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Doctors' Day Explainer: भारत में आम इंसान की तुलना में 10 साल कम जीते हैं डॉक्टर, ये हैं कारण, बढ़ रहा वर्क लोड़, स्ट्रेस, मोटापा, डायबिटीज और सुसाइड का खतरा

भारत में डॉक्टरों के बीच असामयिक मृत्यु यानी 'Premature Deaths' में खतरनाक वृद्धि देखी जा रही है, जिसे जिसे "साइलेंट क्राइसिस" (Silent Crisis) के रूप में देखा जा रहा है. ऐसे में इस बारे में जानते हैं, आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?

Doctors' Day Explainer: भारत में आम इंसान की तुलना में 10 साल कम जीते हैं डॉक्टर, ये हैं कारण, बढ़ रहा वर्क लोड़, स्ट्रेस, मोटापा, डायबिटीज और सुसाइड का खतरा
Doctors' Day Special Explainer: भारत में कम है डॉक्टरों की एवरेज ऐज, इन कारणों से हो रहीं प्रीमेच्योर डेथ

Doctors' Day Special Explainer: हम सभी जानते हैं कि डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया है, क्योंकि वह कई लोगों की जान बचाते हैं, ऐसे में अगर आपसे कहें कि भारत में डॉक्टरों का जीवनकाल औसत व्यक्ति की तुलना में कम से कम 10 साल कम है, तो क्या आप इस पर यकीन करेंगे? यकीनन आपको यह जानकर हैरानी हो रही होगी, लेकिन आपको बता दें, यह सच है.

यह अनुमान लगाया गया है कि भारत में 1 मिलियन से अधिक डॉक्टर हैं, और हर साल 80,000 से अधिक मेडिकल छात्र 529 कॉलेजों से स्नातक होते हैं. हालांकि, स्नातक होने के बाद अधिकांश डॉक्टर निजी और शहरी क्षेत्रों में अभ्यास करना पसंद करते हैं, जिससे सरकारी और ग्रामीण अस्पतालों में अत्यधिक काम, कम वेतन और थके हुए डॉक्टर रह जाते हैं, जो कॉर्पोरेट क्षेत्रों द्वारा शोषण के लिए अत्यधिक असुरक्षित हैं.

दरअसल भारत डॉक्टरों के बीच असामयिक मृत्यु यानी 'Premature Deaths' में खतरनाक वृद्धि देखी जा रही है, जिसे जिसे "साइलेंट क्राइसिस" (Silent Crisis) के रूप में देखा जा रहा है. ऐसे में इस बारे में जानते हैं, आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?

क्यों डॉक्टरों की हो रही है प्रीमैच्योर डेथ?

जो डॉक्टर हमारी सेवा के लिए दिन रात काम करते हैं, उनकी प्रीमैच्योर डेथ यानी समय से पहले मृत्यु होना गंभीर और चिंताजनक समस्या है, लेकिन एक्सपर्ट्स के अनुसार, डॉक्टर को अपने प्रोफेशनल लाइफ और निजी जीवन में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

ऐसे में ज्यादातर डॉक्टर वर्क लोड, कम भुगतान, शैक्षणिक तनाव, कॉरपोरेट अस्पतालों के टारगेट, धूम्रपान, शराब का अधिक सेवन, खराब खाना- पीना,  नींद की कमी, व्यायाम न कर पाना और अस्पतालों में रोगी/रिश्तेदारों के हिंसक हमलों से परेशान होकर आत्महत्या के माध्यम से असामयिक मौत के रास्ता चुन रहे हैं. यही नहीं हेल्थकेयर सिस्टम में कई डॉक्टर्स अपनी शिकायत भी दर्ज करते हैं, लेकिन उनकी शिकायतों को अनदेखा कर दिया जाता है.

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    जानें- भारत में डॉक्टर की एवरेज उम्र क्या है?

    अनुमान है कि भारत में 1 मिलियन से अधिक डॉक्टर हैं, और हर साल 80,000 से अधिक मेडिकल छात्र 529 कॉलेजों से ग्रेजुएट होते हैं. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के पुणे चैप्टर द्वारा किए गए एक स्टडी के अनुसार, एक भारतीय डॉक्टर का औसत जीवनकाल (55-59 वर्ष) है, जबकि सामान्य आबादी का औसत जीवनकाल (69-72 वर्ष) होता है, ऐसे में डॉक्टर का जीवनकाल लगभग 10 वर्ष कम है.

    इस बारे में हमने बात की डॉक्टर मिज़ानुर रहमान काज़ी से, जो एक डॉक्टर और राजनीतिज्ञ हैं. वे मेघालय विधानसभा में विधायक हैं और काज़ी इंडियन एसोसिएशन ऑफ़ क्लिनिकल मेडिसिन के फेलो हैं और क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लोर से डायबिटीज़ मैनेजमेंट (DFID) में डिस्टेंस फ़ेलोशिप के प्राप्तकर्ता हैं. उन्होंने कहा - 

    ''एक डॉक्टर के रूप में हमारा अथक कार्यभार चुपचाप हमारे स्वास्थ्य को नष्ट कर रहा है, जो इस बात की स्पष्ट याद दिलाता है कि "चिकित्सकों को भी दूसरों को ठीक करने की अपनी क्षमता को बनाए रखने के लिए देखभाल की जरूरत होती है."

    राम मनोहर लोहिया अस्‍पताल में न्‍यूरो सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ अजय चौधरी से भी हमने इस बारे इस बारे में बात की और उनकी राय ली' 

    "सबसे बड़ी विडंबना यह है कि दूसरों के स्वास्थ्य और कल्याण को सुनिश्चित करने वाले डॉक्टर, दिन-प्रतिदिन के तनाव और थकान के कारण खराब स्वास्थ्य स्थिति का सामना कर रहे हैं!"

    कौन सी बीमारियों का शिकार हो रहे हैं डॉक्टर

    दिल के रोग

    कुछ डॉक्टर्स से एनडीटीवी से अपने मन की बात साझा करते हुए बताया कि कार्डियोलॉजी विभाग में काम करने वाले दिल के डॉक्टर्स में तनाव और नींद की कमी के कारण खुद दिल के दौरों के मामले काफी ज्यादा बढ़ रहे हैं. 

    तनाव 

    डॉक्टरों में तनाव काफी ज्यादा देखा जा रहा है. कई स्टडी इस बात के पर्याप्त प्रमाण दे चुकी हैं कि डॉक्टर उच्च स्तर के तनाव से पीड़ित हैं. दुर्घटना और आपातकालीन (ए एंड ई) विभागों में व्यावसायिक तनाव के स्तर की जांच करने वाले एक राष्ट्रीय डाक सर्वेक्षण में मनोवैज्ञानिक तनाव के उच्च स्तर पाए गए. इस सर्वे में पता चला कि 44% कंसल्टेंट स्टाफ में तनाव की संभावना थी, 18% ने अवसाद और 10% ने आत्महत्या के विचार की रिपोर्ट की. 

    नीदरलैंड में, एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 55% चिकित्सा विशेषज्ञों ने तनाव के उच्च स्तर को स्वीकार किया. बर्नआउट को केवल तनाव के बजाय उच्च स्तर के तनाव और नौकरी की संतुष्टि के निम्न स्तर के संयोजन के रूप में अनुभव किया गया था. अमेरिका में चिकित्सकों के स्वास्थ्य कार्यक्रमों के आंकड़ों से पता चला है कि कुछ विशेषज्ञताएं दूसरों की तुलना में अधिक जोखिम रखती हैं.

    मोटापा 

    240 डॉक्टरों के एक सर्वे में से 54 फीसदी या तो ज़्यादा वज़न वाले थे और 54.5 फीसदी डॉक्टरों में शारीरिक गतिविधि का निम्न स्तर पाया गया. इस अध्ययन में पाया गया कि ज्यादातर डॉक्टर या तो अधिक वजन वाले या मोटे थे. डॉक्टरों के बीच मोटापे के बोझ को कम करने के लिए पर्याप्त नींद लेने और निजी प्रैक्टिस में बिताए जाने वाले घंटों को कम करने जैसे परिवर्तनीय जोखिम कारकों पर जागरूकता की जरूरत है.
     

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    डॉक्टरों में बढ़ा सुसाइड का खतरा, कई हैं लंबी शिफ्ट से परेशान

    हाल ही में NMC के एक सर्वे के निष्कर्ष बताते हैं कि कम से कम 36,000 मेडिकल प्रोफेशनल मेंटल हेल्थ से पीड़ित हैं. पिछले पांच वर्षों (2018-2023) में, 153 MBBS छात्र और 1,120 PG छात्र अपने संस्थानों से बाहर हो गए है. इसके अलावा, 122 मेडिकल छात्रों (MBBS में 64 और PG कोर्सेज में 58 छात्र) के आत्महत्या करने से मरने का अनुमान है.

    हम अक्सर मीडिया में डॉक्टरों की मौत की खबरें देखते हैं. ऐसे ही एक मामले में, देहरादून के एक 25 साल के जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर ने कथित तौर पर अपने थीसिस सबमिशन को लेकर हरासमेंट के कारण अपनी जान दे दी थी.  दिसंबर 2023 में हुई इसी तरह की एक घटना में, मद्रास मेडिकल कॉलेज से 32 साल की पोस्ट ग्रेजुएट छात्रा को एक लंबी शिफ्ट से लौटने के बाद घर पर मृत पाया गया था.  

    यही नहीं राजस्थान के दौसा जिले के एक प्राइवेट अस्पताल में Medical Practitioner डॉ. अर्चना शर्मा ने 29 मार्च, 2022 को अपने सुसाइड नोट में लिखा था, "मेरी मौत मेरी बेगुनाही साबित कर सकती है. निर्दोष डॉक्टरों को परेशान न करें.

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    चौंका सकते हैं ये आंकड़े

    • भारतीय डॉक्टर, आम आबादी की तुलना में औसतन 10 साल कम जीते हैं। - IMA
    • डॉक्टरों का औसत जीवनकाल- 50-55 साल
    • सभी पेशेवरों में डॉक्टरों की आत्महत्या की दर सबसे अधिक है
    • भारत में 80% से अधिक डॉक्टर तनाव महसूस करते हैं
    • 36.6% चिंता से पीड़ित हैं और 24.2% तनाव में हैं.
    • 30% डॉक्टर अवसाद से पीड़ित हैं.
    • 5 साल में 122 मेडिकल छात्रों ने की आत्महत्या.

    वे संभावित कारण, जिससे जा रही है डॉक्टर की जान

    1- रिस्क टेकिंग बिहेवियर: मेडिकल छात्र या डॉक्टर हमेशा रिस्क लेने के लिए तैयार रहते हैं और जान जोखिम में डालकर लोगों की जान बचाते हैं, लेकिन इस दौरान उन्हें मौत का सामना भी करना पड़ जाता है.

    2- एकेडमिक प्रेशर:  जो छात्र डॉक्टर बनना चाहते हैं और NEET और USMLE जैसी परीक्षाओं में शामिल हो रहे हैं, उन्हें कई बार अत्यधिक शैक्षणिक दबाव का भी सामना करना पड़ता है, जिसके कारण वह सुसाइड कर लेते हैं.

    3- रैगिंग: देश भर में एंटी-रैगिंग कमिटी द्वारा किए गए प्रयासों के बावजूद, कई मेडिकल कॉलेज में रैगिंग आज भी होती है, ऐसे में  रैगिंग अधिक हो जाने पर कई मेडिकल छात्र असामयिक मृत्यु का रास्ता चुनने पर मजबूर हो जाते हैं.

    4- कम सैलरी: राज्यों और विभिन्न संस्थानों में मिलने वाली सैलरी से भी डॉक्टर परेशान रहते हैं.  पीजी डॉक्टरों को अपने पहले, दूसरे और तीसरे वर्ष के लिए क्रमशः 45,000 रुपए, 50,000 रुपए और 55,000 रुपए एवरेज सैलरी मिलनी चाहिए, लेकिन उन्हें काफी कम पैसा दिया जाता है जिससे वह अक्सर परेशान रहते है.

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    5- अनजस्टिफाई वर्किंग आवर्स:  असामयिक मृत्यु का एक मुख्य कारण अनजस्टिफाई वर्किंग आवर्स भी है.  हालांकि मद्रास हाई कोर्ट ने लगातार 8 घंटे से अधिक काम नहीं करने का फैसला सुनाया है, जिसे तमिलनाडु सरकार ने बरकरार रखने के लिए कहा है.

    हाल ही में, तमिलनाडु स्वास्थ्य विभाग ने सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में नर्सिंग असिस्टेंट और हाउसकीपिंग स्टाफ के लिए काम के घंटों को भी संशोधित कर 8 घंटे कर दिया है, लेकिन आज भी कई राज्यों में अपनी शिफ्ट से ज्यादा काम कर रहे हैं, जिसके कारण वह मेंटली काफी परेशान होते हैं.

    6- टॉक्सिक माहौल से परेशान हैं डॉक्टर:  सीनियर डॉक्टरों/HODs की पारंपरिक मानसिकता कि "मैंने अपने दिनों में लगातार 72 घंटे काम किया, आप क्यों नहीं कर सकते? अक्सर ऐसी शिकायत देखी गई हैं कि सीनियर डॉक्टर अपने जूनियर डॉक्टर की बातों का अनदेखा कर देते हैं और एक टॉक्सिक माहौल बनाकर रखते हैं.

    इसी के साथ रेजिडेंट और इंटर्न के साथ दुर्व्यवहार करते हैं और छुट्टियों लेने पर बहुत परेशान करते हैं. ऐसे में काम कर रहे हैं डॉक्टर बुरी तरह से डिस्टर्ब हो जाते हैं.

    (अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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