Babri demolition case: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने सोमवार को अयोध्या में बाबरी मस्जिद (Babri Masjid) विध्वंस मामले में पूर्व प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी (LK Advani) सहित सभी 32 आरोपियों को बरी करने के विशेष सीबीआई अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली अपील की विचारणीयता पर केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) व राज्य सरकार को अपनी आपत्ति प्रस्तुत करने का मौका दे दिया है. हाईकोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई पांच सितंबर को मुकर्रर की है. यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा व न्यायमूर्ति सरोज यादव की पीठ ने अयोध्या निवासी हाजी महबूब अहमद व सैयद अखलाक अहमद की ओर से दाखिल याचिका पर दिया है.
याचिकाकर्ताओं ने पहले पुनरीक्षण याचिका दाखिल की थी, जिसे न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की एकल पीठ ने गत 18 जुलाई को विचारणीय नहीं मानते हुए उसे आपराधिक अपील में परिवर्तित करने का आदेश दिया था. इसके अनुसार पुनरीक्षण याचिका को आपराधिक अपील में परिवर्तित करके सोमवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था.
सुनवाई के दौरान सीबीआई के अधिवक्ता शिव पी शुक्ला एवं सरकारी वकील विमल कुमार श्रीवास्तव ने अदालत से कहा कि अपीलार्थी सीआरपीसी की धारा 372 के तहत पीड़ित की श्रेणी में नहीं आते, लिहाजा उनको विशेष अदालत के आदेश को चुनौती देने का अधिकार नहीं है. इस पर न्यायालय ने सीबीआई व सरकार को लिखित में आपत्ति पेश करने का समय दे दिया.
गौरतलब है कि एक विशेष अदालत ने 30 सितम्बर 2020 को फैसला सुनाते हुए बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती, लोकसभा सदस्य साक्षी महाराज, लल्लू सिंह व बृजभूषण शरण सिंह समेत सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया था.
कारसेवकों ने छह दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया था. लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, 30 सितंबर, 2020 को विशेष सीबीआई अदालत ने आपराधिक मुकदमे में फैसला सुनाया और सभी आरोपियों को बरी कर दिया था.
विशेष अदालत ने समाचार पत्र की कतरनों, वीडियो क्लिप को सबूत के तौर पर मानने से इनकार कर दिया था, क्योंकि उनके मूल दस्तावेज पेश नहीं किए गए थे, जबकि पूरा मामला इन्हीं दस्तावेजी साक्ष्यों पर टिका था.
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