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चातुर्मास में क्यों नहीं किए जाते कोई भी मांगलिक कार्य, क्या है धार्मिक मान्यता, ज्योतिषाचार्य से जानिए

आखिर में ऐसा क्यों होता है कि चातुर्मास के समय शुभ काम नहीं किए जाते क्या इसके पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व ज्योतिषाचार्य डॉ. अलकनंदा शर्मा से...

चातुर्मास में क्यों नहीं किए जाते कोई भी मांगलिक कार्य, क्या है धार्मिक मान्यता, ज्योतिषाचार्य से जानिए
इस दिन विशेष रूप से विष्णु मंदिरों में पूजन के पश्चात प्रतिमा को शयन कराया जाता है.

Chaturmas 2025 : आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को हरिशयन या देवशयनी एकादशी कहा जाता है. इस दिन चातुर्मास आरम्भ हो जाता है. कथाओं के आधार पर इस दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में चार मास के लिए शयन करने चले जाते हैं. इसी कारण हिन्दुओं में इन चार मासों में विवाह प्रतिष्ठा, नव भवन निर्माण आदि शुभ कार्य निषेध रहते हैं. आखिर में ऐसा क्यों होता है कि चातुर्मास के समय शुभ काम नहीं किए जाते क्या है इसके पीछे धार्मिक महत्व जानिए ज्योतिषाचार्य डॉ. अलकनंदा शर्मा से...

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डॉ. अलकनंदा शर्मा बताती हैं कि हरि शयन का शाब्दिक अर्थ को सुगमता से इस प्रकार समझा जा सकता है, संस्कृत साहित्य में हरि शब्द- सूर्य, चंद्र, वायु, विष्णु आदि अनेक अर्थों में प्रयुक्त होता है. शयन से तात्पर्य है शक्तियों के मन्द पड़ जाने से है. 

इन चार मासों में जबकि आकाश-सिन्धु अभितः व्याप्त जलघरों के कारण प्रतिस्पर्धा करते हुए प्रतीत होते हैं, श्री हरि (सूर्य और चन्द्र) इस विस्तृत सागर में विलीन से दिखाई देते हैं. वर्षा ऋतु की उमस, जो हरि (वायु) के शयन में चले जाने कारण, उनके अभाव से उत्पन्न होती है उसका अन्य किसी ऋतु में अनुभव नहीं होता है. सर्वव्यापी हरि हमारे शरीर में भी अनेक रूपों में निवास करते हैं.  शरीरस्थ गुणों में सत्व गुण हरि का प्रतिनिधि है. शरीर की सप्त धातुओं में पित्त को हरि का प्रतिनिधि माना गया है.

इस दिन के बाद चौमासा अर्थात 4 माह का वर्षाकाल आरम्भ हो जाने से प्राकृतिक वायु मण्डल में परिवर्तन होने से पित्त की गति मंद हो जाती है, दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि शरीर समष्टि में विद्यमान हरि सो जाते हैं.

इसके अतिरिक्त इस ऋतु में सत्व गुण रूपी हरि का शयन-मन्दता का प्रत्यक्ष उदाहरण है कि रजोगुण और तमोगुण में होने से प्राणियों में भोग-विलास प्रवृत्ति, निद्रा, आलस्य का प्रभाव अत्यधिक दिखाई देने लगता है. इन प्रवृत्तियों के निराकरण के विशेष आहार-विहार की व्यवस्था व चातुर्मास में विविध प्रकार के व्रतानुष्ठान, कथा-प्रवचन, यज्ञ योगादि का आयोजन होता है. जिससे सत्व विरहित मन भी उत्पथ गामी न बन सके

इस दिन विशेष रूप से विष्णु मंदिरों में पूजन के पश्चात प्रतिमा को शयन कराया जाता है व रात्रि-जागरण कर आरती की जाती है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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