सवाल ये है कि क्या अमेरिका के पीछे हटने के बाद रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध और लंबा खिंचेगा.
इतिहास इस बात का साक्षी रहा है कि दो देशों की लड़ाई पूरी दुनिया को किसी भी वक्त युद्ध की आग में लपेट सकती है. जून 1914 में जब ऑस्ट्रिया-हंगरी के आर्कड्यूक फ्रैंज़ फ़र्डिनेंड और उनकी पत्नी की बोस्निया में हत्या हुई तो ऑस्ट्रिया-हंगरी ने सर्बिया के खिलाफ युद्ध का एलान कर दिया. इसके बाद जर्मनी, रूस, फ्रांस, बेल्ज़ियम, ग्रेट ब्रिटेन, अमेरिका समेत दुनिया के कई देश अलग अलग खेमों की ओर से युद्ध में उतर आए. सितंबर 1939 में जब जर्मनी ने पोलैंड पर आक्रमण किया और जवाब में ग्रेट ब्रिटेन और फ्रांस ने जर्मनी पर आक्रमण कर दिया तो दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत हो गई. दूसरे विश्व युद्ध के ख़त्म होने के अस्सी साल बाद एक युद्ध के कारण दुनिया एक बार फिर उसी तरह की खेमेबंदी में फंसी दिख रही है. रूस और यूक्रेन के युद्ध ने दुनिया को दो हिस्सों में बांट दिया है.
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अमेरिका के रवैये से यूरोपीय देश हैरान
इस बार ख़ास ये हो रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में आने के बाद अमेरिका की बदली रणनीति ने उसके पुराने विश्वस्त यूरोपीय साथियों को ही हैरान कर दिया है. लंदन में रविवार को आयोजित हुई इस ऐतिहासिक बैठक में अमेरिका के बदले रवैये से हैरान परेशान यूरोपीय देशों के 18 प्रमुख शामिल हुए. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर की ओर से बुलाई गई इस बैठक में ये साफ़ कर दिया गया कि यूरोपीय देश पूरी एकजुटता के साथ यूक्रेन के साथ खड़े हैं.
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यूक्रेन के समर्थन में उतरे यूरोपीय देश
ज़ेलेंस्की के वॉशिंगटन दौरे में जिस तरह का व्यवहार डोनाल्ड ट्रंप और उपराष्ट्रपति जेडी वांस ने किया, उसके तुरंत बाद इस बैठक में ये साफ़ कर दिया गया कि अमेरिका भले ही यूक्रेन की मदद से पीछे हट जाए लेकिन यूरोपीय देश यूक्रेन को अकेला नहीं पड़ने देंगे. किसी भी प्रस्तावित शांति समझौते में यूक्रेन की संप्रभुता और सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जाएगा. यूक्रेन को मदद जारी रहेगी और उसे मज़बूत करने के लिए रूस पर आर्थिक दबाव बनाए रखा जाएगा. इसके अलावा भविष्य में किसी आक्रमण को रोकने के लिए यूक्रेन को सैन्य सहायता दी जाती रहेगी. इसके लिए इच्छुक देशों का एक गठबंधन तैयार किया जाएगा. हालांकि अभी ये साफ़ नहीं है कि इच्छुक देशों के गठबंधन में कौन कौन देश शामिल रहेंगे और यूक्रेन में कितने सैनिक या हथियार भेजे जाएंगे. कीर स्टार्मर ने ये भी कहा कि किसी भी योजना को कामयाब बनाने के लिए अमेरिका की ठोस मदद भी ज़रूरी होगी. इस सिलसिले में एक औपचारिक योजना तैयार कर अमेरिका के सामने पेश की जाएगी.
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अमेरिका से अब भी जेलेंस्की को उम्मीद
इस बीच वॉशिंगटन में अपने सम्मान के साथ हुए खिलवाड़ के बावजूद वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की ने भी अमेरिका से अपनी उम्मीदें पूरी तरह ख़त्म नहीं की है. 28 फरवरी को व्हाइट हाउस में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उपराष्ट्रपति जेडी वांस ने पूरी दुनिया के पत्रकारों के सामने ज़ेलेंस्की पर आरोप लगाया था कि वो युद्ध में अमेरिका द्वारा यूक्रेन को दी गई मदद के प्रति शुक्रगुज़ार नहीं हैं. हालांकि ज़ेलेंस्की ने मदद के लिए धन्यवाद दिया था. धीरे धीरे गर्माती गई इस बातचीत के दौरान जब ज़ेलेंस्की ने कहा कि रूस के साथ मामले की गंभीरता अमेरिका अभी समझ नहीं रहा है लेकिन बाद में उसे महसूस होगा तो ट्रंप भी भड़क गए. दस मिनट की इस तेज़ तर्रार बहस में ये भी साफ़ हो गया कि रूस-यूक्रेन युद्ध के मामले में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का कितना असर ट्रंप और वांस की जोड़ी पर है. ये बातचीत बिना नतीजे ख़त्म हो गई और ज़ेलेंस्की को व्हाइट हाउस से जाने के लिए कह दिया गया. ज़ेलेंस्की के मन में इस वाकये की टीस ज़रूर होगी लेकिन शांति की ख़ातिर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी है.
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हमें शांति चाहिए, युद्ध नहीं: जेलेंस्की
अपने एक नए वीडियो संबोधन में उन्होंने कहा है कि वो अमेरिका की अहमियत समझते हैं और अमेरिका की ओर से मिली मदद के लिए उसके शुक्रगुज़ार हैं. जेलेंस्की ने कहा कि हम अमेरिका की अहमियत को समझते हैं. हम अमेरिका की ओर से मिले हर समर्थन के लिए शुक्रगुज़ार हैं. एक भी दिन ऐसा नहीं गया जब हमने शुक्रगुज़ार महसूस न किया हो. ये कृतज्ञता हमारी आज़ादी को सुरक्षित रखने के लिए है. यूक्रेन में हमारी क्षमता इस बात पर टिकी है कि हमारे सहयोगी हमारे और अपनी ख़ुद की सुरक्षा के लिए क्या करते हैं.
जेलेंस्की ने ये भी कहा कि हमें शांति चाहिए, अंतहीन युद्ध नहीं. इसीलिए हम कहते हैं कि सुरक्षा की गारंटी इसके लिए ज़रूरी हैं. यूरोप के नेता जल्द ही हमारी साझा पोज़ीशन तय करेंगे और इसे अमेरिका में हमारे सहयोगियों के सामने पेश किया जाएगा. ये भी बताया कि किन बातों पर बिलकुल भी समझौता नहीं किया जाएगा. दरअसल रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर पूरा यूरोप ही अब सचेत हो चुका है.
यूरोपियन काउंसिल ने बुलाई बैठक
इस सिलसिले में छह मार्च को यूरोपियन काउंसिल की भी एक विशेष बैठक बुलाई गई है. यूरोपियन काउंसिल के अध्यक्ष एंटोनियो कोस्टा ने बताया कि इस बैठक में यूरोप की रक्षा क्षमता को बढ़ाने और यूक्रेन के लिए स्थायी शांति के लिए फ़ैसलों को मंज़ूरी दी जाएगी. ब्रसेल्स में होने वाली इस बैठक में यूरोपियन यूनियन के सभी नेताओं के अलावा यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की भी मौजूद रहेंगे. एंटोनियो कोस्टा ने कहा कि वो रूस पर समझौते का दबाव बनाने की ट्रंप की कोशिश का स्वागत करते हैं लेकिन व्यापक विचार विमर्श और यूक्रेन के लिए न्यायपूर्ण और स्थायी शांति के लिए हम भी बातचीत में शामिल होने की इच्छा रखते हैं.
यूरोपियन काउंसिल के अध्यक्ष एंटोनियो कोस्टा ने कहा कि 6 मार्च को मैं यूरोपियन काउंसिल की विशेष बैठक बुला रहा हूं. इसमें हम और शक्तिशाली बनने, स्वायत्त होने और अपनी सुरक्षा के ज़्यादा काबिल होने के लिए अपनी रक्षा क्षमताएं बढ़ाने से जुड़े फैसलों को मंज़ूरी देंगे. साथ ही एक व्यापक, न्यायपूर्ण और स्थायी शांति के लिए यूक्रेन का समर्थन भी करेंगे. यूक्रेन के लोगों से ज़्यादा शांति की ज़रूरत किसी को नहीं है. इस स्थायी शांति को हासिल करने के लिए हम उन्हें सहयोग कर रहे हैं. शांति का मतलब ऐसा युद्धविराम नहीं है, जिससे रूस को फिर ताक़तवर होने के लिए ज़्यादा समय मिले. हम एक न्यायपूर्ण और स्थायी शांति चाहते हैं.
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शांति के लिए रूस का तैयार होना भी जरूरी
ऐसी स्थायी शांति तब तक नहीं आएगी जब तक रूस इसके लिए राज़ी न हो जाए. रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने यूरोप के देशों की इस बात के लिए आलोचना की कि उन्होंने ताज़ा बातचीत में रूस को शामिल नहीं किया. उन्होंने ये फिर साफ़ कर दिया कि रूस को ऐसा कोई भी समझौता मंज़ूर नहीं होगा जिसके तहत नाटो के सैनिक किसी भी भूमिका में यूक्रेन में तैनात होंगे चाहे वो शांति सैनिकों की ही भूमिका क्यों न हो.
रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा कि शांति सैनिकों को यूक्रेन में तैनात करने की योजना यूक्रेन को हमारे ख़िलाफ़ युद्ध के लिए आगे भी उकसाने की कवायद है.
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नाटो में अमेरिका की सबसे बड़ी भूमिका
तनाव साफ़ है. अब सवाल ये है कि क्या अमेरिका के पीछे हटने के बाद रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध और लंबा खिंचेगा. अमेरिका के पीछे हटने के बाद यूरोप के देशों को यूक्रेन और अपनी सुरक्षा के लिए कितनी तैयारी करनी होगी और आज की स्थिति में उनकी ताक़त कितनी है. दुनिया भर में इसे लेकर जानकार अपने-अपने विश्लेषण कर रहे हैं. इसे समझने के लिए हमें पहले यूरोप में नाटो की तैनाती को समझना होगा. दूसरे विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद अमेरिका, कनाडा और कई यूरोपीय देशों ने सामूहिक सुरक्षा के लिए North Atlantic Treaty Organization (NATO) का गठन किया. तब से ही NATO में अमेरिका की भूमिका सबसे बड़ी रही है. तत्कालीन सोवियत संघ के प्रभाव और सैन्य ताक़त से निपटने के लिए अमेरिका यूरोपीय देशों में NATO के तहत अपने हज़ारों सैनिकों को तैनात करता रहा है.
अमेरिकी विदेश विभाग के Defense Manpower Data Center के मुताबिक जुलाई 2024 तक पूरे यूरोप में अमेरिका के क़रीब 65 हज़ार सैनिक स्थायी तौर पर तैनात रहे. इसके अलावा अमेरिका के अत्याधुनिक हथियार और सुरक्षा उपकरण भी रणनीतिक लिहाज़ से अहम इलाकों में तैनात किए गए. NATO के तहत सबसे ज़्यादा 34,984 अमेरिकी सैनिक जर्मनी में तैनात हैं. इसके बाद इटली में क़रीब 12 हज़ार, ब्रिटेन में क़रीब 10 हज़ार सैनिक तैनात हैं. रूस के पूर्वी हिस्से से लगे पोलैंड में अमेरिका के 10 हज़ार सैनिक तैनात रहते हैं.
यूरोप की छह जगहों पर अमेरिकी हथियार और युद्ध सामग्री
यूरोप में तैनात अमेरिकी सैन्य सहायता मदद के तहत यूरोप के छह अलग अलग इलाकों में हथियारों और युद्ध से जुड़ी सामग्रियों के बड़े भंडार तैयार रखे गए हैं. इनमें टैंक, बख़्तरंबद वाहन, आठ एयर स्क्वॉड्रन और चार नेवी डेस्ट्रायर्स शामिल हैं. और ख़ास बात ये भी है कि क़रीब 100 परमाणु बम भी अमेरिका ने यूरोप में तैनात किए हुए हैं...
इससे आपको ये अंदाज़ा लग सकता है कि यूरोप को किस तरह से तत्कालीन सोवियत संघ और आज के रूस से अपनी सामरिक सुरक्षा को ख़तरा रहा है, जिससे निपटने में NATO के तहत अमेरिका सबसे ख़ास भूमिका निभाता रहा है, लेकिन अमेरिका का वो ख़ास सुरक्षा कवच अब यूरोप से छिनने जा रहा है. दरअसल, अमेरिका का रक्षा बजट दुनिया में सबसे बड़ा रहा है.
2024 में अमेरिका का रक्षा बजट 860 अरब डॉलर का था जो नाटो के बाकी सभी सदस्य देशों के कुल बजट के दोगुने से भी ज़्यादा है.
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यूक्रेन को अमेरिका से मिली सबसे ज्यादा मदद
2022 में जब से रूस ने नए सिरे से यूक्रेन पर हमला किया, उसे सबसे ज़्यादा सैनिक मदद अमेरिका से ही मिली. अमेरिकी विदेश विभाग के मुताबिक, यूक्रेन को क़रीब 65 अरब डॉलर का सैनिक साज़ो सामान भेजा गया. इसके अलावा अन्य प्रकार की अमेरिकी मदद भी जोड़ दी जाए तो कुल मिलाकर 183 अरब डॉलर की मदद अमेरिका अभी तक यूक्रेन की कर चुका है. यह आंकड़े यूक्रेन को मदद का रिकॉर्ड रखने के लिए बनाई गई अमेरिकी सरकार की वेबसाइट 'यूक्रेन ओवरसाइट' के हैं.
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उधर, यूरोपियन यूनियन की बात की जाए तो यूरोपियन कमीशन के मुताबिक वो अभी तक यूक्रेन को कुल 141 अरब डॉलर की मदद भेज चुका है, जिसमें से 51 अरब डॉलर सैन्य सहायता के तौर पर हैं. यूरोप ने बड़ी मदद की है, लेकिन बिना अमेरिका के कितनी कर पाएगा यह बड़ा सवाल है. अब देखते हैं कि नाटो के यूरोपीय साथी कितने ताक़तवर हैं.
नाटो के पास 20 लाख सक्रिय सैनिक
नाटो के यूरोपीय सदस्य देशों के पास कुल सक्रिय सैनिकों की तादाद क़रीब 20 लाख है. इनमें से एक हिस्सा नाटो के तहत तैनात रहता है. नाटो के ताज़ा अनुमानों के मुताबिक, सबसे ज़्यादा सैनिक तुर्की और पोलैंड के पास हैं. तुर्की के पास 4 लाख 81 हज़ार और पोलैंड के पास 2 लाख 16 हज़ार सैनिक हैं. इसके बाद फ्रांस के पास 2 लाख 5 हज़ार और जर्मनी के पास 1 लाख 86 हज़ार सैनिक हैं. इटली के पास 1 लाख 71 हज़ार, ब्रिटेन के पास 1 लाख 38 हज़ार, स्पेन के पास 1 लाख 17 हज़ार और ग्रीस के पास 1 लाख 11 हज़ार सक्रिय सैनिक हैं.
ग्लोबल फायर पावर डिफेंस इंडेक्स के मुताबिक, नाटो में शामिल यूरोपीय देशों के पास कुल 7000 लड़ाकू विमान, 6800 टैंक, 2170 सैन्य जहाज़ और 6 एयरक्राफ्ट कैरियर हैं.
कुल मिलाकर यूरोपियन यूनियन के पास भी सैन्य क्षमता कम नहीं है. अमेरिका के पीछे हटने के बाद यूक्रेन को इसी सैन्य ताक़त के भरोसे रहना होगा. इकोनॉमिक थिंक टैंक Bruegel के मुताबिक, अमेरिका के पीछे हटने की स्थिति में यूरोप को अपनी सैन्य ताक़त और बढ़ानी होगी. यूरोप के देशों को क़रीब 3 लाख अतिरिक्त सैनिकों की भर्ती कर कम से कम 50 नई ब्रिगेड तैयार करनी होंगी, जो अमेरिकी सैनिकों की जगह भर सकें. इसी के मद्देनज़र यूरोपीय देशों ने अपनी तैयारी शुरू भी कर दी है.
रक्षा बजट बढ़ा रहे हैं यूरोपीय देश
पिछले ही हफ़्ते ब्रिटेन ने एलान किया कि वो अपना रक्षा बजट कुल जीडीपी के 2.5% तक बढ़ा देगा. ब्रिटेन हर साल 16 अरब डॉलर अपने रक्षा बजट में बढ़ाएगा जो अभी 68 अरब डॉलर के क़रीब है. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के मुताबिक, उनकी सरकार शीत युद्ध ख़त्म होने के बाद से अब तक रक्षा बजट में सबसे बड़ी बढ़ोतरी करने जा रही है.
जर्मनी ने अपनी रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के लिए 100 अरब डॉलर से ज़्यादा के स्पेशल फंड का एलान किया है, जो पहले से मौजूद 52 अरब डॉलर के रक्षा बजट के अतिरिक्त होगा. शीत युद्ध ख़त्म होने के बाद पहली बार पिछले साल जर्मनी का रक्षा बजट उसके जीडीपी के 2% से ऊपर गया है.
सिर्फ़ ब्रिटेन और जर्मनी ही नहीं 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद नाटो के सभी सहयोगी देशों ने अपने रक्षा बजट में काफ़ी बढ़ोतरी की है. अब देखते हैं कि रूस की सैन्य ताक़त क्या है.
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कितना ताकतवर है रूस?
आज की तारीख़ में रूस के पास क़रीब 13 लाख 20 हज़ार सक्रिय सैनिक हैं. इनमें से लाखों इस समय यूक्रेन की सेना के साथ सीमा पर लड़ रहे हैं.
जॉर्जियन फाउंडेशन फॉर स्ट्रेटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज के मुताबिक, रूस की सैन्य क्षमता का एक हिस्सा पूर्वी सोवियत संघ का हिस्सा रहे कुछ देशों में भी मौजूद है.
- रूस के बेलारूस में दो बड़े सैन्य बेस हैं.
- दो बड़े सैन्य बेस कज़ाकिस्तान में हैं.
- दो सैन्य बेस आर्मीनिया में हैं.
- दो सैन्य बेस जॉर्जिया की विवादित ज़मीन दक्षिण ओसेशिया और अब्खाज़िया में हैं.
- इसके अलावा किरगिज़िस्तान, ताजिकिस्तान और मॉलडोवा से अलग हुए हिस्से ट्रांसनिस्ट्रिया में रूस का एक-एक सैन्य बेस है.
2022 तक ताजिकिस्तान के दुशांबे में रूस का सबसे बड़ा सैन्य बेस रहा है जहां 7 हज़ार सैनिक तैनात थे.
सैनिक साज़ो सामान की बात करें तो ग्लोबल फायर पावर डिफेंस इंडेक्स के मुताबिक, रूस के पास 4,292 लड़ाकू और अन्य फौजी विमान, 5,750 टैंक, 449 जंगी जहाज़ और एक एयरक्राफ्ट कैरियर है.
अगर अमेरिका पीछे हट जाता है तो रूस का सैनिक साज़ो सामान और नाटो में शामिल यूरोपीय देशों का सैनिक साज़ो सामान टक्कर का हो जाता है, लेकिन रूस के हौसले का सामना करने के लिए यूरोपीय देशों को अपनी सैनिक ताक़त को और बढ़ाना ज़रूरी हो जाएगा.
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यूरोपीय देशों पर हमला कर सकता है रूस!
Bruegel थिंक टैंक और the Kiel Institute की एक साझा रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि यूरोप को रूस की नई आक्रामकता का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए और अगले तीन से 10 साल में रूस यूरोपीय देशों पर हमला करने के लिए तैयार हो सकता है.
इस रिपोर्ट में विस्तार से ये भी बताया गया है कि रूस से निपटने के लिए पूर्व सोवियत संघ से अलग हुए बाल्टिक देशों में यूरोप को भारी तादाद में सैनिक और सैन्य साज़ो सामान तैनात करना होगा.
अगर लड़ाई हुई तो पहले तीन महीने के लिए 1,400 टैंक, 2,000 इन्फैंटरी फाइटिंग व्हीकल्स और 700 तोपों की ज़रूरत पडे़गी जो फ्रांस, जर्मनी, इटली और ब्रिटेन की कुल सैन्य ताक़त से ज़्यादा है. इसके अलावा ड्रोन्स का उत्पादन भी काफ़ी बढ़ाना होगा जो अब युद्ध में बहुत ज़्यादा इस्तेमाल हो रहे हैं.
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यूरोपीय देशों को साथ आने का सुझाव
रिपोर्ट के मुताबिक बीते दो साल में रूस ने अपनी अर्थव्यवस्था और अपने पूरे देश को युद्ध में उतारा हुआ है और अपना हर संभव संसाधन वो युद्ध में झोंक रहे हैं. रूस को सोवियत दौर के बचे हुए अपने बड़े बुनियादी ढांचे और हथियारों का भी फ़ायदा मिल रहा है. वो हर साल 1500 टैंक, हज़ारों बख़्तरबंद गाड़ियां और सैकड़ों तोपें बना रहे हैं.
The Bruegel-Kiel report में सुझाव दिया गया है कि यूरोप के सभी देशों को अपने सामरिक मतभेदों को भुलाकर साथ आना चाहिए और यूरोप के सभी देशों को अपना सैनिक बजट 125 अरब यूरो से लेकर 250 अरब यूरो के बीच बढ़ाना चाहिए जो उनके जीडीपी का 3.5% हो. इसमें जर्मनी को सबसे बड़ी भूमिका निभानी चाहिए.
कुल मिलाकर रूस-यूक्रेन युद्ध ने दुनिया के एक बड़े हिस्से को मथ दिया है. देखना है कि आने वाले दिनों में अमेरिका और यूरोप इस युद्ध को ख़त्म करने में क्या भूमिका निभाते हैं.
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