यह ख़बर 11 अप्रैल, 2014 को प्रकाशित हुई थी

फिल्म रिव्यू : मनोरंजक तरीके से संदेश देती है 'भूतनाथ रिटर्न्स'

मुंबई:

फिल्म 'भूतनाथ रिटर्न्स' सीक्वेल है और इसकी कहानी वहीं से शुरू होती है, जहां पहली फिल्म 'भूतनाथ' खत्म हुई थी... मोक्ष पाने के बाद भूतनाथ जब अपनी दुनिया में पहुंचते हैं तो उनका मज़ाक उड़ाया जाता है कि वह किसी को डराने में कामयाब नहीं हुए... इसलिए भूतनाथ दोबारा दुनिया में आते हैं, ताकि बच्चों को डरा सकें, और उतरते हैं मुंबई की सबसे बड़े झुग्गी-झोंपड़ी वाले इलाके धारावी में... वैसे, इस बार भी वह डराने में भले ही नाकाम रहे, लेकिन उन्होंने एक बच्चे के साथ मिलकर बुराई के खिलाफ जंग लड़ी, और लड़ा चुनाव...

भूतनाथ अपने-आप में ऐसा भूत है, जिससे दर्शक डरते नहीं, प्यार करते हैं और पहली फिल्म की सफलता इस बात की गवाह है... यह एक कॉमेडी फिल्म है, जो मज़ाक-मज़ाक में बहुत कुछ कह देती है... 'भूतनाथ रिटर्न्स' में दिखाया गया है कि किस तरह नेता गलत तरीकों से चुनाव लड़ते हैं, किस तरह भ्रष्टाचार देश को खा रहा है, और किस तरह सरकारी मशीनरी बिना रिश्वत काम नहीं करती... यहां तक कि 'भूतनाथ रिटर्न्स' में बहुत चालाकी से यह भी बता दिया गया है कि सिस्टम के खराब रवैये के ही कारण भूत भी चुनाव लड़ सकता है...

'भूतनाथ रिटर्न्स' के डायलॉग्स अच्छे हैं, जो कभी हंसाते हैं, कभी देश के सिस्टम पर तंज कसते हैं... अमिताभ बच्चन और बोमन ईरानी की भूमिकाएं तो अच्छी हैं ही, 'अखरोट' नामक बच्चे का किरदार भी खूब निभाया है पार्थ भालेराव ने... डायरेक्टर नितेश तिवारी ने कहानी को सुंदरता से पर्दे पर उतारा है...

फिल्म का फर्स्ट हाफ खासतौर से अच्छा और कॉमेडी से भरा है, लेकिन सेकंड हाफ में फिल्म कुछ सीरियस हो गई, इसीलिए फिल्म थोड़ी लंबी भी लगने लगती है... हालांकि फिल्म ने अपनी पकड़ नहीं छोड़ी, मगर पहले हिस्से की तरह दूसरे हिस्से की कहानी को भी थोड़े और हल्के-फुल्के अंदाज़ में कहा जाता, तो शायद फिल्म ज़्यादा मनोरंजक होती...

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कुल मिलाकर 'भूतनाथ रिटर्न्स' न सिर्फ मनोरंजक है, बल्कि चुनाव के इस माहौल में दर्शकों को संदेश भी देती है कि वे वोट ज़रूर दें, क्योंकि वोट ही आपकी आवाज़ है... इस फिल्म के लिए मेरी रेटिंग है - 3.5 स्टार...