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This Article is From May 31, 2019

Vat Savitri Vrat 2019: जानिए वट सावित्री व्रत की तिथ‍ि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्‍व और व्रत कथा

वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) 3 जून को है. इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के ल‍िए व्रत रखती हैं. मान्‍यता है क‍ि इस व्रत के प्रताप से पति पर आए संकट दूर हो जाते हैं और दांपत्‍य जीवन खुशियों से भर जाता है.

Vat Savitri Vrat 2019: जानिए वट सावित्री व्रत की तिथ‍ि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्‍व और व्रत कथा
Vat Savitri Vrat: वट सावित्री व्रत के दिन बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर पूजा-अर्चना की जाती है
नई दिल्‍ली:

वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) हिन्‍दू धर्म को मानने वाली स्‍त्रियों के लिए बेहद खास है. मान्‍यता है कि इस व्रत को रखने से पति पर आए संकट चले जाते हैं और आयु लंबी हो जाती है. यही नहीं अगर दांपत्‍य जीवन में कोई परेशानी चल रही हो तो वह भी इस व्रत के प्रताप से दूर हो जाते हैं. सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखद वैवाहिक जीवन की कामना करते हुए इस दिन वट यानी कि बरगद के पेड़ के नीचे पूजा-अर्चना करती हैं. इस दिन सावित्री (Savitri) और सत्‍यवान (Satyavan) की कथा सुनने का विधान है. मान्‍यता है क‍ि इस कथा को सुनने से मनवांछित फल की प्राप्‍ति होती है. पौराणिक कथा के अनुसार सावित्री मृत्‍यु के देवता यमराज से अपने पति सत्‍यवान के प्राण वापस ले आई थी. 

यह भी पढ़ें: जानिए कैसे अपने पति को यमराज से छीन लाईं थी सावित्री

वट सावित्री व्रत कब है 
‘स्कंद' और ‘भविष्योत्तर' पुराण' के अनुसार वट सावित्री का व्रत हिन्‍दू कैलेंडर की ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा तिथि पर करने का विधान है. वहीं, ‘निर्णयामृत' इत्यादि ग्रंथों के अनुसार वट सावित्री व्रत पूजा ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की अमावस्या पर की जाती है. उत्तर भारत में यह व्रत ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को ही किया जाता है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह व्रत हर साल मई या जून महीने में आता है. इस बार वट सावित्री का व्रत 3 जून को है. 

वट सावित्री व्रत की तिथि और शुभ मुहूर्त 
अमावस्‍या तिथि प्रारंभ:
02 जून 2019 को शाम 04 बजकर 39 मिनट से 
अमावस्‍या तिथि समाप्‍त: 03 जून 2019 को दोपहर 03 बजकर 31 मिनट तक 

वट सावित्री व्रत का महत्‍व 
वट का मतलब होता है बरगद का पेड. बरगद एक विशाल पेड़ होता है. इसमें कई जटाएं निकली होती हैं. इस व्रत में वट का बहुत महत्व है. कहते हैं कि इसी पेड़ के नीचे स‍ावित्री ने अपने पति को यमराज से वापस पाया था. सावित्री को देवी का रूप माना जाता है. हिंदू पुराण में बरगद के पेड़े में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास बताया जाता है. मान्यता के अनुसार ब्रह्मा वृक्ष की जड़ में, विष्णु इसके तने में और शि‍व उपरी भाग में रहते हैं. यही वजह है कि यह माना जाता है कि इस पेड़ के नीचे बैठकर पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होती है.  

वट सावित्री पूजन सामग्री 
सत्यवान-सावित्री की मूर्ति, धूप, मिट्टी का दीपक, घी, फूल, फल, 24 पूरियां, 24 बरगद फल (आटे या गुड़ के) बांस का पंखा, लाल धागा, कपड़ा, सिंदूर, जल से भरा हुआ पात्र और रोली. 

वट सावित्री व्रत विधि 
-
महिलाएं सुबह उठकर स्‍नान कर नए वस्‍त्र पहनें और सोलह श्रृंगार करें. 
- अब निर्जला व्रत का संकल्‍प लें और घर के मंदिर में पूजन करें. 
- अब 24 बरगद फल (आटे या गुड़ के) और 24 पूरियां अपने आंचल में रखकर वट वृक्ष पूजन के लिए जाएं. 
- अब 12 पूरियां और 12 बरगद फल वट वृक्ष पर चढ़ा दें. 
- इसके बाद वट वृक्ष पर एक लोट जल चढ़ाएं. 
- फिर वट वक्ष को हल्‍दी, रोली और अक्षत लगाएं. 
- अब फल और मिठाई अर्पित करें. 
- इसके बाद धूप-दीप से पूजन करें. 
- अब वट वृक्ष में कच्‍चे सूत को लपटते हुए 12 बार परिक्रमा करें. 
- हर परिक्रमा पर एक भीगा हुआ चना चढ़ाते जाएं. 
- परिक्रमा पूरी होने के बाद सत्‍यवान व सावित्री की कथा सुनें. 
- अब 12 कच्‍चे धागे वाली एक माला वृक्ष पर चढ़ाएं और दूसरी खुद पहन लें. 
- अब 6 बार माला को वृक्ष से बदलें और अंत में एक माला वृक्ष को चढ़ाएं और एक अपने गले में पहन लें. 
- पूजा खत्‍म होने के बाद घर आकर पति को बांस का पंख झलें और उन्‍हें पानी पिलाएं.
- अब 11 चने और वट वृक्ष की लाल रंग की कली को पानी से निगलकर अपना व्रत तोड़ें. 

वट सावित्री व्रत की कथा 
पौराणिक कथा के अनुसार भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान न थी. उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए अनेक वर्षों तक तप किया जिससे प्रसन्न हो देवी सावित्री ने प्रकट होकर उन्हें पुत्री का वरदान दिया. फलस्वरूप राजा को पुत्री प्राप्त हुई और उस कन्या का नाम सावित्री ही रखा गया.

सावित्री सभी गुणों से संपन्न कन्या थी, जिसके लिए योग्य वर न मिलने के कारण सावित्री के पिता दुःखी रहने लगे. एक बार उन्होंने पुत्री को स्वयं वर तलाशने भेजा. इस खोज में सावित्री एक वन में जा पहुंची जहां उसकी भेंट साल्व देश के राजा द्युमत्सेन से होती है. द्युमत्सेन उसी तपोवन में रहते थे क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था. सावित्री ने उनके पुत्र सत्यवान को देखकर उन्हें पति के रूप में वरण किया.

इधर, यह बात जब ऋषिराज नारद को ज्ञात हुई तो वे अश्वपति से जाकर कहने लगे- आपकी कन्या ने वर खोजने में भारी भूल की है. सत्यवान गुणवान तथा धर्मात्मा है परन्तु वह अल्पायु है और एक वर्ष के बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी. नारद जी के वचन सुन राजा अश्वपति का चेहरा विवर्ण हो गया. "वृथा न होहिं देव ऋषि बानी" ऎसा विचार करके उन्होने अपनी पुत्री को समझाया कि ऐसे अल्पायु व्यक्ति के साथ विवाह करना उचित नहीं है. इसलिए अन्य कोई वर चुन लो.

इस पर सावित्री अपने पिता से कहती है कि पिताजी- आर्य कन्याएं अपने पति का एक बार ही वरण करती है, तथा कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है. अब चाहे जो हो, मैं सत्यवान को ही वर रूप में स्वीकार कर चुकी हूं. इस बात को सुन दोनों का विधि-विधान के साथ पाणिग्रहण संस्कार किया गया और सावित्री अपने ससुराल पहुंचते ही सास-ससुर की सेवा में रत हो गई. समय बदला, नारद का वचन सावित्री को दिन -प्रतिदिन अधीर करने लगा. उसने जब जाना कि पति की मृत्यु का दिन नजदीक आ गया है तब तीन दिन पूर्व से ही उपवास शुरू कर दिया. नारद द्वारा कथित निश्चित तिथि पर पितरों का पूजन किया. नित्य की भांति उस दिन भी सत्यवान अपने समय पर लकड़ी काटने के लिए चला गया तो सावित्री भी सास-ससुर की आज्ञा से अपने पति के साथ जंगल में चलने के लिए तैयार हो गई़.

सत्यवान वन में पहुंचकर लकड़ी काटने के लिये वृ्क्ष पर चढ़ गया. वृ्क्ष पर चढ़ते ही सत्यवान के सिर में असहनीय पीड़ा होने लगी. वह व्याकुल हो गया और वृक्ष से नीचे उतर गया. सावित्री अपना भविष्य समझ गई तथा अपनी गोद का सिरहाना बनाकर अपने पति को लिटा लिया. उसी समय दक्षिण दिशा से अत्यन्त प्रभावशाली महिषारुढ़ यमराज को आते देखा. धर्मराज सत्यवान के जीवन को जब लेकर चल दिए तो सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ी. पहले तो यमराज ने उसे देवी-विधान समझाया परन्तु उसकी निष्ठा और पतिपरायणता देख कर उसे वर मांगने के लिए कहा.

सावित्री बोली- "मेरे सास-ससुर वनवासी तथा अंधे है. उन्हें आप दिव्य ज्योति प्रदान करें." यमराज ने कहा, "ऐसा ही होगा और अब तुम लौट जाओ." यमराज की बात सुनकर उसने कहा, "भगवान मुझे अपने पतिदेव के पीछे-पीछे चलने में कोई परेशानी नहीं है. पति के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है." यह सुनकर उन्होने फिर से उसे एक और वर मांगने के लिये कहा. सावित्री बोली, "हमारे ससुर का राज्य छिन गया है, उसे वे पुन: प्राप्त कर सकें, साथ ही धर्मपरायण बने रहें." यमराज ने यह वर देकर कहा, "अच्छा अब तुम लौट जाओ परंतु वह न मानी."

यमराज ने कहा कि पति के प्राणों के अलावा जो भी मांगना है मांग लो और लौट जाओ. इस बार सावित्री ने अपने को सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनने का वरदान मांगा. यमराज ने तथास्तु कहा और आगे चल दिए. सावित्री फिर भी उनके पीछे-पीछे चलती रही. उसके इस कृत से यमराज नाराज हो जाते हैं. यमराज को क्रोधित होते देख सावित्री उन्हें नमन करते हुए उन्हें कहती है, "आपने मुझे सौ पुत्रों की मां बनने का आशीर्वाद तो दे दिया लेकिन बिना पति के मैं मां किस प्रकार से बन सकती हूं, इसलिये आप अपने तीसरे वरदान को पूरा करने के लिए अपना कहा पूरा करें."

सावित्री की पतिव्रत धर्म की बात जानकर यमराज ने सत्यवान के प्राण को अपने पाश से मुक्त कर दिया. सावित्री सत्यवान के प्राण लेकर वट वृक्ष के नीचे पहुंची और सत्यवान जीवित होकर उठ बैठे. दोनों हर्षित होकर अपनी राजधानी की ओर चल पडे. वहां पहुंच कर उन्‍होंने देखा कि उनके माता-पिता को दिव्य ज्योति प्राप्त हो गई है. इस प्रकार सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहे. 

मान्‍यता है कि वट सावित्री व्रत करने और इसकी कथा सुनने से उपासक के वैवाहिक जीवन या जीवन साथी की आयु पर किसी प्रकार का कोई संकट आया भी हो तो टल जाता है.

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