History Of Laddu: जो खाए पछताए जो ना खाए वो ललचाए
दूर से मीठा लगता है ये कड़वा लड्डू प्यारा
ये लाइनें फिल्मी गाने की है जिसमें लड्डू का जिक्र हो रहा है. आगे का गाना तो आपको पता ही होगा. हालांकि हम यहां शादी की बात नहीं कर रहे हैं . हम बात कर रहे हैं मीठे लड्डू की जो हर त्योहार और ख़ास मौके पर हमारी थाली में सजता है, चाहे वह गणेश चतुर्थी हो, दीवाली की मिठास, या फिर शादी-ब्याह की खुशी. क्या आपको पता है कि इस लड्डू की भी अपनी एक कहानी है? आज स्वाद का सफर में हम बात करेंगे लड्डू की. जिसका इतिहास हजारों साल पुराना है. इस लड्डू ने न सिर्फ हमारे स्वाद को बल्कि हमारी परंपराओं और संस्कृति को भी गहराई से प्रभावित किया है. लड्डू का हर दाना हमारे इतिहास से जुड़ा है. तो आइए जानते हैं कि इस स्वादिष्ट मिठाई की शुरुआत कैसे हुई और कैसे बना यह हर भारतीय समारोह का अभिन्न हिस्सा. क्या आपको पता है कि जिस लड्डू को हम अपनी खुशियों का स्वाद के साथ जोड़कर मुंह मीठा करते हैं वो असल में एक मिठाई नहीं बल्कि एक दवाई थी.
आइए जानते हैं कैसे बना था सबसे पहला लड्डू
बता दें कि लड्डू का इतिहास बेहद पुराना है. देश दुनिया का पहला लड्डू भारत में बना था. आपको जानकर हैरानी होगी कि इसे किसी हलवाई ने नहीं बल्कि एक प्रसिद्ध चिकित्सक सुश्रुत ने तैयार किया था. वह उस समय लड्डू को दवाई के तौर पर अपने मरीजों को देते थे. तब लड्डू को मिठाई नहीं बल्कि औषधि के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था.
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इतिहास और आर्युवेदिक ग्रथों से मिली जानकारी के अनुसार लड्डू का इजाद विख्यात चिकित्सक सुश्रुत ने किया था. ऐसा माना जाता है कि उस समय घी, तिल, गुड़, शहद, मूंगफली के साथ दूसरे मेवों को मिलाकर इसे तैयार किया जाता था. यह उन मरीजों को दिया जाता था जिनकी सर्जरी की जाती थी. इस लड्डू को बनाने में इन चीजों के साथ औषधि, जड़ी-बूटी और संक्रमण से बचाने वाली चीजें और शहद मिलाकर इसे तैयार किया जाता था. आयुर्वेद में तिल और गुड़ से बने लड्डू को ताकत बढ़ाने और शरीर को गर्म रखने के लिए खाया जाता था। खासकर सर्दियों में तिल के लड्डू का सेवन शरीर को ऊर्जा और गर्मी प्रदान करता था.
कुछ ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के मुताबिक, चोल वंश में सैनिक जब भी युद्ध के लिए निकलते थे, लड्डू को बतौर ‘गुड लक' साथ लेकर चलते थे। बदलते दौर के साथ लड्डू भी बदला और इसमें गुड़ के बजाए चीनी का इस्तेमाल होने लगा. इसका उल्लेख कुछ सदियों पहले के कन्नड़ साहित्य और लगभग एक सदी पहले बिहार महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ के रूप में मिला. वहां पर एक मिठाई तैयार की जाती थी जो जिसमें बेसन से बनी बूंदी का इस्तेमाल किया जाता था.
"भारत के हर कोने में लड्डू की अलग-अलग किस्में पाई जाती हैं। उत्तर भारत में बेसन के लड्डू, दक्षिण में रवा लड्डू, महाराष्ट्र में तिल के लड्डू और बंगाल में नारियल के लड्डू जैसी विविधताएँ मिलती हैं। हर क्षेत्र के स्वाद और सामग्री में भिन्नता इसे और भी खास बनाती है।" इन लड्डुओं ने अपनी जगह अंतरराष्ट्रीय मिठाइयों की सूची में भी बनाई है. यह आज सिर्फ भारत नहीं बल्कि दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी प्रसिद्ध हो चुका है.
समय के साथ लड्डुओं को लोग अपनी पसंद के हिसाब से बनाने लगे. और आज के समय में आपको लड्डुओं की कई वैरायटी मिलती हैं. तो ये था लड्डुओं का इतिहास अब आप भी जब किसी को लड्डू खिलाइए तो मुंह मीठा कराने से पहले इसके इतिहास के बारे में जरूर बताइए.
तो, यह थी लड्डुओं की मीठी और सदियों पुरानी कहानी, जो हमारे इतिहास, परंपराओं और त्योहारों का अभिन्न हिस्सा है. तो अगली बार जब आप लड्डू खाएं, तो इसके स्वाद के साथ इसके इतिहास की इस अनोखी यात्रा को भी याद करें.
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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)
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