ऋजुता दिवेकर (Rujuta Diwekar) ने हाल ही में इंस्टाग्राम पर एक बहुत ही जरूरी मुद्दे पर वीडियो पोस्ट किया है, जिसमें उन्होंने बताया है कि बढ़ता हुआ स्क्रीन टाइम खासकर शॉर्ट-फॉर्म वीडियो देखना, न केवल हमारी सोचने-समझने की ताकत पर असर डालता है, बल्कि हमें मानसिक रूप से कमजोर और बीमारी की ओर भी ले जा सकता है. उनका यह सचेतना भरा संदेश आज बहुत प्रासंगिक लगता है, क्योंकि हम डिजिटल युग में ऐसे समय में जी रहे हैं, जहां हमारा स्क्रीन समय लगातार बढ़ रहा है.
स्क्रीन टाइम का बढ़ता चलन और चेतावनी
आजकल हर घर में मोबाइल फोन, टैबलेट और कंप्यूटर मौजूद हैं. सोशल मीडिया ऐप्स जैसे इंस्टाग्राम, टिकटॉक और यू-ट्यूब शॉर्ट्स बेहद आकर्षक हो गए हैं. इनमें शॉर्ट-फॉर्म वीडियो बहुत तेजी से फैल रहे हैं यूजर सिर्फ कुछ सेकंड के क्लिप्स देखते हैं और लगातार स्क्रॉल करते रहते हैं. ऋजुता दिवेकर ने उसी प्रवृत्ति की ओर ध्यान दिलाया है. उन्होंने इंस्टाग्राम पोस्ट में चेताया है कि यह बढ़ता स्क्रीन टाइम हमारी मानसिक सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है.
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ऋजुता के शब्दों में "स्टडीज से पता चलता है कि शॉर्ट फॉर्म वीडियो देखने का बढ़ता चलन सोचने-समझने की क्षमता में कमी, एंग्जायटी और स्ट्रेस से जुड़ा है." उन्होंने सुझाव दिया है कि जितना ज्यादा हम अपने फोन पर समय बिताते हैं, उतना ही जरूरी है कि हम "स्क्रीन जोन" बनाएं मतलब घर में एक खास जगह जहां फोन का उपयोग किया जाए, ताकि उसका उपयोग सीमित और कंट्रोल में हो.
कैसे बढ़ता स्क्रीन टाइम मानसिक रूप से हानिकारक हो सकता है:
1. अटेंशन और एग्जिक्यूशन कंट्रोल में कमी
शॉर्ट-फॉर्म वीडियो देखने की लत से हमारे ध्यान (attention) और कार्यकारी नियंत्रण (executive function) में गिरावट आती है. एक EEG अध्ययन में यह पाया गया है कि लंबे समय तक छोटे वीडियो देखना फोकस और आत्म-नियंत्रण की क्षमता को कमजोर कर सकता है.
2. चिंता (एंग्जायटी) और तनाव (स्ट्रैस)
एक व्यापक समीक्षा में यह पाया गया कि शॉर्ट-फॉर्म वीडियो का बहुत ज्यादा उपयोग चिंता और तनाव के साथ जुड़ा हुआ है.
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3. स्लीप क्वालिटी पर असर और सामाजिक चिंता
किशोरों पर एक अध्ययन में दिखाया गया है कि शॉर्ट-फॉर्म वीडियो की लत सोने की खराब क्वालिटी और सामाजिक एंग्जायटी (social anxiety) से जुड़ी है.
4. अनिश्चित ध्यान और छोटा ध्यान स्पैन (Attention Span)
बच्चों में एक अध्ययन ने यह दिखाया कि शॉर्ट-फॉर्म वीडियो मीडिया उपयोग बढ़ने पर उनकी ध्यान केंद्रित करने की क्षमता (inattentive behavior) बढ़ जाती है.
ऋजुता ने बताया घर में स्क्रीन जोन बनाएं:
ऋजुता ने जो सुझाव दिया है, घर में एक स्क्रीन जोन बनाना, वो बहुत व्यावहारिक और असरदार लग सकता है:
नियमित सीमा तय करना: जब फोन इस्तेमाल करने का समय सीमित क्षेत्र में ही हो, तो अनावश्यक स्क्रॉलिंग और अनकंट्रोल वीडियो देखने की आदत कम हो सकती है.
माइंडफुल यूज: स्क्रीन को जानबूझकर उपयोग करना, यानी बिना किसी खाली टाइम वेस्ट किए, बल्कि एक उद्देश्य के साथ फोन उठाना.
फैमिली जोन: घर के अन्य सदस्य भी स्क्रीन जोन से फायदेमंद हो सकते हैं, एक साथ फोन या टैबलेट उपयोग करने की जगह केवल उस जोन तक सीमित करना.
स्क्रीन ब्रेक: लगातार स्क्रॉलिंग में खो जाने की बजाय बीच-बीच में ब्रेक लेना, यह मानसिक तनाव को कम कर सकता है और नींद के लिए भी बेहतर है.
ऋजुता दिवेकर का यह इंस्टाग्राम वीडियो सिर्फ एक चेतावनी नहीं, बल्कि एक मजबूत संदेश है कि हमें डिजिटल दुनिया में अपनी सीमाओं का ध्यान रखना चाहिए. बढ़ता हुआ स्क्रीन टाइम, खासकर छोटे-छोटे वीडियो का अनकंट्रोल उपयोग, सिर्फ समय की बर्बादी नहीं है, यह हमारी सोचने-समझने की शक्ति को कमजोर कर सकता है, हमें चिंता और तनाव में डाल सकता है और हमारी नींद व डेली लाइफ को भी प्रभावित कर सकता है.
स्क्रीन जोन जैसा सरल लेकिन असरदार उपाय हमें इस डिजिटल युग में संतुलन बनाए रखने का रास्ता देता है. यह हमें याद दिलाता है कि टेक्नोलॉजी का उपयोग बुद्धिमानी से करना जरूरी है, न कि उसकी लत में फंस जाना.
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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)
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