खासकर, जो लोग आश्रम चौक का जाम रोज़ झेलते है, बड़ी चालाकी से बारापूला की तरफ भागते हैं, और जब वहां भी फंस जाते हैं, उनसे मुझे बड़ी सहानुभूति होती है, क्योंकि रोज़ - सोमवार से शुक्रवार - हम भी किसी गाड़ी में सिर पकड़े किसी न किसी को कोसते आपकी बगल वाली गाड़ी में ही होते हैं, और यह किसी के लिए भी नया नहीं है।
जब से मयूर विहार शिफ्ट किया, इस जाम का साथ मिलना शुरू हुआ। पहले निजामुद्दीन का पुल दो लेन का था, उसमें आधे घंटे से ज्यादा फंसे रहते थे। फिर आश्रम में एक और फ्लाईओवर बनना शुरू हुआ, और जीवन में जाम का साथ बना रहा। फिर एक और फ्लाईओवर, यानि जीवन का हिस्सा बन गया यह जाम। बेटी बड़ी हो गई, बालों में सफेदी आने लगी, ओहदा बढ़ गया, मगर यह कमबख्त जाम जोंक की तरह चिपट गया है जीवन से। पहले डीएनडी बना तो लगा, चलो गंगा नहा लिए, लेकिन गंगा ही इतनी मैली है कि जाम से मुक्ति कहां दिला पाती।
हमारे लिए जाम कतई आम बात है, लेकिन सोचिए, अगर किसी खास आदमी का सामना जाम से हो जाए तो... जी हां, आज ऐसा ही कुछ देश के परिवहन मंत्री के साथ हो गया... नितिन गडकरी सुबह दफ्तर जाने के वक्त एयरपोर्ट से संसद भवन की तरफ आ रहे थे। संसद का सत्र चल रहा है, सो, मंत्री जी का रहना जरूरी था, लेकिन जाम तो जाम है... क्या आम और क्या खास, अटक गए तो गए काम से। फिर क्या था, मंत्री जी को सामने धौला कुआं का मेट्रो स्टेशन दिख गया। उन्होंने फौरन स्टाफ को कहा, गाड़ी छोड़ो, मेट्रो से चलते हैं। फिर कहीं जाकर वह संसद भवन पहुंचे।
जब राज्यसभा से गडकरी जी निकले तो लोगों ने जाम के अनुभव के बारे में पूछा। मंत्री जी ने फौरन दिल्ली में जाम कम करने के लिए 4,700 करोड़ देकर एक और रिंग रोड बनाने का ऐलान किया और यह भी कहा कि अगर दिल्ली सरकार यह नहीं कर सकती तो उनका मंत्रालय इसके लिए पहल करेगा। हमने लगे हाथ पूछ लिया, सर, आश्रम के जाम से कब मुक्ति मिलेगी, तो मंत्री जी बोले, उन्हें इसकी जानकारी है, और नई रिंग रोड से आश्रम के जाम से भी निजात मिलेगी। इस रिंग रोड के लिए टेंडर इसी महीने जारी होंगे।
खैर, यह रिंग रोड जब बनेगा, तब बनेगा - बारापूला का एक्सटेंशन जब बनेगा, तब बन ही जाएगा, और मेट्रो के विस्तार का भी इंतजार करना होगा। अब आप सोच रहे होंगे कि अभी तक मैंने मेट्रो ट्राई क्यों नही किया... जरूर किया भाई, संसद जब भी जाता हूं, मेट्रो पकड़ता हूं, नोएडा में मॉल भी मेट्रो से ही जाता हूं। मगर जिस तरह हर मर्ज का एक ही इलाज नहीं होता, वैसे ही मेट्रो भी हर जाम का इलाज नहीं है। दफ्तर जाने के लिए मुझे एक और मेट्रो विस्तार का इंतजार है, या फिर बदरपुर लाइन में छह कोच के लगने का।
तब तक हर शाम दफ्तर से निकलते वक्त गूगल मैप पर ट्रैफिक की लाल लाइन देखकर, अंदाजा लगाकर निकलता हूं कि आश्रम से लूं, या बारापूला से, या मथुरा रोड होते हुए प्रगति मैदान होकर निजामुद्दीन का पुल पकड़ूं, या प्रगति मैदान होते हुए डीएनडी जाऊं। जब तक इस जाम से मुक्ति नहीं मिलती, तब तक 'हैप्पी जैमिंग'...