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This Article is From Feb 05, 2016

जेलों में कैदियों के जीवन में सुधार नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने दिशानिर्देश जारी किए

जेलों में कैदियों के जीवन में सुधार नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने दिशानिर्देश जारी किए
प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा जेलों में सुधार किस तरीके से हो इस पर कोर्ट पिछले 35 सालों से फैसले सुनाता रहा है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश का संविधान सभी को गौरव से जीवन जीने का अधिकार देता है वहीं देश की जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों के जीवन में रत्ती भर सुधार ही आ पाया है।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम दिशानिर्देश जारी किए हैं-
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विचाराधीन कैदियों को लेकर बनाई गई कमेटी हर तीन महीने में मीटिंग करे। डिस्ट्रिक्ट लीगल सेल कमेटी का सचिव कमेटी में शामिल हो और वह विचाराधीन कैदियों, सजा पूरी कर चुके कैदियों की रिहाई को लेकर कदम उठाए।
  • कमेटी उन विचाराधीन कैदियों की रिहाई के लिए कदम उठाए जो गरीबी की वजह से बेल बांड नहीं भर पा रहे हैं।
  • कमेटी उस कानून का पालन करने का भी प्रयास करने जिसके तहत पहली बार अपराध करने वाले अपराघी को सामाजिक मुख्य धारा में लौटने का मौका दिया जाता है।
  • गरीब विचाराधीन और सजायाफ्ता कैदियों के लिए वकीलों की नियुक्ति हो। DGP या जेल का IGP कैदियों के स्वास्थ्य, भोजन, कपड़े का विशेष ध्यान रखे और तय करे कि कैदियों की जिंदगी गौरवपूर्ण तरीके से चले।
  • कोर्ट ने महिला और बाल विकास मंत्रालय के सचिव को नोटिस जारी कर कहा है कि मंत्रालय बाल सुधार गृह में रहने वाले नाबालिगों की हालत को सुधारने के लिए नियम बनाए।
  • सुप्रीम कोर्ट इस आदेश के बाद जेलों में बंद कैदियों की अप्राकृतिक मौत, जेलों में स्टाफ की कमी और जेल स्टाफ के उचित परीक्षण पर सुनवाई करेगा।

गौरतलब है कि 13 जून 2013 के पूर्व CJI आरसी लाहोटी ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर कहा था कि जेल में बंद कैदियों की जिंदगी परेशान करने वाली है। उन्होंने जेल में बंद 1382 कैदियों के साथ अमानवीय बर्ताव का हवाला दिया था और कोर्ट ने इस पत्र को जनहित याचिका में तब्दील कर मामले की सुनवाई शुरू की थी।

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