क्या 21 विधायकों की सदस्यता बचा पाएंगे अरविंद केजरीवाल...?

क्या 21 विधायकों की सदस्यता बचा पाएंगे अरविंद केजरीवाल...?

दिल्ली हाईकोर्ट ने आम आदमी पार्टी के 21 विधायकों को संसदीय सचिव नियुक्त करने का आदेश रद्द कर दिया है. हाईकोर्ट के आदेश के बाद क्या अरविंद केजरीवाल अपने 21 विधायकों की सदस्यता को बचा पाएंगे...?

विधायकों की संसदीय सचिव पद पर गैर-कानूनी नियुक्ति - दिल्ली में कुल 70 विधायक हैं, जिनमें से 10 फीसदी ही मंत्री बन सकते हैं, जिसके अनुसार मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने फरवरी, 2015 में छह मंत्रियों के साथ सरकार बनाई. सत्ता-सुख के दबाव के फलस्वरूप एक महीने के भीतर ही केजरीवाल ने 21 विधायकों को संसदीय सचिव के पद पर नियुक्त कर दिया, जिसके लिए उपराज्यपाल की मंजूरी भी नहीं ली गई. दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती मिलने पर विधानसभा द्वारा संसदीय सचिव पद को लाभ के दायरे से बाहर रखने के लिए आनन-फानन में जून, 2015 में कानून पारित कर दिया गया, जिसे राष्ट्रपति ने मंजूरी देने से इंकार कर दिया. इसके बाद हाईकोर्ट द्वारा इन नियुक्तियों को गैर-कानूनी घोषित होना ही था.

हाईकोर्ट में 'आप' सरकार की लचर दलीलें - मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार की तरफ से कई अजब दलीलें दी गईं, जो राजनीतिक तौर पर स्वीकार्य होने के बावजूद कानूनी दृष्टि से लचर थीं. दिल्ली की पूर्व सरकारों यथा शीला दीक्षित तथा मदनलाल खुराना द्वारा संसदीय सचिवों की नियुक्ति के दृष्टांत को हाईकोर्ट ने मानने से इंकार कर दिया, क्योंकि उन नियुक्तियों के लिए उपराज्यपाल द्वारा सहमति व्यक्त की गई थी. बीजेपी-शासित हरियाणा, गुजरात और राजस्थान में संसदीय सचिवों की नियुक्ति के तर्क को भी नहीं माना गया, क्योंकि अन्य राज्यों में संसदीय सचिव पद को लाभ के पद से बाहर रखने के लिए कानून पारित किए गए हैं, जो वर्तमान नियुक्तियों से पहले नहीं किया गया था.

संसदीय सचिव का पद लाभ का होने पर विधायकों से हो सकती है वसूली - दिल्ली सरकार के अनुसार संसदीय सचिवों को कोई भी आर्थिक लाभ नहीं दिया जा रहा तथा इन विधायकों के माध्यम से विकास कार्यों को गति मिल रही है. आरोपों के अनुसार इन 21 संसदीय सचिवों को स्टाफ, कार, सरकारी ऑफिस, फोन, एसी तथा इंटरनेट आदि की सुविधाएं दी जा रहीं थी. जया बच्चन की राज्यसभा सदस्यता मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा था कि लाभ लेना आवश्यक नहीं है और यदि लाभ का पद लिया गया है तो वह अयोग्यता का पर्याप्त आधार हो सकता है. दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के बाद इन विधायकों से संसदीय सचिव पद के लाभ की वसूली भी हो सकती है.

क्या 21 विधायकों की सदस्यता रद्द हो सकती है - सांसद और विधानसभा सदस्य अपनी जिम्मेदारियों को ठीक तरह से निभाएं, इसके लिए उन पर तमाम बंदिशें लगी हैं. कानून के अनुसार लाभ का पद लेने पर विधायक और सांसदों की सदस्यता रद्द हो सकती है. 2001 में शिबू सोरेन को राज्यसभा सांसद पद से अयोग्य घोषित कर दिया गया था, क्योंकि वह झारखंड में स्वायत्त परिषद के सदस्य थे. सोनिया गांधी द्वारा सांसद के साथ एनएसी के चेयरपर्सन पद लेने की शिकायत पर संसद सदस्यता पद से त्यागपत्र देकर दोबारा चुनाव लड़ना पड़ा था. जिसके बाद कानून में बदलाव करके 55 पदों को ही लाभ के पद के दायरे से बाहर कर दिया गया. दिल्ली के 21 विधायक एक वर्ष से अधिक समय तक विधायक के अलावा संसदीय सचिव पद पर रहे, जिसे सरकार ने जून, 2015 के बिल में स्वयं ही लाभ का पद माना है. लाभ का पद लेने के आरोप में इन विधायकों की सदस्यता रद्द करने का मामला चुनाव आयोग के सम्मुख लंबित है, जहां दिल्ली सरकार की तरफ से मुख्य सचिव ने जवाब दिया है. चुनाव आयोग की रिपोर्ट पर विधायकों की अयोग्यता पर राष्ट्रपति द्वारा फैसला लिया जाएगा.

केजरीवाल विधायकों की सदस्यता को कैसे बचा सकते हैं - दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के विरुद्ध 'आप' सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में अपील होगी ही, जहां उपराज्यपाल के अधिकारों की अपील पहले से लंबित है. दिल्ली सरकार द्वारा इस मामले में दलील दी जा सकती है कि जब संसदीय सचिव पद को उपराज्यपाल ने स्वीकृत ही नहीं किया तो फिर लाभ का कानूनी पद सृजित ही नहीं हुआ. अन्य राज्यों में संसदीय सचिव पद के कानून को संविधान के साथ धोखाधड़ी बताते हुए इस पर राष्ट्रीय नीति तथा फैसले की दुहाई भी दी जा सकती है. कानूनी तथा संवैधानिक संकट को राजनीतिक लाभ में बदलने में केजरीवाल की असाधारण निपुणता है. दिल्ली में तीन मंत्री बर्खास्त हो चुके हैं तथा 12 विधायकों के विरुद्ध पुलिस कार्रवाई चल रही है, जिसके बावजूद राजनीति के अखाड़े में केजरीवाल खुश नज़र आ रहे हैं. अन्य राज्यों में संसदीय सचिवों पर कार्रवाई किए बगैर यदि दिल्ली के 21 विधायकों को अयोग्य घोषित किया गया तो पंजाब तथा गोवा के आगामी चुनाव में केजरीवाल उसको राजनीतिक लाभ की गुगली में बदल सकते हैं.

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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