एक ऐसे वक्त जब देश में ज़मीन अधिग्रहण कानून पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और कोयला बिल पर बहस गरम है, उसी वक्त सरकार देश की प्राकृतिक संपदा और संसाधनों से जुड़ा खान एवं खनिज (नियमन) संशोधन बिल पास कराने में जुटी है। इसे माइंस एंड मिनरल (डेवलपमेंट एंड रेग्युलेशन – अमेंडमेंट) बिल भी कहा जाता है।
गौर से देखें तो इस बिल में बाकी दोनों प्रस्तावित बिलों से अधिक कमियां हैं ... अभी इस पर संसद की सेलेक्ट कमेटी बहस कर रही है। सूत्रों के मुताबिक समति के कई सदस्यों ने बिल के बहुत सारे बिंदुओं पर एतराज़ किया है और राज्यसभा में इस बिल के पास होने की राह तब तक आसान नहीं है जब तक इसमें भारी भरकम संशोधन न किये जायें
एनडीटीवी इंडिया ने इस कानून का ध्यान से अध्ययन किया और इस पर जानकारों से बात की, जिससे पता चलता है कि इस कानून के बनने के बाद भी सरकार के तमाम खनिज भंडारों के नीलामी के दावे धरे रह जाएंगे। पहले समझते हैं कि यह बिल है क्या।
भारत में 1957 से चले आ रहे कानून को बदलने के लिए साल 2010 में एक नए कानून का प्रस्ताव आया, लेकिन वह प्रस्ताव 2014 तक कानून नहीं बन सका। नई सरकार ने उस नए बिल की जगह 1957 के पुराने कानून में ही संशोधन पेश किए हैं। ये संशोधन ऐसे बदलाव हैं जो किसी हद तक माइनिंग बिल को कमज़ोर करते हैं।
सरकार के हिसाब से इस बिल के लाने से लौह अयस्क, बॉक्साइट, लाइम स्टोन और मैंगनीज़ की खदानों का आवंटन नीलामी के आधार पर होगा। सरकार यह भी बता रही है कि इस कानून के बन जाने के बाद बाकी खनिजों की नीलामी से वैसा ही फायदा होगा, जैसा कोयला खदानों की ताज़ा नीलामी से हुआ है।
विधेयक को पढ़ें तो इसके लिए संशोधन बिल का पैरा 10.ए.1 कहता है कि इस कानून के बनने के बाद माइनिंग से जुड़ी सारी पुरानी अर्ज़ियां कैंसिल हो जाएगी। लेकिन इसी बिल के अगले पैरा में कहा गया है कि जिन कंपनियों को खोजबीन और सर्वे के लिए इजाज़त (रिकॉनिसेंस परमिट) और प्रोसेपेक्टिव लाइसेंस (यानी काम शुरू करने का लाइसेंस) दे दी गई है, वे बने रहेंगे।
आज हकीकत यह है कि देश में 80 फीसदी से अधिक ज्ञात खनिज भंडारों में खोजबीन सर्वे या प्रोस्पेक्टिव लाइसेंस दिए जा चुके हैं। ऐसे में सवाल यह है कि नया कानून किस काम का होगा। कोयला मामले में याचिकाकर्ता रहे वकील और माइनिंग के जानकार सुदीप श्रीवास्तव कहते हैं, 'कोयला ब्लॉक नीलामी में अब इतना पैसा इसलिए मिल रहा है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने सारे 214 कोल ब्लॉक रद्द किए लेकिन ये माइनिंग बिल तो पुराने खनिज भंडारों को रद्द ही नहीं करता, बल्कि उन्हें कानून वैध बनाता है।'
श्रीवास्तव बताते हैं कि देश में तकरीबन सारे ज्ञात खनिज भंडार सर्वे या प्रोस्पेक्टिव लाइसेंस के ज़रिए दिए जा चुके हैं, जिसे यह नया कानून रद्द नहीं करेगा। वह छत्तीसगढ़ का उदाहरण देते हुए कहते हैं, 'छत्तीसगढ़ में कवरधा लौह अयस्क के भंडार को छोड़ दें तो बाकी खदानों की या तो माइनिंग लीज़ हो चुकी है या कंपनियों के पास उनका प्रोसपेक्टिव लाइसेंस है। ऐसे में ये कानून क्या कर पाएगा?'
साफ है कि इस कानून के आने के बाद एक ओर जहां बड़ी संख्या में खनिज भंडारों की नीलामी नहीं हो पाएगी, वहीं ये विधेयक चालू खदानों की लीज़ की मियाद को भी एक झटके में 30 साल से बढ़ाकर 50 साल कर रहा है। अभी मियाद में यह बढ़ोतरी का अधिकार राज्य सरकारों के पास है, जहां वह राज्य के फायदे के हिसाब से फैसला करते हैं। यहां महत्वपूर्ण है कि इस वक्त गोवा, बेल्लारी और शाह कमीशन की जांच में फंसी बहुत सारी खदानों में कई तरह के विवाद है। एक झटके में 50 साल के लिए ये सारी खदानें उन्हीं निजी कंपनियों के हाथ में रहेंगी जो कटघरे में हैं।
इस बिल को सरकार लोकसभा में अपने बहुमत के दम पर पास करा चुकी है, लेकिन राज्यसभा में विपक्ष के दबाव के चलते उसे यह बिल सेलेक्ट कमेटी को भेजना पड़ा। लेकिन सेलेक्ट कमेटी को विचार के लिए सिर्फ सात दिन का ही वक्त दिया गया है जो नाकाफी लगता है। सेलेक्ट कमेटी के सदस्य और सीपीआई सांसद डी राजा कहते हैं, 'मौजूदा स्वरूप में यह एक त्रुटिपूर्ण बिल है जो न तो आदिवासियों के हितों की रक्षा करता है और न ही राज्यों के अधिकारों का खयाल रखता है।'
सच यह भी है कि 2010 के प्रस्तावित बिल में मुनाफे के 26 फीसदी हिस्से को आदिवासियों के कल्याण में खर्च करने का प्रावधान था। बहुचर्चित समता फैसले में भी कम से कम 20 फीसदी मुनाफा आदिवासी कल्याण पर खर्च करने की बात कही गई, लेकिन मौजूदा बिल रॉयल्टी का सिर्फ एक तिहाई ही खर्च करने की शर्त रखता है जो मुनाफे के 10 फीसद से भी कम होगा।
संविधान के हिसाब से सारे खनिज राज्य की संपत्ति हैं। ऐसे में यह संशोधन बिल राज्यों के अधिकार में जिस तरह से कटौती कर रहा है, वह भी विवादों विवादों में है। मिसाल के तौर पर कौन सा खनिज भंडार किस आकार का खनिज भंडार किस तरह दिया जाएगा यह सब निर्धारण का अधिकार भी केंद्र सरकार ने अपने पास रखा है। भविष्य में होने वाली नीलामी ज़रूर राज्य सरकारें करेंगी लेकिन उसकी शर्तों का अंतिम निर्धारण केंद्र सरकार करेंगी।
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