नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में दूसरी बार शपथ ली. यह शपथ ग्रहण समारोह कई कारणों से जाना जाएगा और साथ-साथ एक सहयोगी जनता दल यूनाइटेड द्वारा मंत्रिमंडल में शामिल होने से इनकार करने के लिए भी जाना जाएगा.
शपथ ग्रहण समारोह से ठीक पहले जनता दल यूनाईटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने साफ कहा कि वे भाजपा के साथ हैं लेकिन मंत्रिमंडल में सांकेतिक रूप से शामिल होने के औपचारिक न्योते को स्वीकार करने के प्रस्ताव पर उनकी पार्टी के लोगों ने अपनी सहमति नहीं दी. हालांकि बृहस्पतिवार को भी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने नीतीश कुमार से बातचीत की, लेकिन लगता है कि उनके मंत्रिमंडल में एक से अधिक जगह के प्रस्ताव को नहीं माना गया.
नीतीश कुमार के एक कैबिनेट के पद के न्योते को न मानने के पीछे कई कारण हैं. उनमें सबसे पहला कारण उनकी अपनी पार्टी में संसदों की नाराजगी प्रमुख है. लेकिन इससे भी ज्यादा नीतीश कुमार उस फ़ॉर्मूला से परेशान हैं जिसमें भाजपा कोई निर्णय लेकर सहयोगियों पर थोपने की नीति पर चलने लगी है. भविष्य में खास तौर पर बिहार विधानसभा चुनाव में अगर यही फॉर्मूला दोहराया गया तो उनको लेने के देने पड़ सकते हैं. इसलिए मंत्रिमंडल में शामिल न होने का फैसला सार्वजनिक कर नीतीश कुमार ने भाजपा को साफ़-साफ़ संकेत दे दिया कि उनके ऊपर भाजपा का निर्णय मानने की कोई बाध्यता नहीं है. उनसे यह अपेक्षा नहीं रखी जाए कि भाजपा जैसा चाहेगी वे वैसा करेंगे, भले लोकसभा चुनाव में उसे प्रचंड बहुमत मिला हो.
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नीतीश इस बात को लेकर ख़फा दिखे कि अकाली दल, जिसके दो संसद हैं, उसे और पासवान जिनके छह संसद हैं, की पार्टी का भी एक-एक कैबिनेट मंत्री बनाया गया जबकि उनकी पार्टी जेडीयू के 16 संसद हैं और उसके लिए भी इतनी ही जगह मंत्रिमंडल में रखी गई.
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हालांकि इसका कोई तत्काल राजनीतिक प्रभाव देखने को नहीं मिलेगा लेकिन भाजपा अब नीतीश के हर क़दम को ज़रूर नापतौल कर देखेगी. भाजपा के लोगों का कहना है कि जैसा मीडिया के एक वर्ग में तुरंत नए राजनीतिक समीकरण बनाने और बिगाड़ने का खेल शुरू होता है वैसा कुछ नहीं होगा क्योंकि भाजपा के साथ सरकार चलाने में जो नीतीश कुमार को कम्फ़र्ट है वैसा आरजेडी के साथ बीस महीने की सरकार में कभी देखने को नहीं मिला. इसलिए इस पूरे प्रकरण का एक ही संदेश है कि नीतीश सरकार में भागीदार बनेंगे लेकिन अपनी शर्तों पर. और बिहार के गठबंधन में भी वही बॉस हैं इसलिए कोई निर्णय लेकर भाजपा यह उम्मीद नहीं कर सकती कि वे मान जाएंगे.
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