इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पूर्व सांसद धनंजय सिंह को अपहरण और फिरौती के एक मामले में मिली सजा पर रोक लगाने से शनिवार को इनकार कर दिया. हालांकि उच्च न्यायालय ने उनकी जमानत मंजूर कर ली. न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने धनंजय सिंह द्वारा दायर आपराधिक अपील पर यह आदेश पारित किया .
जौनपुर की एमपी-एमएलए अदालत ने नमामि गंगे परियोजना के प्रबंधक अभिनव सिंघल के अपहरण एवं फिरौती मांगने के 2020 के मामले में धनंजय सिंह और उनके साथी संतोष विक्रम सिंह को छह मार्च 2024 को सात साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी.
उच्च न्यायालय ने सजा निलंबित करने की अर्जी खारिज करते हुए कहा, “राजनीति में शुद्धता आज के समय की मांग है, इसलिए सजा पर रोक लगाने का निर्णय देते समय अदालतों को दुर्लभ और उचित मामलों में विवेकाधिकार का प्रयोग करते समय सावधानी बरतनी चाहिए. कुछ निश्चित अपराधों के लिए सजा का उद्देश्य आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को राजनीति और राजकाज में प्रवेश करने से रोकना है.”
उच्च न्यायालय ने कहा, “आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोग चुनाव प्रक्रिया को प्रदूषित करते हैं क्योंकि चुनाव जीतने के लिए अपराध में लिप्त होने को लेकर उन्हें कोई आपत्ति नहीं होती. जब लंबे आपराधिक इतिहास वाले व्यक्ति निर्वाचित प्रतिनिधि और कानून निर्माता बन जाते हैं, तो वे लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए एक गंभीर खतरा पैदा करते हैं.”
उच्च न्यायालय ने कहा, “जब ऐसे अपराधी नेता का भेष धारण करते हुए पूरी व्यवस्था का मजाक बनाते हैं तो हमारे लोकतंत्र का भविष्य संकट में पड़ जाता है. राजनीति का बढ़ता अपराधीकरण खतरनाक है और यह भ्रष्टाचार बढ़ाने के साथ ही हमारी लोकतांत्रिक राजनीति को खोखला करता रहा है.”
न्यायमूर्ति सिंह ने कहा, “इस मामले के इन तथ्यों पर विचार करते हुए कि गवाहों के मुकरने के कारण 28 आपराधिक मामलों में अपीलकर्ता धनंजय सिंह बरी हो गया और उसके खिलाफ अभी 10 आपराधिक मामले लंबित हैं, मुझे ऐसा कोई अच्छा आधार या विशेष कारण नहीं दिखाई पड़ता कि निचली अदालत के सजा के निर्णय पर रोक लगाई जाए.”
पूर्व सांसद धनंजय सिंह और उनके साथी संतोष विक्रम सिंह ने जौनपुर की अदालत के फैसले को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी. याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति सिंह ने 24 अप्रैल को निर्णय सुरक्षित रख लिया था.
धनंजय सिंह और उनके साथी संतोष विक्रम सिंह के खिलाफ जौनपुर के लाइन बाजार थाने में भारतीय दंड संहिता की धारा 364 (अपहरण), 386 (फिरौती), 506 (आपराधिक धमकी) और 120बी (षड़यंत्र) में मामला दर्ज किया गया था.
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