- सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व सैन्य अधिकारी की बर्खास्तगी से राहत वाली याचिका को खारिज कर दिया.
- चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि सैनिकों के धार्मिक सम्मान का पालन न करना सेना में अनुशासनहीनता और अपमान है.
- अधिकारी ने गुरुद्वारे और मंदिर में प्रवेश से इनकार किया था, जिससे सेना की एकजुटता और अनुशासन प्रभावित हुआ था.
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक पूर्व ईसाई सैन्य अधिकारी की वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें सशस्त्र बलों से उसकी बर्खास्तगी को चुनौती दी गई थी. अधिकारी ने अपनी तैनाती वाली जगह पर एक गुरुद्वारे की धार्मिक गतिविधियों में हिस्सा लेने से कथित तौर पर इनकार कर दिया था, जिसके बाद उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान उसकी आलोचना करते हुए उसे झगड़ालू और मिसफिट करार दिया. साथ ही अपने साथी (सिख) सैनिकों की आस्था का सम्मान न करने की वजह से उसे सेना से निकालने के सशस्त्र बलों के फैसले का समर्थन किया.
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भारतीय सेना के लिए वह ठीक नहीं
नए चीफ जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि ऐसा करके वह किस तरह का संदेश दे रहा है? एक सैन्य अधिकारी ने घोर अनुशासनहीनता की है, उसे बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए था. इस तरह का झगड़ालू शख्स क्या सेना में रहने का हकदार है? नए चीफ जस्टिस ने कहा कि भले ही वह एक अच्छे अधिकारी हो सकते हैं, लेकिन भारतीय सेना के लिए वह ठीक नहीं हैं.
कमलेसन ने अपने सैनिकों का अपमान किया
सीजेआई सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसमें सेना की कार्रवाई को बरकरार रखा गया था. अदालत ने कहा कि सैमुअल कमलेसन का आचरण सैन्य अनुशासन के मुताबिक नहीं था. उन्होंने कहा कि नेतृत्व करने वाले को उदाहरण पेश करना चाहिए. आप अपने सैनिकों का अपमान कर रहे हैं. जब एक पादरी ने आपको सलाह दी, तो आपने उसे वहीं छोड़ दिया. आप इसको लेकर अपनी निजी समझ नहीं रख सकते कि आपका धर्म क्या अनुमति देता है, वह भी वर्दी पहने हुए.
पूर्व लेफ्टिनेंट ने गुरुद्वारे में जाने से किया था इनकार
बता दें कि थर्ड कैवलरी रेजिमेंट में पूर्व लेफ्टिनेंट, सैमुअल कमलेसन ने अपने सनियर अधिकारी के गुरुद्वारे में जाने वाले आदेश को मानने से इनकार कर दिया था. उनका तर्क था कि इससे उनके ईसाई धर्म पर असर पड़ेगा. अदालत ने कमलेसन के इस व्यवहार को जरूरी सैन्य मूल्यों का उल्लंघन बताया.
कमलेसन की तरफ से अदालत में पेश हुए एक सनियर वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि उनके मुवक्किल को उनकी तैनाती स्थल पर स्थित एक गुरुद्वारे में प्रवेश करने से इनकार करने के एकमात्र कृत्य के लिए सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था. उन्होंने यह कहते हुए वहां जाने से इनकार कर दिया था कि यह उनके ईसाई धर्म का उल्लंघन है. उन्होंने कहा कि अधिकारी ने इसके अलावा सभी बहु-धार्मिक स्थलों और रेजिमेंट कार्यक्रमों में सम्मानपूर्वक भाग लिया है.
वकील की दलील से कोर्ट सहमत नहीं
चीफ जस्टिस ने सवाल किया, ‘‘क्या एक अनुशासित बल में इस तरह का आचरण जायज है?' उन्होंने कहा कि एक सैन्य नेतृत्वकर्ता अपने सैनिकों के साथ उस जगह जाने से कैसे इनकार कर सकता है जिसे वे पवित्र मानते हैं. बेंच ने ये भी कहा कि सिख सैनिकों की मौजूदगी को देखते हुए रेजिमेंट में एक गुरुद्वारा भी है. उन्होंने कहा कि गुरुद्वारा सबसे धर्मनिरपेक्ष स्थानों में से एक है.जिस तरह से वह व्यवहार कर रहे हैं, क्या वह अन्य धर्मों का अपमान नहीं कर रहे हैं
ईसाई धर्म में मंदिर, गुरुद्वारे में प्रवेश वर्जित कहां है?
कमलेसन के वकील ने कहा कि किसी धर्म का पालन करने के संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत अपीलकर्ता के मौलिक अधिकार को सिर्फ इसलिए नहीं छीना जा सकता क्योंकि उन्होंने वर्दी पहन ली है. इस पर जस्टिस बागची ने सवाल किया, ‘‘अनुच्छेद 25 आवश्यक धार्मिक विशेषताओं की रक्षा करता है, हर भावना की नहीं. ईसाई धर्म में मंदिर में प्रवेश वर्जित कहां है?' जब अपीलकर्ता के वकील ने कहा कि नोटिस जारी नहीं करना समाज के लिए एक गलत संदेश होगा, तो बेंच ने कहा कि इससे एक कड़ा संदेश जाएगा.
गुरुद्वारे और मंदिर में जाने से किया था इनकार
बता दें कि 2017 में तीसरी कैवलरी रेजिमेंट में कमीशन प्राप्त करने वाले कमलेसन को सिख कर्मियों वाली 'बी' स्क्वाड्रन के ‘ट्रुप लीडर' के रूप में तैनात किया गया था. रेजिमेंट में एक मंदिर और एक गुरुद्वारा था, लेकिन कोई 'सर्व धर्म स्थल' या चर्च नहीं था. कमलेसन ने दावा किया था कि वह साप्ताहिक धार्मिक परेड के लिए दोनों स्थानों पर सैनिकों के साथ गए, लेकिन धार्मिक अन्तरात्मा का हवाला देते हुए उन्होंने गुरुद्वारे और 'आरती, हवन या पूजा' के दौरान मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने से परहेज किया.
कमलेशन को सेना से किया था बर्खास्त
सेना ने कहा था कि अधिकारी ने अनिवार्य रेजिमेंटल परेड में शामिल होने से बार-बार इनकार किया. जबकि वरिष्ठ अधिकारियों ने उसे अनुशासन के महत्व पर सलाह देने की कई बार कोशिश की. सेना ने कहा था कि हालांकि, उसने इनकार कर दिया और इससे यूनिट की एकजुटता कमजोर हुई, जो कि परिचालन प्रभावशीलता के लिए एक अहम जरूरत है. सेना इसको लेकर संतुष्ट थी कि कमलेसन को आगे बनाए रखना 'अवांछनीय' था और हाई कोर्ट ने उसकी बर्खास्तगी को बरकरार रखा.
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