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This Article is From Dec 08, 2014

दिल्ली : पार्किंग पर पंगा, भरे बाजार चाकुओं से गोदा

नई दिल्ली:

दिल्ली में कुछ अज्ञात बदमाशों ने दिन दहाड़े बाप-बेटों को दौड़ा दौड़ा कर चाकूओं से गोद दिया। इस दौरान चिखने-चिल्लाने का दौर बदस्तूर चलता रहा, लेकिन मदद का एक भी हाथ आगे नहीं बढ़ा। मानो किसी फिल्मी अंदाज में लोग चाकू लहराते निकल गए। और रह गए तो खून से लथपथ बाप और बेटे।

यह वारदात राजधानी दिल्ली के मशहूर नेहरू प्लेस के इलेक्ट्रॉनिक मार्केट में हुई। बाइक पार्किंग को लेकर शुरू हुई एक बहस ऐसे झगड़े में बदली कि 10−15 लोगों ने आकर कबाड़ बीनने वाले बाप-बेटों को दिनदहाड़े बुरी तरह से चाकुओं से गोद दिया। बाप शकील और बेटे फैजान को गंभीर हालत में एम्स ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया गया है।

घटना की शुरुआत सोमवार करीब साढ़े 11 बजे एक बाइक के पार्किंग को लेकर हुई। मानसरोवर बिल्डिंग के पीछे एक कंप्यूटर स्क्रैप की दुकान में कबाड़ बीनने का काम करने वाले शकील और फैजान ने दुकान के आगे बाइक खड़ी करने पर पहले आपत्ति की। बाइक सवार को मना किया। बात गाली गलौज तक पहुंच गई और इसके बाद नौबत हाथापाई तक उतर आई।

दुकान मालिक और इस वारदात के चश्मदीद मोहम्मद इसरार ने बताया कि एक बाइक पर दो लोग आए और उनकी दुकान के सामने लगी तौलने वाली मशीन के सामने बाइक लगा दी। बोहनी का वक्त था लिहाजा 15 साल के फैजान ने बाइक खड़ी करने से मना किया। इस पर बाइक सवार ने गाली देनी शुरू कर दी। इस पर बाप बेटों ने आपत्ति जताई तो बात हाथापाई तक पहुंच गई।

करीब डेढ़ घंटे बाद यानी दोपहर करीब एक बजे हाथों में चाकू लिए 10−15 लड़के इस मार्केट में दाखिल हुए। भीड़ बाप−बेटे की तरफ लपकी। दोनों जान बचाने के लिए बिल्डिंग की सीढ़ियों की तरफ भागे। भीड़ भी उधर दौड़ी और सीढ़ियों पर भागते 40 साल के शकील को पकड़ने में कामयाब हो गई। फिर क्या था.. लगातार चाकुओं से वार होता रहा, चिखने चिल्लाने की आवाज गूंजती रही। 15 साल का फैजान सीढ़ियों से होते हुए एक टीवी रिपेयर करने की दुकान में छुपने में कामयाब रहा, लेकिन उस भीड़ का एक चेहरा उसको खदेड़ते हुए दुकान तक दाखिल हो गया और फिर लगातार उसपर पांच से छह बार चाकू से हमले किए। इतने में दुकान के अंदर एक कोने में रिपेयर करते दुकान के मालिक सौरभ सिंघल की नजर उन पर पड़ी।

सौरभ ने बताया कि जैसे ही दुकान के भीतर आवाज गूंजी। वह झट से एक कोने से निकला इस हड़बड़ी में उसके सिर पर भी चोट लग गई। उसने देखा कि एक लड़का दूसरे को बुरी तरह से पकड़े हुए है और घूंसे से पीट रहा है। पर जैसे ही नजर नीचे फर्श पर पड़ी तो खून की छींटों को देखकर उसके होश उड़ गए। वह चिल्लाया लेकिन मदद का एक भी हाथ आगे नहीं बढ़ा। अफसोस भरे लहजे में सौरभ कहता है भला मैं अकेला क्या करता।

नेहरू प्लेस में जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। एनाउंसमेंट भी होती रहती है कि आप सीसीटीवी की निगरानी में हैं, लेकिन बदमाशों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। हां ये कैमरे पुलिस के हाथ सुराग देने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। बशर्ते ये कैमरे सुचारू रूप से चल रहे हों, वर्ना उसका भी भगवान ही मालिक है।

इस वारदात में बदमाशों की एंट्री भी फिल्मी थी और एक्जिट भी। बकौल चश्मदीद वे लोग हाथों में चाकू दिखाते हुए वारदात को अंजाम देकर आसानी से सैंकड़ों लोगों के बीच से निकल गए।

इस घटना को देखकर तो यही लगता है कि बदमाशों के बीच ना खाकी का ख़ौफ़ है और ना ही कानून का डर। ये वारदात राजधानी में लोगों की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े करती है। रात के अंधेरे में तो ऐसी वारदात समझ में आती है, लेकिन दिनदहाड़े ये वाकया वाकई दिल दहला देने से कम नहीं।

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