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This Article is From Aug 20, 2012

विज्ञापनों पर खर्च के लिए केंद्र को सुप्रीम कोर्ट में घसीटा गया

विज्ञापनों पर खर्च के लिए केंद्र को सुप्रीम कोर्ट में घसीटा गया
नई दिल्ली: सरकार द्वारा विज्ञापनों पर किए जाने वाले खर्च की लगातार होती आलोचनाओं के बीच एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) ने केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट में घसीटते हुए याचिका दायर की है, और पूछा है कि क्या करदाताओं द्वारा सरकारी खज़ाने में दी गई रकम का यह सर्वश्रेष्ठ उपयोग है।

पिछले सप्ताह फाउंडेशन फॉर रीस्टोरेशन ऑफ नेशनल वैल्यूज़ द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई जनहित याचिका में कहा गया है कि सरकार को 'अपनी तारीफ' के लिए खर्च करने से कोर्ट द्वारा रोका जाना चाहिए। इसी वर्ष मई माह में एनडीटीवी द्वारा सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत दाखिल की गई एक अर्जी के जवाब से साबित हुआ था कि पिछले तीन साल में सरकार ने विज्ञापनों पर 58 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। महात्मा गांधी के सम्मान में जारी किए गए विज्ञापनों पर 15 करोड़ रुपये तथा बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर के सम्मान में जारी किए गए विज्ञापनों पर 12 करोड़ रुपये खर्च किए गए।

सोमवार को भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 68वीं जयन्ती के अवसर पर विभिन्न मंत्रालयों द्वारा उन्हें श्रद्धांजलि देने वाले बड़े-बड़े विज्ञापन लगभग सभी समाचारपत्रों में भरे पड़े हैं। राजीव की समाधि पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, और उनकी बेटी प्रियंका उस समारोह में शिरकत करती दिखाई दे रही हैं, जिसमें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी तथा प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह भी मौजूद हैं।

राजीव गांधी से जुड़े विज्ञापनों पर करदाताओं के 11 करोड़ रुपये खर्च किए गए, जबकि गांधी परिवार (जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी तथा राजीव गांधी) से जुड़े विज्ञापनों पर लगभग 22 करोड़ रुपये खर्च हुए। इनके अलावा राज्य सरकारें भी विज्ञापनों पर खर्च करने में पीछे नहीं हैं, और आंध्र प्रदेश, दिल्ली तथा उत्तराखंड इनमें प्रमुख हैं। आंध्र प्रदेश ने पूर्व मुख्यमंत्री वाईएसआर रेड्डी से जुड़े विज्ञापनों पर आठ करोड़ रुपये खर्च किए।

उल्लेखनीय है कि इस दौरान केंद्र सरकार ने यह भी घोषणा की थी कि वह खर्च कम करने के उद्देश्य से 'मितव्ययिता अभियान' चला रही है, और इसके तहत सरकारी भोज तथा सेमिनार आदि पांच-सितारा होटलों में आयोजित नहीं किया जाएगा, तथा विदेशी दौरों के लिए भी नए नियम लागू किए जाएंगे।

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