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This Article is From Jul 21, 2012

उत्तर प्रदेश में भी बिनायक सेन जैसा ही मामला

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में भी बिनायक सेन जैसा ही एक मामला सामने आया है। पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता सीमा आजाद और उनके पति विश्वविजय पर पुलिस ने देशद्रोह का मामला बनाया था। एक निचली अदालत ने इस आरोप में उन्हें उम्रकैद की सजा सुना दी। अब ये दोनों इस फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाइकोर्ट में गए हैं, जिस पर मंगलवार को सुनवाई होनी है।

सालों से सीमा गरीबों, शोषितों की आवाज उठा रही थीं। बेआवाज लोगों को आवाज देने के लिए वह दस्तक नाम से एक पत्रिका निकालती थीं। सीमा ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से मनोविज्ञान में एमए किया और एक हमख्याल साथी विश्वविजय से शादी की।

उस दिन दिल्ली के इंटरनेशनल बुक फेयर दिल्ली से किताबें खरीदकर जब वह इलाहाबाद लौटीं, तो उन्हें वहीं पर उनके पति के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर इल्जाम लगाया कि वे देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने वाले थे और वे केंद्र में तख्तापलट कर माओवादी सरकार बनाना चाहते हैं, इसलिए वे देशद्रोही हैं।

सीमा के वकील रवि किरण के मुताबिक, झोले के अंदर से जो साहित्य मिला उसको पढ़ने से ही यह निष्कर्ष लिया कि ये लोग आतंकवादी हैं, गैर-कानूनी काम करते हैं और देशद्रोही हैं। पुलिस उनके खिलाफ कोई अपराध नहीं ढूंढ पाई। जो किताबें, मैगजीन बरामद कर सील की गईं, अदालत में सील टूटी पेश हुईं।

उनके साथी कहते हैं कि सत्ता से जुड़े लोग सीमा से नाराज थे, क्योंकि वह जबरदस्ती जमीन अधिग्रहण, गैर-कानूनी खनन और मायावती की गंगा एक्सप्रेसवे जैसी योजनाओं के खिलाफ अपनी मैगजीन में मुहिम चला रही थीं।

सीमा आजाद के पिता एमपी श्रीवास्तव कहते हैं, यह पुलिसिया साजिश है और इसीलिए उसको गिरफ्तार किया गया है। उसके साथ बिल्कुल अन्याय हुआ है।

वहीं मानवाधिकार कार्यकर्ता संदीप पांडेय कहते हैं कि बिनायक सेन को जमानत देते समय सर्वोच्च न्यायालय में जस्टिस मार्कंडेय काटज ने कहा कि जैसे गांधी की किताब किसी के पास होने से कोई गांधीवादी नहीं हो जाता, उसी तरीके से माओवादी साहित्य किसी के पास पाया जाए तो उसको माओवादी नहीं कह सकते।

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