सचिन तेंदुलकर को भले ही 'क्रिकेट का भगवान' माना जाता हो, लेकिन उनके बेजोड़ करियर में भी एक ऐसा दौर आया था, जब यह महान खिलाड़ी अपनी कप्तानी में टीम की असफलता से इतना डर गया था और टूट चुका था कि वह पूरी तरह से खेल से दूर होना चाहता था।
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में ढेरों रिकॉर्ड बनाने के बाद पिछले साल खेल को अलविदा कहने वाले सचिन तेंदुलकर ने दो दशक से अधिक के अपने करियर के अहम लम्हों को उजागर किया है, जिसमें उनका बुरा दौर भी शामिल है।
6 नवंबर को तेंदुलकर की आत्मकथा 'प्लेइंग इट माई वे' का विमोचन होना है, जिसमें इस महान बल्लेबाज ने कप्तान के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान की हताशा का भी जिक्र किया है।
तेंदुलकर की किताब के एक्सक्लूसिव मुख्य अंश के अनुसार, मुझे हार से नफरत है और टीम के कप्तान के रूप में मैं लगातार खराब प्रदर्शन के लिए खुद को जिम्मेदार मानता था। इससे भी अधिक चिंता की बात यह थी कि मुझे नहीं पता था कि इससे कैसे उबरा जाए, क्योंकि मैं पहले ही अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रहा था।
बकौल तेंदुलकर, मैंने अंजलि से कहा कि मुझे डर है कि मैं लगातार हार से उबरने के लिए शायद कुछ नहीं कर सकता। लगातार करीबी मैच हारने से मैं काफी डर गया था। मैंने अपना सब कुछ झोंक दिया और मुझे भरोसा नहीं था कि क्या मैं 0.1 प्रतिशत भी और दे सकता हूं।
जाने-माने खेल पत्रकार और इतिहासविद बोरिया मजूमदार के सह-लेखन वाली इस आत्मकथा में तेंदुलकर ने खुलासा किया, इससे मुझे काफी पीड़ा पहुंच रही थी और इन हार से निपटने में मुझे लंबा समय लगा। मैं पूरी तरह से खेल से दूर होने पर विचार करने लगा था, क्योंकि ऐसा लग रहा था कि कुछ भी मेरे पक्ष में नहीं हो रहा था।
तेंदुलकर का यह बुरा दौर 1997 के समय का है, जब भारतीय टीम वेस्ट इंडीज का दौरा कर रही थी। पहले दो टेस्ट ड्रॉ कराने के बाद भारतीय टीम तीसरे में जीत की ओर बढ़ रही थी और उसे सिर्फ 120 रन का लक्ष्य हासिल करना था। लेकिन भारतीय टीम सिर्फ 81 रन पर ढेर हो गई, जिसमें सिर्फ वीवीएस लक्ष्मण ही दोहरे अंक में पहुंच पाए।
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