नक्सली हमला : दूरदर्शन के पत्रकारों का दिल दहला देने वाला अनुभव, मौत सर पर नाच रही थी

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सली हमले में बाल-बाल बचे दूरदर्शन के पत्रकार धीरज कुमार और मोर मुकुट शर्मा से एनडीटीवी की खास बातचीत

नक्सली हमला : दूरदर्शन के पत्रकारों का दिल दहला देने वाला अनुभव, मौत सर पर नाच रही थी

दंतेवाड़ा में नक्सली हमले में बाल-बाल बचे दूरदर्शन के पत्रकार मोरमुकुट शर्मा और धीरज कुमार.

खास बातें

  • दूरदर्शन के पत्रकारों ने बताई आपबीती
  • कहा- एक युद्ध बाहर चल रहा था और एक अंदर
  • गोलियां चल रही थीं और आसपास बम फट रहे थे
नई दिल्ली:

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में मंगलवार को हुए नक्सली हमले में एक मीडियाकर्मी समेत दो जवानों की मौत हो गई. नक्सली हमले में बाल-बाल बचे दूरदर्शन के पत्रकार धीरज कुमार और मोर मुकुट शर्मा से एनडीटीवी ने खास बातचीत की. उन्होंने मौत को काफी करीब से देखने के अपने अनुभव सुनाए.

नक्सली हमले के दौरान डीडी के लिए रिपोर्टिंग करने जा रहे सहायक कैमरामैन मोरमुकुट शर्मा द्वारा रिकॉर्ड किया गया एक वीडियो चर्चाओं में बना हुआ है. दरअसल, इस वायरल वीडियो में घायल कैमरामैन अपनी मां से कहता है कि मम्मी अगर मैं जीवित बचा तो गनीमत है.

मोरमुकुट शर्मा ने एनडीटीवी को बताया कि जिस कच्चे रास्ते से हम जा रहे थे उस पर नक्सलियों ने अपने पर्चे लगा रखे थे जिसमें वे सरकार का विरोध कर रहे थे. हम तीनों अलग-अलग बाइकों पर थे और हमारे पीछे जवानों की दो बाइकें और थीं.

उन्होंने बताया कि गोली कैमरा पर्सन के सर में लगी और उसके बाद लगातार फायरिंग हुई, तो हम समझ गए कि नक्सली हमला हो गया है. हमारी बाइक गिर पड़ी और मैंने घिसटते हुए सड़क के दाहिनी तरफ ढलान पर अपने आप को छुपा लिया. मैं उनको वहां पर दिख रहा था इसलिए वे लगातार फायरिंग कर रहे थे. मैंने वहां पर मिट्टी खोदी ताकि अपने सर को और नीचे लेकर जाऊं.

शर्मा ने बताया कि पांच  मिनट ही हुआ था कि पता लगा कि वहां पर बहुत सारी लाल चींटी मुझे काटने लग गईं. अगर मैं थोड़ा सा भी हिलता था तो वह तुरंत फायर कर देते थे, क्योंकि मैं दिख जाता था उनको. एक तरफ चीटियां मुझे खा रही थीं, दूसरी तरफ मेरा गला सूखा जा रहा था. हमारे दो जवान शहीद हो गए थे और एक जवान मेरे से 10 फुट की दूरी पर दर्द से कराह रहा था. धीरज जी भी मुझसे करीब 10 फीट की दूरी पर थे और इनसे 5 फुट की दूरी पर ही एक जवान हमारी तरफ ही पोजीशन लिए हुए था.

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उन्होंने बताया कि लगातार फायरिंग चल रही थी और वे लोग अपनी स्थानीय भाषा में जो बोल रहे थे वह बहुत ही अजीब था. आवाज पूरे जंगल में गूंज रही थी. बहुत देर तक वह आवाजें गूंजती रहीं. आवाज आ रही थी कि कोई भी बचना नहीं चाहिए, सब के सब को मारना है. जैसे-जैसे आवाज आ रही थी, हमें लग रहा था कि वे हमारे करीब आते जा रहे हैं.

शर्मा ने कहा कि एक युद्ध बाहर चल रहा था, एक युद्ध अंदर चल रहा था. जो अंदर चल रहा था, वह बाहर के युद्ध से भी ज्यादा खतरनाक था. मैंने स्वीकार कर लिया था कि मृत्यु निश्चित है और कोई विकल्प नहीं है. और ऐसी परिस्थिति में मुझे मां की याद आई और मैंने सोचा कि इससे पहले यह मुझे सूट करें मैं एक वीडियो रिकॉर्ड कर लेता हूं मां के लिए.

मुझे लगा कि कैमरा पर्सन को गोली लगी है वह तो शायद रहे नहीं और क्योंकि हम इस प्रोफेशन से जुड़े हुए हैं तो हमारा ही दायित्व बनता है कि मैं फुटेज ऐसे रिकॉर्ड कर लूं कि अगर मैं न रहूं तो बाद में लोग देख सकें कि घटना कैसी रही होगी. मैंने गीता का थोड़ा अध्ययन किया था, गीता मैं शरीर को नश्वर बताया है, तो चलो शरीर तो आज चला ही जाएगा. हमारा इंश्योरेंस नहीं था.

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रिपोर्टर धीरज कुमार ने कहा कि जब मौत सामने होती है और कोई विकल्प नहीं होता तो आपसे ताकतवर कोई इंसान नहीं होता. मेरे पास कोई विकल्प नहीं था क्योंकि 35-40 मिनट से मेरे ऊपर फायरिंग चल रही थी. और लगभग 50 से 60 गोलियां हम लोग झेल चुके थे, यानी मेरे ऊपर से गुजर चुकी थीं. 6 से 7 बम को हमने अपनी आंखों के सामने फटते हुए देख लिया था. कुछ यह भी देखा कि ग्रेनेड मिट्टी के ऊपर गिर रहे हैं लेकिन फट नहीं रहे. मन में खौफ नहीं रह गया था और हमने मान लिया था कि जब कुछ कर ही नहीं सकते तो जो होगा देखा जाएगा.

उन्होंने बताया कि मेरे मन में ऐसा कोई ख्याल नहीं आया कि यह मेरा अंतिम समय है. मेरा ख्याल मेरी स्टोरी थी. मुझे जब भी जानकारी मिली कि 20 साल में पहली बार इस गांव में मतदान हो रहा है तो मेरे जेहन में बेहद खुशी थी कि आज मैं बहुत ही शानदार जगह पर आया हूं. इसलिए मैंने और कैमरामैन ने लाल शर्ट पहनी थी कि उनको जाकर लाल सलाम बोलेंगे.

उन्होंने बताया कि अपने कमरे से निकलने से पहले ही मैंने अपने कैमरा पर्सन को बोला था कि आज मैं भी लाल शर्ट पहनूंगा और तुम भी लाल शर्ट पहनना और उनको लाल सलाम बोलकर आएंगे. मेरे मन में कोई खौफ नहीं था और मुझे लोकतंत्र के इस पर्व को मनाना था जो 20 साल में उस गांव में नहीं मनाया गया था. अगर मेरा दफ्तर मुझे कहता कि आप वहां रुके रहिए और स्टोरी करके ही आइए तो मैं दावा करता हूं कि मैं वही रुकता और पूरी स्टोरी करके आता.

VIDEO : कैमरामेन का मां के नाम संदेश

धीरज कुमार ने कहा कि लंबे समय से हमारी इंश्योरेंस की मांग रही है. हालांकि हमारे दफ़्तर की तरफ से बताया गया है कि हम लोगों के इंश्योरेंस के लिए पॉलिसी बनाई जा रही है लेकिन वह पॉलिसी क्या तैयार की जा रही है उस पर अभी विचार चल रहा है. जब वह सामने आएगी तभी बता पाएंगे कि उस पॉलिसी में क्या है.


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