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आर्थिक आधार पर आरक्षण : कौन सा दल है पक्ष में और कौन खड़ा है विपक्ष में? जानें- विस्तार से

ज्यादातर विपक्षी दलों ने स्वागत किया है, हालांकि कुछ दलों ने सरकार की मंशा पर सवाल भी खड़े किये हैं और इसे महज चुनावी स्टंट बताया है.

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ज्यादातर राजनैतिक दल आरक्षण (Quota For Economically Weak) के पक्ष में खड़े नजर आ रहे हैं. (प्रतिकात्मक चित्र)
नई दिल्ली:

जनरल कैटेगरी के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण सुनिश्चित करने वाला संविधान का 124वां संशोधन विधेयक मंगलवार को लोकसभा में पेश कर दिया गया. केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने यह विधेयक पेश किया. एक दिन पहले ही केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इसे मंजूरी प्रदान की थी. आपको बता दें कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सामान्य श्रेणी में आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 10 प्रतिशत आरक्षण को सोमवार को मंजूरी दी थी.  सूत्रों के अनुसार, यह कोटा मौजूदा 50 प्रतिशत आरक्षण से अलग होगा. सामान्य वर्ग को अभी आरक्षण हासिल नहीं है.  समझा जाता है कि यह आरक्षण आर्थिक रूप से पिछड़े ऐसे गरीब लोगों को दिया जाएगा, जिन्हें अभी आरक्षण का फायदा नहीं मिल रहा है. आरक्षण का लाभ उन्हें मिलने की उम्मीद है जिनकी वार्षिक आय आठ लाख रूपये से कम होगी और 5 एकड़ तक जमीन होगी. मोदी सरकार के इस फैसले का ज्यादातर विपक्षी दलों ने स्वागत किया है, हालांकि कुछ दलों ने सरकार की मंशा पर सवाल भी खड़े किये हैं और इसे महज चुनावी स्टंट बताया है. आइये आपको बताते हैं कि आर्थिक आधार पर आरक्षण के मुद्दे पर विभिन्न राजनैतिक दलों की क्या राय है. 

आर्थिक आधार पर आरक्षण : विभिन्न दलों की राय

  1. कांग्रेस ने आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को आरक्षण का समर्थन किया है. हालांकि यह पूछे जाने पर कि क्या कांग्रेस संसद में इस विधेयक को पारित करने में मदद करेगी, इस पर पार्टी प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, 'आर्थिक तौर पर गरीब व्यक्ति के बेटे या बेटी को शिक्षा एवं रोजगार में अपना हिस्सा मिलना चाहिए. हम इसके लिए हर कदम का समर्थन करेंगे.' 

  2. समाजवादी पार्टी (सपा) ने भी गरीब सर्वणों को 10 फीसदी आरक्षण के बिल का समर्थन किया है. सपा नेता रामगोपाल यादव ने कहा: ओबीसी के लिए भी आबादी के हिसाब से आरक्षण होना चाहिए था. सरकार इस लक्ष्मण रेखा (50 फीसदी आरक्षण सीमा) को पार कर रही है तो ओबीसी को उनकी आबादी के हिसाब से 54 फीसदी आरक्षण दिया जाना चाहिए. 

  3. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने भी केंद्र सरकार द्वारा सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर तबके को 10 फीसदी आरक्षण देने वाले बिल का समर्थन किया है. बहुजन समाज पार्टी (BSP) सुप्रिमो मायावती के मुताबिक वह विधेयक का समर्थन करेंगी. 

  4. बिहार के मुख्यमंत्री एवं जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार ने भी जनरल कैटेगरी के आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को 10 फीसद आरक्षण का समर्थन किया है. तो वहीं, लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान भी सरकार के इस फैसले के साथ खड़े नजर आ रहे हैं. 

  5. भाजपा की सहयोगी आरपीआई (अठावले) के नेता रामदास अठावले ने मोदी सरकार के इस फैसले को 'मास्टरस्ट्रोक' करार दिया और कहा कि इससे अगड़ी और पिछड़ी जातियों के बीच का फर्क खत्म होगा.

  6. नेशनल कांन्फ्रेंस के नेता उमर अबदुल्ला ने कहा है कि गरीब सवर्णों को आरक्षण का ऐलान साबित करता है कि चुनाव का बिगुल अच्छे से बजाया जा चुका है. 

  7. आम आदमी पार्टी की बात करें तो राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने कहा कि, 'आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्ण जातियों के लिये मोदी सरकार ने 10% आरक्षण का स्वागत योग्य चुनावी जुमला छोड़ दिया है, ऐसे कई फ़ैसले राज्यों ने समय-समय पर लिये लेकिन 50% से अधिक आरक्षण पर कोर्ट ने रोक लगा दी क्या ये फ़ैसला भी कोर्ट से रोक लगवाने के लिये एक नौटंकी है'.

  8. झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हेमंत सोरेन ने कहा कि पिछड़ा वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण मिलना चाहिए, अदिवासियों के कोटे को 26 से 27 फीसदी किया जाए. अल्पसंख्यकों के लिए झारखंड में 5 फीसदी कोटा दिया जाए.

  9. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने भी नरेंद्र मोदी सरकार के आरक्षण के निर्णय की सराहना की है. उन्होंने कहा कि यह देर से लिया गया निर्णय है. हालांकि मांझी ने इसे सही एवं सकारात्मक फैसला बताया.

  10. बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि 15 फीसदी आबादी वाले को अगर दस प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है तो 85 प्रतिशत आबादी वाले अनुसूचित जाति जनजाति और समाज के अन्य पिछडे वर्ग को 90 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए.

  11. रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवहा ने कहा कि जब भी उन्होंने सरकार के समक्ष 50 प्रतिशत के आरक्षण को अपर्याप्त बताया, उन्हें यह दलील दी गयी कि यह उच्चतम न्यायालय की तरफ से तय किया गया है और इसमें बदलाव के लिए संविधान में संशोधन करना होगा पर आज वे संविधान में बिना किसी संशोधन के लिए इस आशय का निर्णय कैसे ले रहे हैं. यह चुनावी स्टंट है और 'जुमलेबाजी' का एक अन्य उदाहरण है.


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