 |
8 | नंदकिशोर यादव | 0.8 | 0.5 |
9 | उपेंद्र कुशवाहा | 0.5 | 0.2 |
स्रोत: सी वोटर का सर्वे
तेजस्वी यादव के इस फैसले के गंभीर परिणाम हो सकते हैं. यह न केवल कांग्रेस और छोटे सहयोगी दलों को अलग-थलग कर सकता है, बल्कि आरजेडी के अंदर भी दरार पैदा कर सकता है. अगर मतदाता अपने नेताओं में एकता की कमी देखते हैं, तो इससे गठबंधन का आधार कमजोर हो सकता है. इसका परिणाम यह हो सकता है कि मतदाता या तो उदासीन हो जाए या उसका झुकाव एनडीए की तरफ हो जाए. बिहार जैसे राज्य में, जहां राजनीतिक निष्ठाएं अक्सर नाजुक होती हैं और एकजुट गठबंधन के वादे पर टिकी होती हैं, वहां यह आंतरिक कलह विनाशकारी साबित हो सकती है. तेजस्वी के बयान का समय भी बहुत महत्वपूर्ण है. बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक हैं. ऐसे में गठबंधन को एकजुट होकर राज्य के प्रमुख मुद्दों—गरीबी, बेरोजगारी और बुनियादी ढांचे की कमी पर एक साफ नजरिया पेश करना चाहिए. लेकिन, सामूहिक रणनीति के बजाय अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को प्राथमिकता देकर, तेजस्वी एनडीए को मौका दे रहे हैं. एडीए इस अव्यवस्था का फायदा उठा सकता है.
तेजस्वी का घटती-बढ़ती लोकप्रियता
सी-वोटर के एक चुनाव पूर्व सर्वे के मुताबिक तेजस्वी यादव बिहार के अगले मुख्यमंत्री के लिए सबसे पसंदीदा उम्मीदवार हैं. वह वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जन सुराज के नेता प्रशांत किशोर और अन्य से काफी आगे हैं. हालांकि, उनकी लोकप्रियता फरवरी के 40.6 फीसदी से घटकर अप्रैल में 35.5 रह गई थी. विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान और चुनाव प्रचार शुरू होने के बाद भी अगर तेजस्वी ऐसी गलतियां करते रहे, तो उनकी लोकप्रियता और कम हो सकती है. अगर संक्षेप में कहें तो तेजस्वी का यह बयान सिर्फ एक राजनीतिक भूल ही नहीं, बल्कि एक जोखिम भरा दांव है. यह महागठबंधन की व्यवहारिकता को खतरे में डाल सकता है. तेजस्वी को अगर इस गठबंधन का प्रभावी रूप से नेतृत्व करना है, तो उन्हें समझना होगा कि एकता की ताकत सहयोग में है न कि एकतरफा घोषणाओं में.
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