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World Epilepsy Day: भारत में आधे लोग मिर्गी का इलाज शुरू ही क्यों नहीं करते? जानिए 5 बड़े कारण

World Epilepsy Day हमें याद दिलाता है कि मिर्गी बीमारी नहीं, बल्कि इलाज में देरी सबसे बड़ा खतरा है. अगर भारत में अंधविश्वास कम हो, जागरूकता बढ़े, और सामाजिक कलंक हटे तो करोड़ों लोग एक बेहतर, सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन जी सकते हैं.

World Epilepsy Day: भारत में आधे लोग मिर्गी का इलाज शुरू ही क्यों नहीं करते? जानिए 5 बड़े कारण
World Epilepsy Day: हर साल विश्व मिर्गी दिवस पर दुनिया भर में इस बीमारी से जुड़े मिथ्स तोड़े जाते हैं.

World Epilepsy Day 2025: भारत में मिर्गी को लेकर जागरूकता जितनी होनी चाहिए, उतनी आज भी नहीं है. हर साल विश्व मिर्गी दिवस पर दुनिया भर में इस बीमारी से जुड़े मिथ्स तोड़े जाते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि भारत में अभी भी लाखों लोग इलाज की पहली सीढ़ी तक भी नहीं पहुंच पाते. हैरानी की बात यह है कि मिर्गी पूरी तरह कंट्रोल हो सकती है. कई मामलों में सही इलाज शुरू कर दिया जाए तो लोग सामान्य जिंदगी बिना किसी दिक्कत के जी सकते हैं. फिर भी, देश में लगभग 50 प्रतिशत मरीज कभी इलाज शुरू ही नहीं करते और जो करते भी हैं, वे अक्सर बीच में छोड़ देते हैं.

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तो आखिर ऐसा क्यों होता है?

एक ऐसी बीमारी जिसका इलाज उपलब्ध है, दवा बाजार में है, डॉक्टर मौजूद हैं, फिर भी लोग अस्पताल तक पहुंचने से डरते क्यों हैं? इसके पीछे कई गहरी वजहें हैं. ये वजहें सिर्फ मेडिकल नहीं, बल्कि सामाजिक, भावनात्मक और आर्थिक भी हैं. आइए इस मिर्गी दिवस पर समझते हैं वे 5 बड़े कारण, जिनकी वजह से भारत में मिर्गी का इलाज अक्सर शुरू ही नहीं हो पाता.

1. आज भी सबसे बड़ा कारण, भूत-प्रेत और अंधविश्वास पर विश्वास

भारत के कई हिस्सों में मिर्गी को अभी भी कोई आत्मिक पकड़ या बुरी छाया समझ लिया जाता है. कई परिवार दौरे को बीमारी की बजाय किसी अलौकिक कारण से जोड़ देते हैं. ऐसे में वे पहले ओझा-गुनिया, तांत्रिक या घरेलू टोटकों के पास पहुंचते हैं.

इस गलतफहमी की वजह से इलाज शुरू होने में कई महीने, कभी-कभी कई साल तक की देरी हो जाती है. जबकि मिर्गी असल में दिमाग की इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी में गड़बड़ी है, जिसका इलाज केवल न्यूरोलॉजी के माध्यम से ही संभव है.

2. सामाजिक बदनामी और शादी का डर - "लोग क्या कहेंगे?"

मिर्गी से जुड़ा सामाजिक कलंक इतना गहरा है कि कई परिवार इसे छिपाते हैं. कई युवा लड़कियां और लड़के, खासकर ग्रामीण इलाकों में यह डर लेकर जीते हैं कि अगर लोगों को बीमारी का पता चल गया तो उनकी शादी या रिश्ता टूट सकता है. इस डर की वजह से कई परिवार इलाज करवाने के बजाय बीमारी को छिपाने में लग जाते हैं. नतीजा यह होता है कि रोग बढ़ता जाता है और लाइफ क्वालिटी गिरती जाती है.

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Photo Credit: iStock

3. डॉक्टर और दवाइयों की कमी - खासकर छोटे शहरों में

भारत में न्यूरोलॉजिस्ट की संख्या अब भी जरूरत के मुकाबले बहुत कम है. बड़े शहरों में इलाज मिल जाता है, लेकिन छोटे शहरों और गांवों में न तो विशेषज्ञ डॉक्टर मिलते हैं और न ही लगातार दवा उपलब्ध रहती है. कई मरीजों को इलाज के लिए 50–100 किलोमीटर तक सफर करना पड़ता है, जिससे इलाज शुरू ही नहीं हो पाता या शुरू करके भी रुक जाता है.

4. आर्थिक बोझ और लंबा इलाज - "कितने महीने दवा लेनी पड़ेगी?"

मिर्गी का इलाज अक्सर लंबा चलता है. कई मरीजों को लगातार 2–5 साल तक दवाई लेनी होती है. लोगों को लगता है कि यह बीमारी महंगी है या इससे परिवार पर बोझ पड़ेगा. जबकि सच्चाई यह है कि ज्यादातर दवाइयां बहुत सस्ती हैं और सरकारी अस्पतालों में मुफ्त भी मिल जाती हैं. जागरूकता की कमी के कारण लोग यह बात जानते ही नहीं.

5. इंटरनेट और गलत सूचनाओं का असर

सोशल मीडिया पर आज भी कई झूठे दावे फैलते हैं, जैसे दवा से आदत पड़ जाती है, लंबे समय तक दवा लेने से दिमाग खराब होता है, मिर्गी ठीक हो ही नहीं सकती. ऐसी गलत सूचनाएं मरीज और परिवार की हिम्मत तोड़ देती हैं. पर सच यह है कि 80% से ज्यादा मरीज सही दवा और सही समय पर इलाज से पूरी तरह सामान्य जीवन जी सकते हैं.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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