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This Article is From Aug 24, 2016

अदालतों का वक्त बर्बाद करना ज्यादा बड़ा राजद्रोह है

Virag Gupta
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 24, 2016 18:28 pm IST
    • Published On अगस्त 24, 2016 18:28 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 24, 2016 18:28 pm IST
अभिनेत्री से राजनेता बनी रम्या द्वारा सार्क प्रतिनिधि मंडल के सदस्य के तौर पर पाकिस्तान यात्रा के बाद दिए गए बयान से राजद्रोह के कानून तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहस का नया दौर शुरू हो गया है. एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को तमिलनाडु की जयललिता सरकार को अवमानना के राजनीतिक मुकदमों के लिए कड़ी डांट लगाई. रम्या जैसे बेवजह मामलों पर अदालत द्वारा संज्ञान लेना क्या कानूनन गलत नहीं है?

राजद्रोह का कानून भारत और पाकिस्तान की सामूहिक औपनिवेशिक विरासत - भारत में आईपीसी तथा पाकिस्तान में पीपीसी कानून की धारा-124(ए) के तहत राजद्रोह को अपराध बताया गया है. कानून में यह दिलचस्प समानता दोनों देशों में उपनिवेशवाद की सामूहिक विरासत का प्रतीक है. ब्रिटिश भारत में लोकमान्य तिलक तथा महात्मा गांधी के विरूद्ध राजद्रोह के मामले खासे चर्चित हुए थे. इस वर्ष पिछले आठ महीनों में भारत में राजद्रोह के 18 मामले सामने आए हैं. वर्तमान मामले में शिकायतकर्ता वकील के अनुसार रम्या ने पाकिस्तान को नरक नहीं बताकर भारतीय देशभक्तों का अपमान किया है, जो राजद्रोह है. इस अतार्किक शिकायत का कोई कानूनी आधार नहीं होने के बावजूद इसका राजनीतिक ध्रुवीकरण के लिए इस्तेमाल हो रहा है, जिसके लिए क्या अदालत भी जवाबदेह नहीं है?

देश में बेवजह मुकदमों से न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग- न्याय का अधिकार संविधान के तहत मूल अधिकार माना जाता है जिसका कई लोग पब्लिसिटी के लिए दुरुपयोग करते हैं. आए दिन देश के दूर-दराज की अदालतों में सेलेब्रेटीज या बड़े लोगों के विरूद्ध मामले दर्ज कराके कुछ लोग हीरो बनने की कोशिश करते हैं. सुप्रीम कोर्ट द्वारा ऐसे मामलों में न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग पर सख्त आदेश पारित करते हुए पेनाल्टी को 3,000 फीसदी तक बढ़ाने की बात की गई, जिसका निचली अदालतों द्वारा सख्ती से पालन न होने से ऐसे मुकदमों की संख्या में बढ़ोतरी होती है. संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत पड़ोसी देशों से अच्छे संबंधों को सुनिश्चित करने हेतु कानूनी प्रावधान है. इसके अलावा भारत ने एकतरफा तौर पर पाकिस्तान को वर्ष 2006 से सर्वाधिक अनुकूल देश (एमएफएन) का दर्जा दिया हुआ है, फिर रम्या के बयान पर हाय-तौबा क्यों?

बेवजह मुकदमों पर पेनाल्टी के प्रावधान का सख्ती से नहीं होता पालन - देश की विभिन्न अदालतों में तीन करोड़ से अधिक मुकदमे लंबित हैं. रम्या के विरूद्ध कर्नाटक की अदालत में एक वकील द्वारा दर्ज शिकायत पर 27 अगस्त को सुनवाई होगी. कानून के जानकार जानते हैं कि ऐसी शिकायतें अंतत: रद्द हो जाती हैं. क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी को एक पत्रिका के आवरण पृष्ठ पर भगवान विष्णु के तौर पर दर्शाने पर कथित धार्मिक भावनाएं आहत होने के मुकदमे को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था. अभी हाल में 'मोहनजोदाड़ो' फिल्म की रिलीज को रोकने के लिए दायर याचिका को मुंबई उच्च न्यायालय ने निरस्त करते हुए याचिकाकर्ता पर 1.5 लाख का जुर्माना लगाया.  

राजनीति के दौर में अदालतों पर चौकस रहने की जवाबदेही - उत्तर प्रदेश के एक सिविल जज ने केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली द्वारा न्यायपालिका की आलोचना पर राजद्रोह का मामला दर्ज करने का आदेश दिया था. उस आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रद्द करते हुए जज के विरूद्ध सख्त कार्रवाई भी की थी. इसके बावजूद फिजूल के मामलों पर अदालतों द्वारा संज्ञान लेने से न सिर्फ न्यायिक प्रक्रिया का माखौल उड़ता है, वरन आम जनता को भी तकलीफ होती है. अदालत द्वारा रम्या मामले में शिकायत को निरस्त करने के साथ अधिकतम जुर्माना भी लगाना चाहिए, जिससे समाज और देश में न्यायिक अनुशासन बना रहे. मुकदमों के बोझ तले कराहते देश में, बेवजह के मुकदमों को राजद्रोह जैसे अपराध की श्रेणी में मानते हुए कठोर दंड की व्यवस्था होनी चाहिए. इसके लिए जजों की संख्या में बढ़ोत्तरी की बजाय न्याय की गुणवत्ता को सुधारने की ज्यादा जरूरत है, जो अदालतों की संवैधानिक जवाबदेही भी है.

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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