संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की ओर से ली जाने वाली सिविल सेवा परीक्षा (CSE) देश की सबसे बड़ी भर्ती परीक्षा है. इसके जरिए कुल 21 सेवाओं के लिए अभ्यर्थियों का चयन किया जाता है. इन 21 सेवाओं को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है. पहली, अखिल भारतीय सेवाएं, जिनमें भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS) और भारतीय वन सेवा (IFoS) शामिल हैं. दूसरी, सिविल सर्विसेज ग्रुप 'ए', जिनमें भारतीय विदेश सेवा, भारतीय डाक सेवा, भारतीय राजस्व सेवा आदि शामिल हैं. तीसरी, सिविल सर्विसेज ग्रुप ‘बी', जिनमें केंद्र शासित प्रदेशों की सिविल एवं पुलिस सेवाएँ (DANICS, DANIPS और पुडुचेरी) शामिल हैं.
सुप्रीम कोर्ट क्यों गए हैं यूपीएससी परीक्षा के अभ्यर्थी
अलग-अलग कारणों से पिछले कई सालों से यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा विवादास्पद बनी हुई है. इस साल तीन अगस्त, 2025 को सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दाखिल की गई. इसमें प्रारंभिक परीक्षा के तुरंत बाद उत्तर-कुंजी जारी नहीं करने की प्रथा को चुनौती दी गई है. गणेश एचएन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया [W.P. (C)—763/2025] मामले में 28 याचिकाकर्ताओं की तरफ से वकील राजेश गुलाब ईनामदार और शाश्वत आनंद पेश हुए. इन्होंने इस मामले में तुरंत न्यायिक हस्तक्षेप की मांग की है, जिससे यूपीएससी को निर्देश दिया जा सके कि वह 25 मई को आयोजित 2025 की प्रारंभिक परीक्षा की एक अस्थायी उत्तर-कुंजी जारी करे, आपत्तियां आमंत्रित करे, और परीक्षा परिणाम घोषित होने से पहले अंतिम उत्तर-कुंजी प्रकाशित करे. याचिकाकर्ताओं की दलील है कि यूपीएससी की यह प्रथा अनुचित और अपारदर्शी है. इसके तहत प्रारंभिक परीक्षा की उत्तर-कुंजी एक साल बाद जारी की जाती है.
इस मामले की पहली सुनवाई (एडमिशन हीयरिंग) 12 अगस्त, 2025 को न्यायमूर्ति पामिडीघंटम श्री नरसिम्हा और न्यायमूर्ति अतुल एस चंदुरकर की अध्यक्षता वाले पीठ ने की. अदालत ने याचिका को सुनवाई के योग्य पाया है. सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य विचाराधीन मामले 'हिमांशु कुमार बनाम यूनियन ऑफ इंडिया' [W.P.(C)—118/2024] के साथ इसे क्लब कर दिया है. अब दोनों मामलों की सुनवाई एक साथ होगी.
उत्तर-कुंजी क्यों नहीं जारी करता है यूपीएससी
यूपीएससी ने 2013 में केंद्रीय सूचना आयोग के निर्देश को चुनौती देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की थी. इसमें प्रारंभिक परीक्षा के तुरंत बाद उत्तर-कुंजी जारी नहीं करने का बचाव करते हुए यूपीएससी ने कहा था कि जब परीक्षा प्रक्रिया अभी पूरी ही नहीं हुई है, तो उत्तर-कुंजी के प्रकाशन में कोई बड़ा जनहित निहित नहीं है. यूपीएससी का कहना था कि इस जानकारी को समय से पहले जारी करना पूरी परीक्षा प्रक्रिया को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता है, क्योंकि असफल उम्मीदवार ऐसी महत्वहीन आपत्तियां कर सकते हैं, जिनका कोई मतलब नहीं है. यूपीएससी की इन दलीलों में कोई दम नहीं है. राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) की ओर से आयोजित मेडिकल और इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षाओं में करीब 25 लाख अभ्यर्थी शामिल होते हैं. इसके बाद भी परीक्षा के चंद दिन बाद ही उत्तर-कुंजी जारी कर अभ्यर्थियों से आपत्तियां आमंत्रित की जाती हैं. प्रमाणिक आपत्तियों को स्वीकार कर अंतिम उत्तर-कुंजी जारी की जाती है. अगर इतनी बड़ी परीक्षा में ऐसा कर पाना संभव है, तो फिर यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, जिसमें करीब 10 लाख अभ्यर्थी प्रारंभिक परीक्षा में शामिल होते हैं, में क्यों नहीं? यूपीएससी की दलीलें देखकर ऐसा लगता है कि वो अपनी संवैधानिक जिम्मेवारियों से बचना चाहता है, जबकि उससे उम्मीद की जाती है कि वह पूरी पारदर्शिता के साथ भर्ती प्रक्रिया को पूरा करेगा. कुछ अभ्यर्थी उत्तर-कुंजी पर आपत्ति दर्ज कराएंगे, इससे बचने के लिए परीक्षा चक्र पूरा होने के बाद उत्तर-कुंजी प्रकाशित करना कहीं से भी उचित नहीं लगता है.
पूजा खेडकर मामले में क्यों हुई थी यूपीएससी की आलोचना
पूजा खेडकर मामले में यूपीएससी को पिछले साल गंभीर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था. महाराष्ट्र निवासी पूजा खेडकर 2022 की सिविल सेवा परीक्षा में ओबीसी और दिव्यांगता के गलत सर्टिफिकेट के आधार पर सफल हुई थीं. उन्होंने निर्धारित अधिकतम अटेम्प्ट पूरे होने के बाद अपना नाम, पिता का नाम, फोटो, मोबाइल नंबर, ई-मेल आईडी और पता बदलकर परीक्षा दी थी. मामला तूल पकड़ने पर 31 जुलाई, 2024 को यूपीएससी ने बयान जारी कर बताया कि पूजा खेडकर को बर्खास्त कर दिया गया है. इस बयान की वजह से यूपीएससी की किरकिरी हुई थी. उसके बयान के पांचवें पैरे में कहा गया था कि अगर कोई प्रमाण पत्र सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी किया गया है तो आमतौर पर उसे सही मान लिया जाता है. यूपीएससी के पास न तो इसका अधिकार है और न ही साधन कि वह हर साल अभ्यर्थियों की ओर से पेश हजारों प्रमाणपत्रों की सत्यता की जांच कर सके.
एक संवैधानिक संस्था के इस बयान से लोग हतप्रभ रह गए. लोगों ने सवाल करना शुरू किया कि क्यों न यह मान लिया जाए कि कुछ लोग गलत प्रमाणपत्रों के आधार पर भी सिविल सेवा में चयनित हो जाते हैं? क्योंकि यूपीएससी तो प्रमाणपत्रों की सत्यता की जांच करने के लिए सक्षम है ही नहीं.
परीक्षा के तुरंत बाद उत्तर-कुंजी क्यों मांगते हैं अभ्यर्थी
अधिकांश राज्य लोक सेवा आयोग प्रारंभिक परीक्षा के तुरंत बाद उत्तर-कुंजी जारी कर देते हैं, लेकिन संघ लोक सेवा आयोग ऐसा नहीं करता है. यूपीएससी केवल तभी प्रारंभिक परीक्षा की आधिकारिक उत्तर-कुंजी जारी करता है जब परीक्षा की प्रक्रिया (प्रारंभिक, मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार) पूरी हो जाती है और रिजल्ट घोषित कर दिया जाता है.
अभ्यर्थियों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह आती है कि उन्हें यह पता ही नहीं चल पाता कि किसी प्रश्न के जिस विकल्प को उन्होंने सही माना, यूपीएससी भी उसे सही मानता है या नहीं. जब तक आयोग अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर उत्तर-कुंजी अपलोड करता है, तब तक परीक्षा-चक्र पूरा हो चुका होता है और अगली प्रारंभिक परीक्षा में केवल कुछ ही दिन शेष होते हैं. जैसे—2024 की प्रारंभिक परीक्षा की उत्तर-कुंजी यूपीएससी ने तब जारी की जब 2025 की प्रारंभिक परीक्षा में केवल चार दिन बचे थे. ऐसे में यदि अभ्यर्थियों को यूपीएससी की उत्तर-कुंजी में कोई त्रुटि दिखाई भी दे तो न तो वे उसे अदालत में चुनौती दे पाते हैं और न ही अपनी गलतियों से सबक लेकर उन्हें सुधार पाते हैं.
यदि यूपीएससी प्रारंभिक परीक्षा के तुरंत बाद उत्तर-कुंजी जारी करे, तो अभ्यर्थी अपनी गलतियों को पहचानकर उनसे सीख लेकर अगली परीक्षा के लिए अच्छी तैयारी कर सकते हैं. इस साल मार्च में कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DoPT) से संबंधित संसदीय स्थायी समिति ने अपनी 145वीं रिपोर्ट में अनुशंसा की है कि यूपीएससी को प्रारंभिक परीक्षा के तुरंत बाद आधिकारिक उत्तर-कुंजी जारी कर देनी चाहिए.
स्कोर कार्ड क्यों है जरूरी
पारदर्शिता की कमी केवल उत्तर-कुंजी जारी करने में ही नहीं है. कई राज्यों में प्रारंभिक परीक्षा के परिणाम घोषित होने के तुरंत बाद 'व्यक्तिगत स्कोर कार्ड' भी जारी कर दिए जाते हैं. इससे हर एक अभ्यर्थी को यह पता चल जाता है कि उन्हें कितने अंक प्राप्त हुए. इसके विपरीत यूपीएससी प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम घोषित करते समय केवल अभ्यर्थियों के रोल नंबर प्रकाशित करता है. यानी अभ्यर्थी केवल यह जान पाते हैं कि वे मुख्य परीक्षा के लिए पात्र हैं या नहीं. उनको कितने नंबर मिले हैं, इसका पता उन्हें अंतिम परीक्षा परिणाम आने के बाद ही चलता है. इससे परीक्षार्थियों की अगले साल की तैयारी भी प्रभावित होती है. जब कोई अभ्यर्थी यह नहीं जान पाता है कि परीक्षा में उसके कितने अंक आए, तो उसके लिए अपनी कमजोरियों की पहचान कर पाना कठिन होता है. व्यक्तिगत स्कोर कार्ड के अभाव में अभ्यर्थी अपने प्रदर्शन का सटीक विश्लेषण नहीं कर पाते हैं.
यूपीएससी मुख्य परीक्षा की जांची गई उत्तर पुस्तिकाएं भी अभ्यर्थियों को उपलब्ध नहीं कराता है. सूचना के अधिकार (आरटीआई) के जरिए भी नहीं. जबकि कई राज्य लोक सेवा आयोग यह सुविधा देते हैं. उदाहरण के लिए, बिहार लोक सेवा आयोग अभ्यर्थियों को उनकी जाँची गई उत्तर पुस्तिकाएं डाऊनलोड करने की सुविधा देता है. इससे अभ्यर्थियों को यूपीएससी के मार्किंग पैटर्न का पता नहीं चल पाता है. यदि जांची गई उत्तर पुस्तिकाएं उपलब्ध कराई जातीं तो अभ्यर्थी यह जान पाता है कि किन उत्तरों पर उन्हें अधिक अंक मिले हैं और किन पर कम. यह भी मालूम हो पाता कि यूपीएससी पैराग्राफ में उत्तर लिखने पर अधिक अंक देता है या बिंदुवार लिखने पर.
स्केलिंग की प्रक्रिया पर भी उठे हैं सवाल
यूपीएससी की स्केलिंग की प्रक्रिया को लेकर भी विवाद है. स्केलिंग प्रक्रिया का उद्देश्य अलग-अलग वैकल्पिक विषयों के कठिनाई स्तर को देखते हुए इस प्रकार से अंक देना है कि सभी विषय एक समान स्तर पर आ जाएं. हालांकि इस प्रक्रिया में पारदर्शिता का घोर अभाव है. अभ्यर्थियों को पता ही नहीं चल पाता कि इस प्रक्रिया को कैसे अंजाम दिया जाता है. प्रणाली की जटिलता और पारदर्शिता के अभाव से अभ्यर्थियों में असंतोष है. ऐसे में यूपीएससी को चाहिए कि स्केलिंग को खत्म करने के लिए वैकल्पिक विषय हटाकर एक सामान्य पाठ्यक्रम बनाए. इससे स्केलिंग की जरूरत ही नहीं रहेगी. जैसे उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग ने वैकल्पिक विषय के स्थान पर उत्तर प्रदेश से संबंधित सामान्य ज्ञान के दो पेपर को मुख्य परीक्षा में शामिल किया है. हमारे सामने बिहार लोक सेवा आयोग का भी उदाहरण है, जहां पर वैकल्पिक विषय तो है, लेकिन उसे वस्तुनिष्ठ और क्वालीफाइंग बना दिया गया है. ऐसे में स्केलिंग की जरूरत ही नहीं रही.
आदर्श रूप से होना तो यह चाहिए था कि राज्य लोक सेवा आयोग यूपीएससी से सबक लेते, लेकिन सच्चाई इसके उलट है. पारदर्शिता के मामले में कई राज्य लोक सेवा आयोग, यूपीएससी से बहुत आगे निकल चुके हैं. ऐसे में यूपीएससी को चाहिए कि वह अपनी कमियों पर मंथन करे और उचित निर्णय ले, क्योंकि लोकतंत्र में संवैधानिक संस्थाओं में जनता का भरोसा अपरिहार्य है.
अस्वीकरण: लेखक बिहार के बाबासाहेब भीमराव अम्बेदकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर के राजनीति विज्ञान विभाग में शोध छात्र हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.