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This Article is From Dec 20, 2024

दुर्लभ बीमारी से जूझ रही 11 महीने की बच्ची, जान बचाने के लिए चाहिए 14 करोड़ का इंजेक्शन, लगाई SC से गुहार

Supreme Court SMA Appeal: 11 महीने की बच्ची के जीवन को बचाने के लिए उसके माता-पिता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. इस याचिका का उद्देश्य सरकार से 14 करोड़ रुपये का इंजेक्शन "जोलगेन्स्मा" उपलब्ध कराने का अनुरोध करना है.

दुर्लभ बीमारी से जूझ रही 11 महीने की बच्ची, जान बचाने के लिए चाहिए 14 करोड़ का इंजेक्शन, लगाई SC से गुहार
SMA Type 1 Treatment: स्पाइनल मस्क्युलर एट्रोफी (SMA) एक अनुवांशिक बीमारी है.

Rare Genetic Disease Treatment: दुर्लभ बीमारियों के इलाज के लिए महंगे इलाज की जरूरत ने एक बार फिर से भारत में हेल्थकेयर सिस्टम और मेडिकल पॉलिसी पर बहस छेड़ दी है. हाल ही में, (Spinal Muscular Atrophy) स्पाइनल मस्क्युलर एट्रोफी (SMA) टाइप 1 नामक एक दुर्लभ और गंभीर बीमारी से जूझ रही 11 महीने की बच्ची के जीवन को बचाने के लिए उसके माता-पिता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. इस याचिका का उद्देश्य सरकार से 14 करोड़ रुपये का इंजेक्शन "जोलगेन्स्मा" उपलब्ध कराने का अनुरोध करना है, जो इस बीमारी का एकमात्र प्रभावी इलाज माना जाता है.

क्या है स्पाइनल मस्क्युलर एट्रोफी (SMA) टाइप 1?

स्पाइनल मस्क्युलर एट्रोफी (SMA) एक अनुवांशिक बीमारी है, जो मांसपेशियों को कमजोर करती है और शारीरिक कार्यों को प्रभावित करती है. SMA टाइप 1 सबसे गंभीर प्रकार है, जिसमें रोगी की मांसपेशियां धीरे-धीरे काम करना बंद कर देती हैं.

यह बीमारी SMN1 जीन में होने वाले दोष के कारण होती है, जो मोटर न्यूरॉन्स (मांसपेशियों को नियंत्रित करने वाले न्यूरॉन्स) को हेल्दी रखने में मदद करता है. इसके अभाव में रोगी को सांस लेने, खाना खाने और सामान्य गतिविधियों में भी कठिनाई होती है.

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जोलगेन्स्मा: सबसे महंगा इलाज

ज़ोलगेन्स्मा (Zolgensma) एक जीन थैरेपी इंजेक्शन है, जिसे इस बीमारी के इलाज के लिए प्रभावी माना गया है. यह एक बार दी जाने वाली खुराक है, जो SMN1 जीन की कमी को पूरा करती है और मांसपेशियों की कार्यक्षमता को रिस्टोर करने में मदद करती है.

हालांकि, इस इंजेक्शन की कीमत लगभग 14-16 करोड़ रुपये है, जिससे इसे दुनिया का सबसे महंगा इंजेक्शन माना जाता है. इतने महंगे इलाज का खर्च उठाना किसी भी आम परिवार के लिए लगभग असंभव है, खासकर भारत जैसे देश में जहां स्वास्थ्य बीमा कवरेज सीमित है.

सुप्रीम कोर्ट में याचिका:

11 महीने की बच्ची के माता-पिता ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि सरकार "दुर्लभ बीमारियों की राष्ट्रीय नीति" के तहत इस महंगे इलाज का खर्च उठाए. इस नीति का उद्देश्य दुर्लभ बीमारियों से जूझ रहे मरीजों को वित्तीय और चिकित्सा सहायता प्रदान करना है.

याचिका में यह तर्क दिया गया है कि बच्ची का जीवन बचाने के लिए यह इंजेक्शन जल्द से जल्द लगाया जाना जरूरी है, क्योंकि SMA टाइप 1 का इलाज समय पर न होने पर यह बीमारी जानलेवा साबित हो सकती है.

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दुर्लभ बीमारियों के इलाज की चुनौती:

भारत में दुर्लभ बीमारियों के इलाज के लिए उपलब्ध नीतियां और संसाधन सीमित हैं. महंगे उपचार और जटिल चिकित्सा प्रक्रिया के कारण मरीजों और उनके परिवारों को भारी आर्थिक बोझ उठाना पड़ता है.

दुर्लभ बीमारियों की राष्ट्रीय नीति के तहत सरकार को ऐसे मामलों में आर्थिक सहायता प्रदान करनी चाहिए, लेकिन नीति को लागू करने में अभी भी कई चुनौतियां हैं, जैसे फंड की कमी और महंगे इलाज की सीमित उपलब्धता.

समाज और सरकार की भूमिका:

इस मामले ने देशभर में एक बड़ा सवाल खड़ा किया है: क्या जीवन बचाने के लिए जरूरी उपचार को हर व्यक्ति की पहुंच में लाना संभव है?

  • नीतियों का सुदृढ़ीकरण: सरकार को दुर्लभ बीमारियों के लिए उपचार को ज्यादा सुलभ बनाने के लिए नीतियों में सुधार करना चाहिए.
  • क्राउडफंडिंग: कई परिवार इलाज का खर्च उठाने के लिए क्राउडफंडिंग का सहारा लेते हैं. यह तरीका प्रभावी है, लेकिन दीर्घकालिक समाधान नहीं है.
  • दवा कंपनियों से सहयोग: दवा निर्माताओं को भी इन दवाओं की कीमत कम करने के लिए कदम उठाने चाहिए.

SMA टाइप 1 जैसी दुर्लभ बीमारियों से जूझ रहे मरीजों का जीवन बचाने के लिए सामूहिक प्रयासों की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट में दाखिल इस याचिका से यह उम्मीद जागती है कि सरकार दुर्लभ बीमारियों के इलाज के लिए मजबूत कदम उठाएगी. यह मामला सिर्फ एक बच्ची के इलाज का नहीं, बल्कि भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की न्यायसंगत पहुंच सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा पड़ाव हो सकता है.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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