कोरोना के दौर में दुनिया में कई बदलाव आए. इनमें से एक बड़ा बदलाव काम से जुड़ा हुआ था. लॉकडाउन में जब लोगों के घरों से निकलने पर पाबंदी लगा दी गई तो कंपनियों के सामने दिक्कत आ गई कि लोगों से काम कैसे कराएं? ऐसे में कई कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को घर से ही काम करने की इजाजत दे दी, जिसको 'वर्क फ्राम होम' कहा जाने लगा. ऐसा करने से कई कंपनियों का काम नहीं रुका, और अच्छा हो गया. खास तौर पर सॉफ्टवेयर कंपनियों के लिए अच्छा हो गया. लोगों को घर बैठे नौकरियां मिल गईं, खर्चा बचने लगा. इसके बाद तो यह परिपाटी चल ही निकली. कई कंपनियों ने कोरोना संकट खत्म होने के बाद भी इसे बनाए रखा. कर्मचारियों को भी यह रास आया कि कहीं जाना नहीं है. घर बैठे-बैठे काम, किसी को भीड़ में नहीं जाना था. बड़ी-बड़ी कंपनियों को यह फायदा हुआ कि उन्हें बड़े दफ्तरों की जरूरत नहीं रही. कई कंपनियों ने किराये पर लिए गए अपने दफ्तर छोड़ दिए और अपना वित्तीय बोझ कुछ हद तक कम किया. दुनिया की बड़ा साफ्टवेयर कंपनियां इसमें सबसे आगे रही हैं. और भी कई कंपनियां जिनमें कर्मचारी सिर्फ कम्यूटर पर ही काम करते हैं, उनमें से कई इसी तरीके को अपनी रही हैं. कई जगह यह अब भी जारी है, जबकि कोरोना अब खत्म हो चला है.
''टेक वर्कर्स लैपटॉप क्लासेस लिविंग इन ला-ला लैंड..''
इस बीच दुनिया के दूसरे सबसे अमीर उद्योगपति एलोन मस्क का एक नया बयान सामने आया है, जिसमें वे वर्क फ्राम होम पर सीधा सवाल खड़ा कर रहे हैं. टेस्ला, स्पेसएक्स और ट्विटर जैसी नामी कंपनियों के मालिक एलोन मस्क दुनिया के अमीरों में कभी नंबर वन हो जाते हैं तो कभी दूसरे या तीसरे स्थान पर आ जाते हैं. एक अमेरिकी टीवी चैनल को दिए गए इंटरव्यू में एलोन मस्क ने कहा - ''मैं सोचता हूं कि घर से काम करने का विचार मैरी ऐंटोनेट के इस फर्जी उद्धरण जैसा है, 'उन्हें केक खाने दो.' यह बिल्कुल भी उत्पादक नहीं है. मैं इसे नैतिक तौर पर गलत मानता हूं. इससे उन कर्मचारियों में गलत संदेश जाता है जिनके पास दूर से बैठकर दफ्तर का काम करने का विकल्प नहीं है. जैसे फैक्ट्री के कामगार या अन्य जरूरी कर्मचारी. घर से काम करने वाले टेक वर्कर्स लैपटॉप क्लासेस लिविंग इन ला-ला लैंड (यानी सपनों की दुनिया में रह रहे) हैं.''
एलोन मस्क जिस मेरी ऐंटोनेट का एलोन मस्क जिक्र कर रहे हैं वे फ्रांस की क्रांति के दौर में वहां की रानी थीं और फ्रांस में राजशाही का खात्मा होने के बाद उन्हें गद्दी से उतारकर सार्वजनिक रूप से मौत की सजा दे दी गई थी. उनके नाम से यह कोटेशन इतिहास में चल गया है. जिसमें कहा गया है कि उनके सामने जब जनता के इतनी गरीब होने की बात रखी गई तो उन्होंने कहा था कि ब्रेड भी नहीं खरीद सकते हैं तो उनसे कहिए केक खा लें. मतलब मजाक उड़ाया था. हालांकि इतिहासकार मानते हैं कि यह जो कोटेशन है, यह मेरी ऐंटोनेट का नहीं है.
मस्क जो दावा कर रहे हैं, क्या वह वाकई में सही है?
साफ है कि दुनिया के सबसे अमीर आदमी एलोन मस्क नहीं चाहते हैं कि लोग घर से काम करें. उनका मानना है कि इससे काम में प्रोडक्टिविटी नहीं आती. मस्क हमेशा से ही कर्मचारियों के दफ्तर में काम करने की नीति के समर्थक हैं. वे अपनी कंपनी टेस्ला के कर्मचारियों से भी कह चुके हैं कि वे हर हफ्ते दफ्तर में कम से कम 40 घंटे काम करें. हमारा सवाल है कि मस्क जो दावा कर रहे हैं, क्या वह वाकई में सही है? इसके लिए हमने कोरोना काल में दुनिया में हुईं कुछ रिसर्च और सर्वे को देखा. दुनिया की जानीमानी यूनिवर्सिटी एमआईटी ने कोरोना के दौर में वर्क फ्राम होम के चलन पर एक स्टडी की. एमआईटी द्वारा अपने ही कैंपस में की गई स्टडी के मुताबिक वर्क फ्राम होम के कारण कर्मचारियों के आपसी रिश्तों और टीम वर्क पर नकारात्मक असर पड़ा है. इससे रचनात्मकता घटी है और कुछ नया करने की प्रवृत्ति भी कम हुई है. हालांकि इस स्टडी में हाइब्रिड मोड में काम करने की सलाह दी गई है, क्योंकि कुछ काम वर्क फ्राम होम के तौर पर भी हो, इससे कर्मचारियों को काफी राहत मिलती है.
कोरोना के बाद छपी स्टेंडफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च में कहा गया है कि वर्क फ्राम होम काम करने का एक नया चलन है जो अब बना रहेगा. उसको एकदम से खत्म नहीं कर सकते. इस रिपोर्ट में सुझाव दिए गए हैं कि वर्क फ्राम होम हफ्ते में एक से तीन दिन ही होना चाहिए. इससे कुछ दिन लोगों आने-जाने का समय बचेगा और वे घर से शांति से पूरा मन लगाकर काम कर सकेंगे. बाकी दिनों में दफ्तर में लोगों के साथ मिलजुलकर काम करेंगे. रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्क फ्राम होम कर्मचारियों को दी गई सुविधा है, उनका अधिकार नहीं है.
फोर्ब्स में छपी एक रिपोर्ट है आउल लैब्स की एक रिसर्च में कहा गया है कि वर्क फ्राम होम या हाइब्रिड काम करने वाले कर्मचारी, दफ्तर में काम करने वाले कर्मचारी से 22 प्रतिशत ज्यादा खुश थे और उन्होंने लंबे समय तक नौकरी भी की. तनाव भी कम दिखा. वे दफ्तर के मुकाबले ज्यादा मन लगाकर अपना काम कर रहे थे. फोर्ब्स में छपी एक रिपोर्ट में, एरगोट्रॉन ने फुलटाइम कर्मचारियों का एक सर्वे किया. 88 प्रतिशत कर्मचारियों ने कहा कि वर्क फ्राम होम से उनकी काम के प्रति संतुष्टि बढ़ी है. 56 प्रतिशत ने कहा कि उनकी मानसिक सेहत और वर्क लाइफ बैलेंस बेहतर हुआ है.
''वर्क फ्राम होम एक चाकू की तरह''
इस मुद्दे पर टीमलीस सर्विसेज के वाइस चेयरमैन मनीष सभरवाल कहते हैं कि, ''वर्क फ्राम होम एक चाकू की तरह है, कोई पागल आदमी चाकू से कत्ल भी कर सकता है, लेकिन डॉक्टर तो चाकू से सर्जरी करता है, ऑपरेशन करता है. वर्क फ्राम होम के पिछले दो साल में जो एक्सपेरिमेंट हुए हैं, कोविड की वजह से या उसके बाद रिमोट वर्किंग. उसका एब्यूज भी हुआ, बहुत लोगों ने उसका एडवांटेज लिया, लेकिन बहुत लोग जो ट्रेडिशनल लेबर कोर्स में नहीं थे, महिलाएं, छोटे शहरों के लोग, उनको ऑपर्चुनिटी मिल गई हैं. हर आदमी बाम्बे, दिल्ली, बेंगलोर दौड़कर थोड़ी आईटी के काम कर सकता है. अब लोग पटना, कानपुर, लखनऊ से भी काम कर सकते हैं. वर्क फ्राम होम की जो फ्लैक्जिबिलिटी है वह बहुत इंपार्टेंट है. नॉन ट्रेडिशनल या लेबर मार्केट आउटसाइडर्स को वर्क स्पेस में लाने के लिए. पेंडेमिक से पहले पांच प्रतिशत लोग वर्क फ्राम होम करते थे, अब 15-20 परसेंट लोग. जो कह रहे थे, 80-90 परसेंट वर्क फ्राम होम करेंगे, वह तो होगा नहीं. लोग भूलते नहीं हैं काम करना, और अगर भूल जाते हैं तो फिर से सीख जाएंगे. वर्क फ्राम होम अच्छी चीज, बुरी चीज नहीं है, दोनों हो सकती है. हर कंपनी और हर एम्पलाई को यह सोचना पड़ेगा उनको फ्लैक्जिबिलिटी चाहिए, तीन दिन आफिस में करें या तीन दिन घर में करें. यह तो हर आदमी और हर आफिस को अपनी स्पेसिफिक सिचुएशन में सोचना चाहिए. जैसे चाकू होता है, वह अच्छा-बुरा नहीं होता, उसके अच्छे-बुरे उपयोग होते हैं. वर्क फ्राम होम ऐसा ही है.''
''आप किसी का काम कहीं पर भी ट्रैक कर सकते हैं''
सिंपली एचआर सॉल्यूशन के मैनेजिंग पार्टनर रजनीश सिंह ने कहा कि, ''कुछ ऐसे रोल्स पाए गए हैं जहां पर वर्क फ्राम होम का मॉडल काफी हेल्फफुल है. पाया गया कि उसमें प्रोडक्टिविटी में कोई कमी नहीं हुई, कोई एफिशिएंसी की कमी नहीं हुई. आज टेक्नालॉजी से ऐसे प्लेटफार्म हैं जिसमें आप किसी का काम कहीं पर भी ट्रैक कर सकते हैं. ऐसे समय में यह सोचना कि लोग इसका दुरुपयोग कर रहे हैं, मैं इस पर थोड़ा डिफर करूंगा. कंडीशन एक ही है कि हमें ध्यान रखना है कि कौन से ऐसे रोल्स हैं जिसको हम वर्क फ्राम होम में अलाउ कर सकते हैं. मेरा यह भी मानना है कि ऐसा नहीं है कि संस्थाओं ने कर्मचारियों से ज्यादा काम कराया है. शुरू में यह जरूर आया था जब पेंडिमिक आया था. उस समय सारा सिस्टम थोड़ा सा डिसआर्गनाइज हो गया था. पर जैसे-जैसे समय बीता है, यह मॉडल कहीं न कहीं सैटेल कर गया है. छोटे-छोटे शहरों में एचआर वाले जाकर रिक्रूटमेंट कर रहे हैं तो शायद आपको ज्यादा पैसा दे रहे होंगे, यदि आपके पास हुनर अच्छा है. तो बात यह आ जाती है कि आपके पास क्या स्किल हैं. उसके लिए कंपनी कुछ भी पैसा देने के लिए तैयार है. यह कंडीशन नहीं रख रही कि आप कहां से काम कर रहे हैं. जब तक उनको काम पूरा मिल रहा है, जो रिजल्ट उनको चाहिए.''
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