Anupama Gulati Murder Case: 'श्रद्धा वॉकर हत्याकांड' जैसी दंरिंदगी, जिसने 12 साल पहले पूरे देश को हिलाकर रख दिया था, उस 'अनुपमा गुलाटी मर्डर मिस्ट्री' में इंसाफ की एक और बड़ी मुहर लग गई है. अपनी ही पत्नी के शरीर के 72 टुकड़े करने वाले सॉफ्टवेयर इंजीनियर राजेश गुलाटी की उम्रकैद की सजा को नैनीताल हाई कोर्ट ने बरकरार रखा है. राजेश ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी थी, लेकिन हाई कोर्ट ने उसकी हैवानियत को देखते हुए कोई भी राहत देने से साफ इनकार कर दिया है.
7 साल के अफेयर के बाद शादी
राजेश गुलाटी और अनुपमा की प्रेम कहानी 1992 में शुरू हुई थी. 7 साल के अफेयर के बाद दोनों ने 10 फरवरी 1999 को शादी की थी. साल 2000 में राजेश और अनुपमा अमेरिका शिफ्ट हो गए, लेकिन घरेलू अनबन के चलते अनुपमा साल 2003 में वापस भारत आ गई. दो साल बाद राजेश अनुपमा को मनाकर वापस अमेरिका ले गया, दोनों के जुड़वा बच्चे हुए. लेकिन साल 2008 में अमेरिका से देहरादून लौटने के बाद यह रिश्ता 'खूनी अंजाम' तक पहुंच गया.
17 अक्टूबर की वो खौफनाक रात
जांच में सामने आया कि देहरादून आने के बाद से दोनों के बीच झगड़े बढ़ गए थे. बात घरेलू हिंसा और प्रोटेक्शन एजेंट तक पहुंच गई थी, जिस वजह से राजेश को हर महीने अनुपमा को 20 हजार रुपये देने का आदेश दिया गया था. हालांकि राजेश ने सिर्फ एक महीने रुपये दिए. 17 अक्टूबर 2010 को इसी बात को लेकर हुए मामूली झगड़े के बाद राजेश ने अनुपमा को इतनी जोर से थप्पड़ मारा कि उसका सिर दीवार से जा टकराया. जब अनुपमा बेहोश हो गई, तो राजेश ने डर के मारे उसका गला घोंट दिया. इस हत्या के बाद जो हुआ, उसे सुनकर आज भी लोगों की रूह कांप जाती है.
बाजार से खरीदी इलेक्ट्रिक आरी और फ्रीजर
राजेश ने वारदात को छिपाने के लिए एक प्रोफेशनल कातिल की तरह काम किया. उसने बाजार से एक इलेक्ट्रिक आरी खरीदी और अपनी ही पत्नी के शव के 72 टुकड़े कर दिए. लाश की बदबू बाहर न जाए, इसके लिए उसने एक बड़ा डीप फ्रीजर खरीदा और मांस के टुकड़ों को प्लास्टिक बैग में भरकर उसमें छिपा दिया. वह हर रोज शव के कुछ टुकड़ों को मसूरी डायवर्जन के पास नाले में फेंक कर आता था. लाश ठिकाने लगाने का यह खेल महीनों तक चला था.
भाई का शक और वो पासपोर्ट कर्मचारी
अनुपमा के गायब होने के बाद राजेश बच्चों से कहता रहा कि 'मम्मी नानी के घर गई है.' करीब दो महीने तक वह ईमेल भेजकर ससुराल वालों को गुमराह करता रहा. लेकिन जब अनुपमा के भाई को शक हुआ, तो उसने अपने एक दोस्त को 'पासपोर्ट कर्मचारी' बनाकर घर भेजा. राजेश के विरोधाभासी बयानों ने पोल खोल दी. 12 दिसंबर 2010 को जब पुलिस घर पहुंची, तो डीप फ्रीजर खुलते ही पुलिस अधिकारियों के पैरों तले जमीन खिसक गई.
'मैंने अपने पूरे करियर में ऐसा मामला नहीं देखा'
अनुपमा हत्याकांड की जांच की निगरानी करने वाले देहरादून के तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक गणेश सिंह मर्तोलिया ने कहा था, 'इस तरह की हत्याएं और शवों के टुकड़े करने वाला व्यक्ति सामान्य मानसिकता वाला नहीं हो सकता. मैंने अपने पूरे करियर में ऐसा मामला नहीं देखा था, जिसमें शव के साथ इतनी दंरिदगी की गई हो.'
दरिंदगी की कोई माफी नहीं: कोर्ट
साल 2017 में देहरादून की निचली अदालत ने राजेश को दोषी करार देते हुए उम्रकैद और 15 लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी. इसके बाद आरोपी पति ने हाईकोर्ट का रुख किया था. हालांकि 17 दिसंबर 2025 को जस्टिस रविंद्र मैंठाणी और जस्टिस आलोक मेहरा की बेंच ने राजेश की अपील को खारिज कर दिया. अदालत ने साफ किया कि राजेश जैसे क्रूर अपराधी के लिए जेल ही सही जगह है.
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