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This Article is From Apr 28, 2022

Pradosh Vrat 2022: गुरू प्रदोष व्रत 28 अप्रैल को, मान्यतानुसार जानें व्रत कथा और आरती

Pradosh Vrat 2022: पंचांग के मुताबिक अप्रैल माह का अंतिम प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat April 2022) 28 अप्रैल, गुरुवार के दिन रखा जाएगा. जब प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) गुरुवार को पड़ता है तो उसे गुरू प्रदोष व्रत (Guru Pradosh) कहा जाता है.

Pradosh Vrat 2022: गुरू प्रदोष व्रत 28 अप्रैल को, मान्यतानुसार जानें व्रत कथा और आरती
Pradosh Vrat 2022: प्रत्येक महीने के दोनों पक्षों की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत (pradosh vrat) रखा जाता है.

Pradosh Vrat 2022: धार्मिक मान्यताओं क मुताबिक प्रत्येक महीने के दोनों पक्षों की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत (pradosh vrat) रखा जाता है. इस दिन व्रत रखकर भगवान शिव  (Lord Shiv) की विधि-विधान से पूजा की जाती है. माना जाता है कि भक्तों की सच्ची श्रद्धा और भक्ति से प्रसन्न होकर मनोकामना पूरी करते हैं. पंचांग के मुताबिक अप्रैल माह का अंतिम प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat April 2022) 28 अप्रैल, गुरुवार के दिन रखा जाएगा. जब प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) गुरुवार को पड़ता है तो उसे गुरू प्रदोष व्रत (Guru Pradosh) कहा जाता है. आइए जानते हैं गुरु प्रदोष व्रत की कथा और आरती (Pradosh Vrat Katha and Aarti).

गुरू प्रदोष व्रत कथा (Guru Pradosh Vrat Katha) 


गुरू प्रदोष व्रत की प्रचलित कथा के मुताबिक इसी समय इंद्र और वृत्तासुर की सेना में जबरदस्त युद्ध हुआ. जिसमें देवताओं की सेना ने दैत्य की सेना को पराजित कर दिया. जिसे देखकर वृत्तासुर बहुत अधिक क्रोधित हुआ और अपनी आसुरी माया से विकराल रूप धारण कर लिया. जिसके बाद सभी देवता उसके रूप को देखकर भयभीत हो गए देवगुरु बृहस्पति के पास पहुंचे. देवगुरु ने वृत्तासुर के असली स्वरूप को बताते हुए कहा कि एक समय में चित्ररथ नामक राजा था. एक बार वह कैलाश पर्वत पर पहुंचा और वहां शिवजी के साथ माता पार्वती को देखकर उनका उपहास उड़ाने लगा. तित्ररथ के व्यवहार के माता पार्वती क्रोधित हो गईं और उसे दैत्य का रूप धारण करने का श्राप दे दिया. माता पार्वती के श्राप से चित्ररथ का अगला जन्म राक्षस कुल में हुआ. जिसके बाद वह त्वष्टा नामक ऋषि के तप से उत्पन्न होकर वृत्तासुर बना. कहते हैं कि वृत्तासुर बचपन से ही शिवभक्त था. देवगुरु बृहस्पति ने देवताओं से कहा कि अगर वृत्तासुर को पराजित करना है तो भगवान शिव को प्रसन्न करें और गुरु प्रदोष का व्रत रखें. इंद्र ने बृहस्पति देव की आज्ञा से प्रदोष व्रत किया. कहा जाता है कि भगवान शिव के आशीर्वाद से उन्होंने वृत्तासुर पर विजय प्राप्त कर ली, जिससे देवलोग में शांति छा गई. 

प्रदोष व्रत की आरती (Pradosh Vrat Ki Aarti) 

आरती करो हरिहर की करो नटवर की 

भोले शंकर की आरती करो शंकर की 

सिर पर शशि का मुकुट संवारे

तारों की पायल झनकारे

धरती अंबर डोले तांडव

लीला से नटवर की

आरती करो शंकर की

फन का हार पहनने वाले

शम्भू हैं जग के रखवाले

सकल चराचर अगजग नाचे

अंगुली पर विषधर की

आरती करो शंकर की…

महादेव जय जय शिवशंकर

जय गंगाधर जय डमरूधर 

हे देवो के देव मिटाओ

विपदा घर घर की

आरती करो शंकर की

आरती करो हरिहर की करो नटवर की 

भोले शंकर की आरती करो शंकर की 


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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