झारखंड के रामगढ़ जिले में राजेंद्र बिरहोर का परिवार और रिश्तेदार, जिसकी कुपोषण के कारण मौत हो गई.
रांची:
गत 24 जुलाई को रामगढ़ जिले के मांडू प्रखंड के चैनपुर गांव के 39 वर्षीय राजेंद्र बिरहोर की पोषण की कमी और बीमारी के कारण मृत्यु हो गई. जन संगठनों के राष्ट्रीय समन्वय (NAPM), भोजन का अधिकार अभियान और ह्यूमन राईट्स लॉ नेटवर्क (HRLN) के सदस्यों के तथ्यान्वेषण दल ने पाया कि राजेंद्र बिरहोर के परिवार को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून अंतर्गत राशन कार्ड नहीं मिला था. मांडू के प्रखंड विकास पदाधिकारी के अनुसार आधार के अभाव में परिवार का राशन कार्ड नहीं बना था.
सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट आदेश दिया है कि “आदिम जनजाति” समुदाय (जिसका हिस्सा बिरहोर समुदाय है) को अन्त्योदय अन्न योजना अंतर्गत प्रति माह 35 किलो राशन का हक़ है. साथ ही, झारखंड के आदिम जनजाति समुदाय के परिवारों को उनके घर पर निशुल्क राशन मिलना है.
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एक वर्ष पहले कमज़ोरी के कारण राजेंद्र बिरहोर ने काम करना छोड़ दिया था. उनकी पत्नी को सप्ताह में 2-3 दिनों का ही काम मिल पाता था. पिछले एक साल में परिवार की आमदानी में गिरावट के कारण राजेंद्र बिरहोर, उनकी पत्नी और छः बच्चे पर्याप्त पोषण से वंचित थे. परिवार को नरेगा में आखिरी बार 2010-11 में काम मिला था. उन्हें आदिम जनजातियों को मिलने वाली सामाजिक सुरक्षा पेंशन की 600 रुपये प्रति माह की राशि भी नहीं मिलती है. प्रखंड विकास पदाधिकारी इस योजना के विषय में अवगत भी नहीं थे.
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राजेंद्र बिरहोर लगभग डेढ़ महीने पहले गंभीर रूप से बीमार हो गए. उनके परिवार के सदस्य उन्हें मांडू के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए क्योंकि स्थनीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर नहीं रहते हैं. सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टर ने उन्हें रिम्स, रांची रेफर कर दिया. स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी चिकित्सक पदाधिकारी तथ्यान्वेषण दल को यह नहीं बता पाए कि क्यों मांडू स्वास्थ्य केंद्र या रामगढ़ के सदर अस्पताल में राजेंद्र बिरहोर की खून व पेशाब की जांच नहीं हो सकती थी. राजेंद्र बिरहोर को स्वास्थ्य केंद्र से कोई दवाई भी नहीं दी गई. रांची आकर रहने-खाने की व्यवस्था की अनिश्चितता के कारण परिवार राजेंद्र बिरहोर को गांव वापस ले गया. गांव में उनकी चिकत्सा के लिए एक स्थनीय “झोलाछाप” डॉक्टर को 3000 रुपये दिए गए जिसके लिए परिवार को घर में पाले सुअर को बेचना पड़ा. राजेंद्र बिरहोर के स्वास्थ्य की स्थिति पर निगरानी नहीं रखने के लिए सामुदायिक केंद्र के डॉक्टर ने गांव की सहिया को ही दोषी ठहराया.
14 जून 2018 को मांडू प्रखंड के ही चितामन मल्हार की भुखमरी से मृत्यु हो गई थी. चितामन मल्हार की मृत्यु की जांच में यह बात भी सामने आई थी कि उनके टोले (कुन्दरिया बस्ती का मल्हार टोला) के किसी भी परिवार के पास राशन कार्ड नहीं था. जब यह दल 26 जून को उस टोले में गया तो पता चला कि अब तक भी किसी परिवार को राशन कार्ड नहीं दिया गया है.
VIDEO : कुपोषण से मौत, व्यवस्था की असफलता
झारखंड में पिछले नौ महीनों में भुखमरी से कम-से-कम 13 व्यक्तियों की मृत्यु हो चुकी है. इनमें से कम-से-कम सात व्यक्तियों की भुखमरी के लिए आधार-सम्बंधित समस्याएं जिम्मेदार थीं. झारखंड सरकार ने अभी तक अभियान की इन मुद्दों से सम्बंधित मांगों, जैसे जन वितरण प्रणाली का सार्वभौमिकरण एवं इसमें दाल व खाद्य तेल शामिल करना, सभी सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों का आधार से जुड़ाव समाप्त करना आदि, पर किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं की है.
सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट आदेश दिया है कि “आदिम जनजाति” समुदाय (जिसका हिस्सा बिरहोर समुदाय है) को अन्त्योदय अन्न योजना अंतर्गत प्रति माह 35 किलो राशन का हक़ है. साथ ही, झारखंड के आदिम जनजाति समुदाय के परिवारों को उनके घर पर निशुल्क राशन मिलना है.
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एक वर्ष पहले कमज़ोरी के कारण राजेंद्र बिरहोर ने काम करना छोड़ दिया था. उनकी पत्नी को सप्ताह में 2-3 दिनों का ही काम मिल पाता था. पिछले एक साल में परिवार की आमदानी में गिरावट के कारण राजेंद्र बिरहोर, उनकी पत्नी और छः बच्चे पर्याप्त पोषण से वंचित थे. परिवार को नरेगा में आखिरी बार 2010-11 में काम मिला था. उन्हें आदिम जनजातियों को मिलने वाली सामाजिक सुरक्षा पेंशन की 600 रुपये प्रति माह की राशि भी नहीं मिलती है. प्रखंड विकास पदाधिकारी इस योजना के विषय में अवगत भी नहीं थे.
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राजेंद्र बिरहोर लगभग डेढ़ महीने पहले गंभीर रूप से बीमार हो गए. उनके परिवार के सदस्य उन्हें मांडू के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए क्योंकि स्थनीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर नहीं रहते हैं. सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टर ने उन्हें रिम्स, रांची रेफर कर दिया. स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी चिकित्सक पदाधिकारी तथ्यान्वेषण दल को यह नहीं बता पाए कि क्यों मांडू स्वास्थ्य केंद्र या रामगढ़ के सदर अस्पताल में राजेंद्र बिरहोर की खून व पेशाब की जांच नहीं हो सकती थी. राजेंद्र बिरहोर को स्वास्थ्य केंद्र से कोई दवाई भी नहीं दी गई. रांची आकर रहने-खाने की व्यवस्था की अनिश्चितता के कारण परिवार राजेंद्र बिरहोर को गांव वापस ले गया. गांव में उनकी चिकत्सा के लिए एक स्थनीय “झोलाछाप” डॉक्टर को 3000 रुपये दिए गए जिसके लिए परिवार को घर में पाले सुअर को बेचना पड़ा. राजेंद्र बिरहोर के स्वास्थ्य की स्थिति पर निगरानी नहीं रखने के लिए सामुदायिक केंद्र के डॉक्टर ने गांव की सहिया को ही दोषी ठहराया.
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झारखंड में पिछले नौ महीनों में भुखमरी से कम-से-कम 13 व्यक्तियों की मृत्यु हो चुकी है. इनमें से कम-से-कम सात व्यक्तियों की भुखमरी के लिए आधार-सम्बंधित समस्याएं जिम्मेदार थीं. झारखंड सरकार ने अभी तक अभियान की इन मुद्दों से सम्बंधित मांगों, जैसे जन वितरण प्रणाली का सार्वभौमिकरण एवं इसमें दाल व खाद्य तेल शामिल करना, सभी सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों का आधार से जुड़ाव समाप्त करना आदि, पर किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं की है.
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