एनएसडी में डांस करते हुए मनोज मिश्रा।
नई दिल्ली:
आम तौर पर यदि आप एक स्थान पर खड़े होकर गोल-गोल घूमें तो दो-तीन मिनट में आपका सिर चकराने लगेगा। पांच-दस मिनट तक घूमेंगे तो हो सकता है आपको चक्कर ही आ जाए। लेकिन मोहब्बत के पर्व वेलेंटाइन डे पर एक कलाकार मनोज मिश्रा इश्क में ऐसे डूबे कि करीब 25 मिनिट तक लगातार अपने स्थान पर घूमते रहे। सूफिया कलाम के साथ इस डांस में उनके चेहरे के भाव भी बदलते रहे। इस दौरान उनके चेहरे पर प्यार में डूबे अहसास का आनंद देखा-पढ़ा जा सकता था। कलाम खत्म होते ही वे अपनी जगह पर स्थिर हो गए, बिना लड़खड़ाए...। और फिर उन्होंने माइक लेकर दर्शकों का आभार भी जताया।
एनएसडी में मंत्रमुग्ध हुए दर्शक
दिल्ली के राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) में इन दिनों भारत रंग महोत्सव चल रहा है। इसी सिलसिले में रविवार की शाम को एनएसडी परिसर में सूफी संगीत की महफिल जमी। इसमें अभिनेता और सूफी कलाकार मनोज मिश्रा ने सूफी संगीत के साथ 'वरलिंग दरवेश' डांस पेश किया। मनोज का डांस कुछ ऐसा था कि दर्शक उन्हें मंत्रमुग्ध होकर देखते रहे। सिर पर काला लंबा चोंगा और विशेष किस्म के सफेद कपड़े पहने मनोज निरंतर घूम रहे थे। उनके हाथ कभी ऊपर उठ जाते, कभी नीचे आ जाते। इसी के साथ भंगिमाएं भी बदलती रहीं। दर्शकों में जिज्ञासा के साथ आशंका थी कि डांस खत्म होने पर वे लड़खड़ाकर गिर जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वह वैसे ही स्थिर हो गए जैसे स्विच ऑफ कर देने पर पंखा स्थिर हो जाता है। दर्शकों की तालियों ने उनकी हौसला अफजाई की।
'वरलिंग दरवेश' यानी सूफी डांस
मंगल पांडे, चोट, हमदम, जेम्स, फिल्मस्टार सहित करीब दस फिल्मों में काम कर चुके अभिनेता मनोज मिश्रा ने NDTV इंडिया को बताया कि इस डांस का नाम 'वरलिंग दरवेश' है लेकिन हमारे देश में आसानी से समझाने के लिए इसे सूफी डांस कह देते हैं। इसे इस्लाम में कैफियत भी कह दिया जाता है। उन्होंने बताया कि वास्तव में यह शब्दों के पार की चीज है, इसका कोई नाम होना ही नहीं चाहिए, लेकिन मजबूरी है दिमाग की समझ के लिए नाम के कुछ शब्दों का उपयोग करना पड़ेगा।
प्रेक्टिस से नहीं सीखा जा सकता 'वरलिंग दरवेश'
डांस के दौरान घूमते हुए भी शरीर और दिमाग को स्थिर रखने के सवाल पर मनोज मिश्रा ने कहा कि इसके लिए कुछ करना नहीं होता। बॉडी और माइंड के बियांड जब आप हो जाएंगे तो यह अपने आप होगा। जैसे इश्क किया नहीं जाता... यह इश्क की बात है। वह हो रहा है, जैसे हवा बह रही है। उन्होंने बताया कि कत्थक, भरत नाट्यम, छाऊ, ब्रेक डांस, डिस्को, वेस्टर्न हो या फोक डांस, इन्हें आप प्रेक्टिस से कर सकते हैं, लेकिन सिर्फ एक सूफी डांस, ऐसा डांस है जो आपको ऊपर वाला गिफ्ट देता है।
मजारों पर नाचते हैं 10-12 घंटे
मनोज ने कहा कि 'मैं मजारों पर 10-12 घंटे घूमता हूं, लगातार वर्ल करता हूं। वैसे शो में तो ढाई तीन घंटे घूमते ही हैं। मैं कविता सेठ और सलीम सुलेमान के साथ शो करता हूं, जो ढाई-तीन घंटे के रहते ही हैं। मेरा सलीम सुलेमान के साथ चार-पांच मिनट का, कविता सेठ के साथ डेढ़-दो घंटे का और असलम साबरी के साथ तीन घंटे का एलबम है।' उन्होंने कहा कि 'मेरी औकात नहीं है, मेरे शरीर की औकात नहीं है कि मैं यह कर पाऊं। यह खुदा ने गिफ्ट दी है।'
नवजात बच्चे की तरह शुद्ध हो जाना है सूफियाना
मनोज मिश्र ने बताया कि वे रामपुर में शो कर रहे थे तो कुछ साइंटिस्ट आए और कहने लगे कि साइंस नहीं मानता कि शरीर यह कर सकता है। 'मैंने उनसे कहा जहां साइंस खत्म होती है वहां यह शुरू होता है, यह ऐसा ही है। इश्क की बात है और इश्क दिल से ही हो सकता है, दिमाग से तो नहीं हो सकता।' उन्होंने बतायाा कि सूफी दर्शन में ईश्वर में ही नहीं जर्रे-जर्रे में इश्क है। पेड़-पौधे, लड़की, बूढ़े, बच्चे... फिर ऐसा कुछ रह नहीं गया कि ईश्वर कोई मूर्ति या ऐसी कोई चीज है। सूफी इंसानियत की बात करता है। सूफी का हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई जैसे किस धर्म से कोई लेना देना नहीं है। इसमें डूबना यानी इंसान का वैसे ही शुद्ध हो जाना है जैसे बच्चा पैदा होता है।
दो घंटे का एकल अभिनय
उनका दो घंटे का सोलो प्ले 'अभिनय से सत्य तक' एक सूफियाना मोनोलॉग है जिससे वह काफी ख्याति अर्जित कर चुके हैं। इन सूफियाना प्रस्तुतियों से मिलने वाले अनुभव के बारे में पूछने पर मनोज मिश्रा कहते हैं कि 'यह प्रेक्टिकल बात है, रसगुल्ला मैंने खाया तो स्वाद मुझे पता होगा। बॉडी-माइंड से परे इश्क हो सकता है। किसी लड़की से आपको इश्क होता है तो आप उसे शब्दों में बयां नहीं कर सकते।'
फरीदाबाद के निवासी मनोज मिश्रा ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया और लखनऊ की भारतेंदु नाट्य अकादमी से एक्टिंग में डिप्लोमा कोर्स भी किया है। वह एनएसडी रंगमंडल में तीन साल काम कर चुके हैं और फिलहाल मुंबई में रह रहे हैं।
एनएसडी में मंत्रमुग्ध हुए दर्शक
दिल्ली के राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) में इन दिनों भारत रंग महोत्सव चल रहा है। इसी सिलसिले में रविवार की शाम को एनएसडी परिसर में सूफी संगीत की महफिल जमी। इसमें अभिनेता और सूफी कलाकार मनोज मिश्रा ने सूफी संगीत के साथ 'वरलिंग दरवेश' डांस पेश किया। मनोज का डांस कुछ ऐसा था कि दर्शक उन्हें मंत्रमुग्ध होकर देखते रहे। सिर पर काला लंबा चोंगा और विशेष किस्म के सफेद कपड़े पहने मनोज निरंतर घूम रहे थे। उनके हाथ कभी ऊपर उठ जाते, कभी नीचे आ जाते। इसी के साथ भंगिमाएं भी बदलती रहीं। दर्शकों में जिज्ञासा के साथ आशंका थी कि डांस खत्म होने पर वे लड़खड़ाकर गिर जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वह वैसे ही स्थिर हो गए जैसे स्विच ऑफ कर देने पर पंखा स्थिर हो जाता है। दर्शकों की तालियों ने उनकी हौसला अफजाई की।
'वरलिंग दरवेश' यानी सूफी डांस
मंगल पांडे, चोट, हमदम, जेम्स, फिल्मस्टार सहित करीब दस फिल्मों में काम कर चुके अभिनेता मनोज मिश्रा ने NDTV इंडिया को बताया कि इस डांस का नाम 'वरलिंग दरवेश' है लेकिन हमारे देश में आसानी से समझाने के लिए इसे सूफी डांस कह देते हैं। इसे इस्लाम में कैफियत भी कह दिया जाता है। उन्होंने बताया कि वास्तव में यह शब्दों के पार की चीज है, इसका कोई नाम होना ही नहीं चाहिए, लेकिन मजबूरी है दिमाग की समझ के लिए नाम के कुछ शब्दों का उपयोग करना पड़ेगा।
प्रेक्टिस से नहीं सीखा जा सकता 'वरलिंग दरवेश'
डांस के दौरान घूमते हुए भी शरीर और दिमाग को स्थिर रखने के सवाल पर मनोज मिश्रा ने कहा कि इसके लिए कुछ करना नहीं होता। बॉडी और माइंड के बियांड जब आप हो जाएंगे तो यह अपने आप होगा। जैसे इश्क किया नहीं जाता... यह इश्क की बात है। वह हो रहा है, जैसे हवा बह रही है। उन्होंने बताया कि कत्थक, भरत नाट्यम, छाऊ, ब्रेक डांस, डिस्को, वेस्टर्न हो या फोक डांस, इन्हें आप प्रेक्टिस से कर सकते हैं, लेकिन सिर्फ एक सूफी डांस, ऐसा डांस है जो आपको ऊपर वाला गिफ्ट देता है।
मजारों पर नाचते हैं 10-12 घंटे
मनोज ने कहा कि 'मैं मजारों पर 10-12 घंटे घूमता हूं, लगातार वर्ल करता हूं। वैसे शो में तो ढाई तीन घंटे घूमते ही हैं। मैं कविता सेठ और सलीम सुलेमान के साथ शो करता हूं, जो ढाई-तीन घंटे के रहते ही हैं। मेरा सलीम सुलेमान के साथ चार-पांच मिनट का, कविता सेठ के साथ डेढ़-दो घंटे का और असलम साबरी के साथ तीन घंटे का एलबम है।' उन्होंने कहा कि 'मेरी औकात नहीं है, मेरे शरीर की औकात नहीं है कि मैं यह कर पाऊं। यह खुदा ने गिफ्ट दी है।'
नृत्य थमने पर मनोज मिश्रा बिना लड़खड़ाए खड़े हो गए।
नवजात बच्चे की तरह शुद्ध हो जाना है सूफियाना
मनोज मिश्र ने बताया कि वे रामपुर में शो कर रहे थे तो कुछ साइंटिस्ट आए और कहने लगे कि साइंस नहीं मानता कि शरीर यह कर सकता है। 'मैंने उनसे कहा जहां साइंस खत्म होती है वहां यह शुरू होता है, यह ऐसा ही है। इश्क की बात है और इश्क दिल से ही हो सकता है, दिमाग से तो नहीं हो सकता।' उन्होंने बतायाा कि सूफी दर्शन में ईश्वर में ही नहीं जर्रे-जर्रे में इश्क है। पेड़-पौधे, लड़की, बूढ़े, बच्चे... फिर ऐसा कुछ रह नहीं गया कि ईश्वर कोई मूर्ति या ऐसी कोई चीज है। सूफी इंसानियत की बात करता है। सूफी का हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई जैसे किस धर्म से कोई लेना देना नहीं है। इसमें डूबना यानी इंसान का वैसे ही शुद्ध हो जाना है जैसे बच्चा पैदा होता है।
दो घंटे का एकल अभिनय
उनका दो घंटे का सोलो प्ले 'अभिनय से सत्य तक' एक सूफियाना मोनोलॉग है जिससे वह काफी ख्याति अर्जित कर चुके हैं। इन सूफियाना प्रस्तुतियों से मिलने वाले अनुभव के बारे में पूछने पर मनोज मिश्रा कहते हैं कि 'यह प्रेक्टिकल बात है, रसगुल्ला मैंने खाया तो स्वाद मुझे पता होगा। बॉडी-माइंड से परे इश्क हो सकता है। किसी लड़की से आपको इश्क होता है तो आप उसे शब्दों में बयां नहीं कर सकते।'
फरीदाबाद के निवासी मनोज मिश्रा ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया और लखनऊ की भारतेंदु नाट्य अकादमी से एक्टिंग में डिप्लोमा कोर्स भी किया है। वह एनएसडी रंगमंडल में तीन साल काम कर चुके हैं और फिलहाल मुंबई में रह रहे हैं।
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