वकीलों (lawyers) द्वारा न्यायपालिका और जजों पर किए जाने वाले हमलों पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने भारी प्रहार किया है. एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालती फैसलों को राजनीतिक रंगों में शामिल करना घोर अवमानना है. जजों व न्यायपालिका को राजनीतिक उद्देश्यों के तहत नहीं रखा जा सकता. जजों के खिलाफ उचित फोरम पर शिकायतें दर्ज हों लेकिन पक्ष में फैसला न आने पर जजों पर प्रेस में हमला नहीं किया जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वकीलों को प्रेस में डिबेट के माध्यम से फैसलों को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. जजों पर संस्थान की गरिमा को बनाए रखने की जिम्मेदारी भी है. वे प्रेस में जाकर अपना पक्ष या विचार नहीं रख सकते. अवमानना की कार्रवाई ब्रहमास्त्र की तरह है और जरूरत पड़ने पर ही अदालत इसका इस्तेमाल करती है. न्यायपालिका में सर्व करना सेना की सेवाओं से कम नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल होने पर एक सप्ताह में लिस्ट होगी, नया सिस्टम 4 फरवरी से
यह फैसला जस्टिस अरुण मिश्रा की पीठ ने सुनाया है. दरअसल केसों के बंटवारों को लेकर जस्टिस मिश्रा पर कुछ फैसलों के लिए सवाल उठाए गए थे.
VIDEO : एससी/एसटी एक्ट पर रोक नहीं लगाएगा सुप्रीम कोर्ट
दरअसल मद्रास हाईकोर्ट ने वकीलों के लिए अनुशासानात्मक नियम तैयार किए थे जिनके तहत हाईकोर्ट या जिला अदालत किसी वकील को कोर्ट में पेश होने से रोक सकती थी. इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई और सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अरुण मिश्रा व जस्टिस विनीत शरण की बेंच ने हाईकोर्ट के नियम को रद्द कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बार की स्वायत्तत्ता को छीना नहीं जा सकता.