दिल्ली की सीमाओं पर पक्के मकान बना रहे हैं किसान, कीमत से लेकर जरूरत तक जानें सब कुछ

करीब दर्जन भर पक्के मकान बनकर तैयार हैं, जिनकी छत छप्पर की है. ऐसे मकान बनाने को लेकर कोई मौसम का हवाला दे रहा है तो कोई बता रहा है कि जिन ट्रॉलियों में अब तक उनका आसरा था, उसको अब गांव भेज जा रहा है.

नई दिल्ली:

कृषि कानूनों (Farm law 2020) के खिलाफ किसान आंदोलन (Farmer Protest) लंबा खिंचता देख किसानों ने अब टीकरी बॉर्डर पर पक्के मकान (Homes Prepare By Farmer At Delhi Border) बनाना शुरू कर दिए हैं. कई जगहों पर ईंट और सीमेंट का इस्तेमाल हो रहा है. तो कहीं मिट्टी से ईंट की जोड़ाई की जा रही है. करीब दर्जन भर पक्के मकान बनकर तैयार हैं, जिनकी छत छप्पर की है. ऐसे मकान बनाने को लेकर कोई मौसम का हवाला दे रहा है तो कोई बता रहा है कि जिन ट्रॉलियों में अब तक उनका आसरा था, उसको अब गांव भेज जा रहा है. टीकरी बॉर्डर पर साफ देखा जा सकता है कि जगह-जगह ईंटे जमाई जा रही हैं. दरवाजों के लिए चौखट लग चुकी है. ईंट के ऊपर ईंट रखने और दीवार के लिए मिट्टी का घोल तैयार हो रहा है. मजदूर भी खुद किसान हैं और मिस्त्री भी इनके बीच का ही है.

Read Also: ब्रिटेन में किसान आंदोलन पर चर्चा: मंत्री बोले- किसानों का मुद्दा पूरी तरह से भारत का मामला

किसान क्यों बना रहे हैं पक्के मकान
बहादुरगढ़ के पास धरना कर रहे किसान कप्तान बताते हैं कि ऐसे घरों को बनाने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि गांव में गेहूं की कटाई शुरू होने वाली है और वहां ट्रैक्टर  ट्रॉली की जरूरत पड़ेगी. अब तक ट्रॉली में रह रहे थे. जब वो गांव चली जाएंगी तो रहेंगे कहां. लिहाज़ा ये इंतजाम कर रहे हैं. कहीं मिट्टी से मकान बन रहे हैं और सीमेंट का घोल ऊपर से लगेगा तो कहीं ईंटों को सीमेंट से जोड़ा जा रहा है. एक मकान को बनाने का खर्च 20 से 30 हज़ार रुपये बताया जा रहा है.

सामान की कीमत देनी पड़ रही है लेकिन मजदूरी नहीं 
किसानों के बीच ही वो भी हैं जो घर बनाने में सक्षम हैं. मिस्त्री जगदीश कहते हैं कि किसान आंदोलन में आए हैं. खेती भी करते हैं और घर बनाना भी आता है. यहां जो भी घर बना रहे उसकी कोई कीमत नहीं ले रहे हैं. टीकरी बॉर्डर के करीब ऐसे एक दो नहीं, करीब 8-10 मकान तैयार हो चुके हैं. कुछ लोग मकान बनाने में जुटे हैं. तो कहीं मकान में लगाने के लिये ईंटे आकर पड़ी हैं. छप्पर की छत के लिये सामान ये किसान गांव से लेकर आए हैं.

Read Also: कृषि कानूनों के खिलाफ अब बंगाल कूच की तैयारी, किसानों का एक ही मकसद- BJP को हराना

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

लड़ाई लंबी तो आशियाने अस्थायी क्यों?
इन पक्के घरों में खिड़कियां भी हैं और उसके बाहर कूलर भी. किसान सोशल आर्मी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल मलिक की मानें तो बार बार मौसम करवटें बदल रहा है. दो तीन दिन पहले जो बारिश और आंधी आई तो अस्थायी आशियाने बर्बाद हो गए.इसको देखते हुए किसानों को पक्के मकान बनाने की जरूरत पड़ी और इन्हें तैयार करने का काम तेज हो गया है.