 
                                            उरी हमले के बाद भारतीय सेना ने पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक की थी
                                                                                                                        - उप-सेना प्रमुख ने संसद की रक्षा मामलों की समिति को हमले की जानकारी दी
- सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में संक्षिप्त जानकारी, सवाल पूछने की इजाजत नहीं
- कांग्रेस ने अंतिम क्षणों में ब्रीफिंग का एजेंडा बदलने पर नाराजगी जतायी
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                                                                                नई दिल्ली: 
                                        भारतीय सेना के दूसरे सबसे सीनियर अधिकारी ने करीब दो हफ्ते पहले एलओसी पार (पीओके) किए गए सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में संसदीय समिति को जानकारी दी. लेकिन इस दौरान किसी को भी सवाल पूछने की इजाजत नहीं दी गई.
रक्षा मामलों की स्टैंडिंग कमेटी ने शुक्रवार को उप-सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत से मुलाकात की, जिन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में छोटा सा बयान दिया. स्टैंडिंग कमेटी के अध्यक्ष बीजेपी नेता और रिटायर मेजर जनरल बी.सी. खंडूरी ने कहा कि उस ऑपरेशन से जुड़ी कोई भी संवेदनशील जानकारी साझा नहीं की गई है.
मेजर जनरल खंडूरी ने कहा कि इस मुलाकात का एजेंडा सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में सिर्फ जानकारी देना था और इसमें सवाल-जवाब की कोई गुंजाइश नहीं थी, क्योंकि स्ट्राइक का ब्यौरा टॉप सीक्रेट है और इसका खुलासा नहीं किया जा सकता. आज की ब्रीफिंग पार्लियामेंट्री कमेटी के रिकॉर्ड का हिस्सा रहेगी और इसे जल्द ही सार्वजनिक किया जाएगा.
पहले रक्षा मंत्रालय के प्रतिनिधि एलओसी के पार किए गए सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में बताने वाले थे. लेकिन बाद में इस ब्रीफिंग का एजेंडा बदला गया और एलओसी के पार पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में आतंकवादियों के इकट्ठा होने वाले क्षेत्र में किए गए हमले से संबंधित जानकारी को इससे हटा लिया गया.
इसकी वजह से कमेटी के सदस्य वरिष्ठ काग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अंबिका सोनी व मधुसूदन मिस्त्री नाराज दिखे और उन्होंने इसका विरोध भी किया. उन्होंने अपने बयान में कहा कि गोपनीयता की आड़ में सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में पार्लियामेंट्री कमेटी को न बताना केवल सांसदों के प्रति विश्वसनीयता की कमी को दर्शाता है.
कुछ कांग्रेस नेताओं को छोड़कर पार्टी पहले दिन से ही पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्णय का समर्थन कर रही है. उसका कहना है कि सरकार को आर्मी द्वारा किए गए सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत जारी करने चाहिए, ताकि पाकिस्तान के उस झूठ से पर्दा उठ सके जिसमें वह कह रहा है कि सर्जिकल स्ट्राइक नहीं हुआ और यह भारत की मनगढंत कहानी है.
मुख्य विपक्षी पार्टी ने कहा कि जब वे सत्ता में थे, तब भी इसी तरह की तीन कार्रवाई भारतीय सेना ने की थी. लेकिन उस समय की सरकार ने इसका प्रचार नहीं किया, ताकि पाकिस्तान भड़ककर कोई जवाबी कार्रवाई न करे. और सरकार मानती थी कि सेना की कार्रवाई के बारे में बताने से उसकी रणनीति और गुप्त ऑपरेशनों पर असर पड़ेगा.
रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर का कहना है कि पिछली सरकार में सीमा पार किसी तरह की कार्रवाई के बारे में उनके पास सूचना नहीं है. उन्होंने कहा शायद एलओसी के पास कोई कार्रवाई की गई होगी, लेकिन सैनिकों ने बॉर्डर पार नहीं किया होगा.
खंडूरी ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा, सेना के पास अलग-अलग तरह के ऑपरेशन करने की क्षमता हमेशा से है. लेकिन किसी तरह का ऑपरेशन किया जाना चाहिए या नहीं, यह फैसला सरकार की तरफ से आता है. इसलिए ऑपरेशन फेल होने पर सरकार को उसकी जिम्मेदारी लेनी होती है. इसी तरह इसकी सफलता का श्रेय भी सरकार को ही जाना चाहिए. उन्होंने इस संबंध में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी का नाम लिया.
सैन्य दिग्गजों और विशेषज्ञों ने बीजेपी और अन्य राजनीतिक पार्टियों की सैन्य कार्रवाई का राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश के लिए आलोचना की है.
                                                                        
                                    
                                रक्षा मामलों की स्टैंडिंग कमेटी ने शुक्रवार को उप-सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत से मुलाकात की, जिन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में छोटा सा बयान दिया. स्टैंडिंग कमेटी के अध्यक्ष बीजेपी नेता और रिटायर मेजर जनरल बी.सी. खंडूरी ने कहा कि उस ऑपरेशन से जुड़ी कोई भी संवेदनशील जानकारी साझा नहीं की गई है.
मेजर जनरल खंडूरी ने कहा कि इस मुलाकात का एजेंडा सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में सिर्फ जानकारी देना था और इसमें सवाल-जवाब की कोई गुंजाइश नहीं थी, क्योंकि स्ट्राइक का ब्यौरा टॉप सीक्रेट है और इसका खुलासा नहीं किया जा सकता. आज की ब्रीफिंग पार्लियामेंट्री कमेटी के रिकॉर्ड का हिस्सा रहेगी और इसे जल्द ही सार्वजनिक किया जाएगा.
पहले रक्षा मंत्रालय के प्रतिनिधि एलओसी के पार किए गए सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में बताने वाले थे. लेकिन बाद में इस ब्रीफिंग का एजेंडा बदला गया और एलओसी के पार पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में आतंकवादियों के इकट्ठा होने वाले क्षेत्र में किए गए हमले से संबंधित जानकारी को इससे हटा लिया गया.
इसकी वजह से कमेटी के सदस्य वरिष्ठ काग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अंबिका सोनी व मधुसूदन मिस्त्री नाराज दिखे और उन्होंने इसका विरोध भी किया. उन्होंने अपने बयान में कहा कि गोपनीयता की आड़ में सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में पार्लियामेंट्री कमेटी को न बताना केवल सांसदों के प्रति विश्वसनीयता की कमी को दर्शाता है.
कुछ कांग्रेस नेताओं को छोड़कर पार्टी पहले दिन से ही पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्णय का समर्थन कर रही है. उसका कहना है कि सरकार को आर्मी द्वारा किए गए सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत जारी करने चाहिए, ताकि पाकिस्तान के उस झूठ से पर्दा उठ सके जिसमें वह कह रहा है कि सर्जिकल स्ट्राइक नहीं हुआ और यह भारत की मनगढंत कहानी है.
मुख्य विपक्षी पार्टी ने कहा कि जब वे सत्ता में थे, तब भी इसी तरह की तीन कार्रवाई भारतीय सेना ने की थी. लेकिन उस समय की सरकार ने इसका प्रचार नहीं किया, ताकि पाकिस्तान भड़ककर कोई जवाबी कार्रवाई न करे. और सरकार मानती थी कि सेना की कार्रवाई के बारे में बताने से उसकी रणनीति और गुप्त ऑपरेशनों पर असर पड़ेगा.
रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर का कहना है कि पिछली सरकार में सीमा पार किसी तरह की कार्रवाई के बारे में उनके पास सूचना नहीं है. उन्होंने कहा शायद एलओसी के पास कोई कार्रवाई की गई होगी, लेकिन सैनिकों ने बॉर्डर पार नहीं किया होगा.
खंडूरी ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा, सेना के पास अलग-अलग तरह के ऑपरेशन करने की क्षमता हमेशा से है. लेकिन किसी तरह का ऑपरेशन किया जाना चाहिए या नहीं, यह फैसला सरकार की तरफ से आता है. इसलिए ऑपरेशन फेल होने पर सरकार को उसकी जिम्मेदारी लेनी होती है. इसी तरह इसकी सफलता का श्रेय भी सरकार को ही जाना चाहिए. उन्होंने इस संबंध में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी का नाम लिया.
सैन्य दिग्गजों और विशेषज्ञों ने बीजेपी और अन्य राजनीतिक पार्टियों की सैन्य कार्रवाई का राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश के लिए आलोचना की है.
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