देश में कोयले की किल्लत झेल रहे थर्मल पॉवर प्लांट्स की संख्या में मामूली कमी दर्ज़ हुई है. हालांकि देश के 135 थर्मल पावर प्लांट्स में से 112 यानी 82.96% में कोयले का स्टॉक क्रिटिकल या सुपर क्रिटिकल स्तर पर बना हुआ है.
कोयला संकट ने सूरत के मिल मालिकों की मुश्किल बढ़ा दी है. आयात होने वाला कोयला पिछले 15 दिनों में तीन गुना महंगा हो गया है. कोयला संकट की वजह से कलर केमिकल्स तीन गुना तक महंगा होने से प्रोडक्शन कॉस्ट और बढ़ गया है.
सूरत में लक्ष्मीपती ग्रुप के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर संजय सरावगी ने एएनआई से कहा, "सूरत में इंडोनेशिया से आयत किया गया कोयला ज्यादा इस्तेमाल होता है. 15 दिन पहले आयात किये गए कोयले की कीमत 4000 से 5000 रूपया प्रति टन थी जो आज बढ़कर 15000 से 17000 रुपये प्रति टन हो गयी है. भरुच और सूरत से सप्लाई होने वाला स्थानीय लिग्नाइट कोयला भी पहले 2500 से 3000 रूपया प्रति टन मिलता था, जिसकी कीमत अब 17000 प्रति टन तक हो गयी है. लिग्नाइट कोयले की सप्लाई भी काफी कम हो गयी है".
उधर इस कोयला संकट के बीच ऊर्जा मंत्रालय की सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी की 13 अक्टूबर की डेली कोल स्टॉक रिपोर्ट के मुताबिक पावर प्लांट्स में कोयला की उपलब्धता में मामूली सुधार हुआ है.
डेली कोल स्टॉक रिपोर्ट (13 अक्टूबर, 2021)
- जिन पावर प्लांट्स में कोयले का स्टॉक क्रिटिकल या सुपर क्रिटिकल स्तर पर है उनकी संख्या 12 अक्टूबर को 116 थी जो 13 अक्टूबर को घटकर 112 हो गयी.
- 4 दिन से कम का कोयले का स्टॉक वाले पावर प्लांट्स की संख्या भी कुछ घटी है, जिनके पास कोयला 1500 किलोमीटर तक दूर की कोयला खानों से पहुंचता है.
- 10 अक्टूबर को ऐसे पावर प्लांट्स की संख्या 70 थी जो 13 अक्टूबर को घटकर 64 हो गयी.
- हालांकि देश के 135 थर्मल पावर प्लांट्स में से 82.96% में कोयले का स्टॉक क्रिटिकल या सुपर क्रिटिकल स्तर पर बना हुआ है.
एक दो हफ्ते में संकट ख़त्म नहीं होगा
पूर्व कोयला सचिव अनिल राज़दान ने एनडीटीवी से कहा, "किसी के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है. आयात होने वाला कोयला भी विदेशों से लाकर पावर प्लांट्स तक पहुंचाने में वक्त लगेगा. ये एक दो हफ्ते में संकट ख़त्म नहीं होगा". ज़ाहिर है इस कोयला संकट दूर करने के लिए सरकार को लम्बे समय तक मशक्कत करनी पड़ेगी.
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