Maharashtra Coronavirus : भारत में जब कोरोनावायरस की एंट्री हुई थी, तो सबसे ज्यादा प्रभावित मुंबई लगी थी. लेकिन एक साल के बाद अब जब हालात पर नजर डालें तो देखेंगे कि देश की आर्थिक राजधानी ने दूसरी लहर पर काबू पाने में अपनी सफलता से बहुतों को चौंका दिया है. राजधानी दिल्ली के बाहरी इलाके में रहने वाले गौरव अवस्थी नाम के शख्स ने बताया कि वो अपनी पत्नी के इलाज के लिए दिल्ली से मुंबई ले गए, जिसके लिए उन्होंने एक एंबुलेंस को 72,000 रुपए दिए और 24 घंटों का सफर तय किया.
दिल्ली में उस वक्त मेडिकल सुविधाओं की भयंकर किल्लत हो गई. अवस्थी इस संकट में पांच दिनों तक एक बेड के लिए हैरान-परेशान घूमते रहे. उन्होंने कहा कि 'मैं इस शहर का कर्ज कभी नहीं चुका पाऊंगा. मुझे नहीं पता कि अगर मुंबई की स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं होतीं तो मेरी पत्नी आज जिंदा होती या नही.'
पिछले साल पहली वेव शुरुआत के साथ ही मुंबई में मौतें होने लगी थीं. सायन के लोकमान्य तिलक म्युनिसिपल जनरल हॉस्पिटल की 27 साल की एनेस्थेसियोलॉजिस्ट अभिज्ञन्या पात्रा ने बताया कि मई, 2020 तक यहां नॉनस्टॉप मौतें हो रही थी. एक शख्स ने AFP को बताया कि वार्ड में मरीज इतने भरे हुए थे कि कोई स्टाफ खाली नहीं था और उन्हें अपनी मां का डायपर खुद बदला था. सायन अस्पताल का एक वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ था, जिसमें देखा गया था कि कई शवों को काले प्लास्टिक में लपेटकर बेड पर रखा गया था और वहीं पर मरीजों का इलाज हो रहा था.
हेल्पलाइनें लोगों की कॉल से पटी पड़ी थीं, कइयों को सरकारी अस्पतालों में इलाज मिलने का कोई चांस नहीं था. मुंबई के पास तब दो करोड़ की आबादी पर महज 80 एंबुलेंस थे और 425 इंटेंसिव केयर यूनिट थे.
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वायरस का पीछा करने की मुहिम
पिछले साल मई मुंबई के म्युनिसिपिल कमिश्नर बने इक़बाल चहल ने बताया कि बहुत जल्द एक बड़े बदलाव की जरूरत थी. जल्द ही कई नए फील्ड अस्पताल तैयार कर हजारों नए बेड जोड़े गए. प्राइवेट अस्पतालों ने अपने कोविड-19 वार्ड सरकार के हवाले कर दिए और 800 गाड़ियों को एंबुलेंस में बदल दिया गया. हालांकि जाहिर है इससे संक्रमण पर काबू नहीं हो पा रहा था.
चहल ने AFP से कहा कि 'हमें वायरस का पीछा करने की जरूरत थी.' एक प्रोएक्टिव रुख अपनाया गया. मुंबई के धारावी स्लम सहित 55 स्लमों में सख्त लॉकडाउन लगाया गया. सार्वजनिक शौचालयों को लगातार सैनिटाइज किया गया. बड़े स्तर पर कोरोनावायरस टेस्टिंग की गई और वॉलंटियरों की मदद से यह सुनिश्चित किया गया कि कोई भूखा न जाए.
चहल ने बताया कि सभी पॉजिटिव टेस्ट रिपोर्ट 'वॉर रूम्स' से गुजरते थे, जहां डॉक्टर निगरानी रखते थे कि किस केस को कहां भेजने की जरूरत है. इसमें ये नहीं देखा जाता था कि मरीज की हैसियत क्या है, चाहे वो कोई मंत्री हो या फिर कोई स्लम का रहने वाला.
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2020 के अंत तक कोरोना की पहली लहर शांत हो गई और लॉकडाउन प्रतिबंध ढीले पड़ गए. लेकिन मुंबई में प्रशासन ने एक भी बेड कम नहीं किया, इससे हुआ ये कि जब 2021 मार्च में दूसरी लहर के तहत मामले फिर बढ़ने लगे तो मुंबई की स्वास्थ्य सुविधाएं पहले से ज्यादा बेहतर थीं, जबकि दिल्ली सहित कई दूसरे शहरों में स्वास्थ्य सुविधाओं पर पड़े दबाव के चलते कई जगहों पर अस्पतालों के बाहर ही मरीजों की मौत हो गई, शवदाहगृह पटे पड़े नजर आए, लेकिन मुंबई में ऐसा नहीं हुआ. सबसे ज्यादा जनसंख्या घनत्व होने के बावजूद मुंबई में मृत्यु दर कम रही है.
हालांकि, कुछ गंभीर डराने वाली घटनाएं हुई. इकबाल चहल ने बताया कि अप्रैल में एक ही रात में छह अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी हो गई थी, जिससे 168 मरीजों की जान खतरे में थी, लेकिन सबको बचा लिया गया. उन्होंने बताया कि प्रशासन को आशंका थी कि दूसरी लहर भी आएगी.
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तीसरी लहर की तैयारी
पात्रा ने बताया कि उन्हें 'मेडिकल सुविधाओं की जरूरतों के लिए दिल्ली से सहयोगियों के कॉल आते थे, लेकिन इंफ्रा की कमी हो तो डॉक्टर बेबस होते हैं.' मुंबई की गैर-लाभकारी संस्था खाना चाहिए के को-फाउंडर रूबेन मस्करेन्हास बताते हैं कि उनके पास हर सुबह दर्जनों लोग ऑक्सीजन और दवाइयों के लिए कॉल करते थे, लेकिन जैसे जैसे लहर थोड़ी कम हुई, अधिकतर कॉल मुंबई के बाहर से ही होती थीं.
इकबाल चहल ने बताया कि अब प्रशासन तीसरी लहर की तैयारी कर रहा है. ऐसा कहा जा रहा है कि इस लहर में बच्चों को ज्यादा खतरा है, ऐसे में ऑक्सीजन का भंडार बनाया जा रहा है, पीडियाट्रिक फील्ड अस्पताल बनाए जा रहे हैं और सरकारी अस्पतालों की क्षमता बढ़ाई जा रही है. उन्होंने कहा कि 'यह हमारे लिए वेक-अप कॉल जैसा रहा है.'
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