साल 2018 में अदालत की ओर से गोवा (Goa) में माइनिंग (Mining) पर लगी रोक का असर लाखों लोगों के रोज़गार (Employment) पर पड़ता नज़र आ रहा है. हाल ही में गोवा में प्रदर्शन कर लोगों ने जल्द से जल्द इस मामले में कोई हल निकालने की मांग सरकार से की है. गोवा की सड़कों पर लोगों की ओर से माइनिंग को दोबारा शुरू करने के लिए प्रदर्शन किया जा रहा है. साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य की 88 माइनिंग लीज को रिन्यू करने पर रोक लगा दी. इसके बाद राज्य में अब माइनिंग बंद है. इस आदेश का असर उन हज़ारों लोगों पर पड़ा है जिनका गुजारा इसके जरिए होता था.
श्रीगांव राजाराम बांदेकर माइंस के अध्यक्ष गुरुदास गांवकर कहते हैं कि ''प्रधानमंत्री मोदी और सीएम प्रमोद सावंत को समझना होगा कि बहुत बड़ी संख्या में जो वर्कर थे वे इस माइनिंग पर निर्भर थे. बच्चों की पढ़ाई हो या दवाई का खर्च, वो इससे निकल जाता था. सरकार ने इन्हें कोई दूसरा विकल्प भी नहीं दिया है.''
साल 2018 से ही इस व्यवसाय से जुड़े लोग परेशान हैं. हाल ही में सरकार को चिट्ठी लिखकर इस पर हल निकालने की मांग की है. सरकार को लिखे पत्र में बताया गया है कि करीब तीन लाख लोगों के रोज़गार पर इसका असर पड़ा है. 88 खदानों में 77 हजार लोग काम कर रहे थे और ढाई लाख लोग दूसरे तरह से इस व्यवसाय से जुड़े थे. 12 हज़ार से ज़्यादा गाड़ियां बंद हैं. कोरोना ने परेशानी और बढ़ा दी है. बंद का सरकारी तिजोरी पर भी असर पड़ा है.
गोवा माइनिंग पीपल फ्रंट के अध्यक्ष पुनीत गांवकर ने कहा कि ''हमने सरकार से भी कहा है कि जल्द से जल्द इन्हें शुरू किया जाए क्योंकि सरकार भी इस माइनिंग पर निर्भर है. माइनिंग बंद होने के बाद सरकारी कर्मचारियों को वेतन देने के लिए भी सरकार को लोन लेना पड़ रहा है.''
राज्य और केंद्र दोनों में एक ही पार्टी की सरकार होने की वजह से माइनिंग से जुड़े लोग सरकार से मांग कर रहे हैं कि वह अदालत में यह सारी बात बताकर कोई हल निकालने की कोशिश करे. लेकिन क्या सरकार वाकई इसके लिए अदालत में कोई पक्ष रखेगी, यह अगली सुनवाई में ही पता चल पाएगा.
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