भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना आंदोलन में लोकपाल को हर मर्ज़ की दवा बताया गया. 'सुशासन' और 'अच्छे दिन' के नाम पर आम आदमी पार्टी (AAP) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने दिल्ली की सत्ता हासिल कर ली, पर लोकपाल का कोई अता-पता नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस और उसके बाद CBI में आधी रात को तख्तापलट की घटना के बाद संस्थाओं में आंतरिक संघर्ष बढ़ता जा रहा है. इन घटनाओं से भारत के लोकतंत्र और संवैधानिक व्यवस्था पर अनेक सवाल खड़े हो गए हैं.
सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति पर विवाद
सुप्रीम कोर्ट में कुल 31 जजों का प्रावधान है, जिनमें पांच पद अभी खाली हैं. सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठतम जजों के कॉलेजियम ने पिछले 12 दिसंबर को राजस्थान हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस प्रदीप नन्दराजोग और दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस राजेन्द्र मेनन को प्रमोट करने का फैसला लिया. जस्टिस लोकुर के रिटायर होने के बाद नए साल में जस्टिस अरुण मिश्रा कॉलेजियम में शामिल हो गए. चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में कॉलेजियम ने 6 जनवरी को फिर मीटिंग कर कनार्टक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और दिल्ली हाईकोर्ट के जज संजीव खन्ना को सुप्रीम कोर्ट जज बनाने का फैसला लिया. जस्टिस माहेश्वरी वरिष्ठतम हैं, परंतु पूर्व में जस्टिस चेलमेश्वर ने उन पर गंभीर आरोप लगाए थे, जिन्हें दरकिनार उन्हें सुप्रीम कोर्ट में लाने की राजनीति हो रही है. दूसरी ओर, कम उम्र वाले जस्टिस संजीव खन्ना यदि सुप्रीम कोर्ट जज बने, तो वह अगले चीफ जस्टिस हो सकते हैं, जिस वजह से उनके नाम पर विशेष बहस है. 32 जजों की सीनियॉरिटी को दरकिनार कर जस्टिस संजीव खन्ना को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाए जाने पर न्यायिक जगत में अनेक सवाल खड़े हो रहे हैं.
आपातकाल का दोहराव
जस्टिस संजीव खन्ना के चाचा जस्टिस एचआर खन्ना को दरकिनार कर श्रीमती इंदिरा गांधी ने जस्टिस एमएच बेग को 1977 में सुप्रीम कोर्ट का चीफ जस्टिस बनाया था. आपातकाल की ज्यादतियों के साथ न्यायपालिका की घटनाओं को गैर-कांग्रेसी नेताओं द्वारा लोकतंत्र के लिए कलंक बताया जाता है. अब सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस आरएम लोढा, दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज कैलाश गंभीर और एडवोकेट प्रशांत भूषण ने जजों की प्रस्तावित नियुक्ति पर सवाल उठाए हैं. सवाल यह है कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस मास्टर ऑफ रोस्टर होने के साथ क्या मास्टर ऑफ कॉलेजियम भी हैं?
जजों द्वारा जजों की नियुक्ति का दागदार कॉलेजियम सिस्टम
देश में चपरासी की नियुक्ति के लिए भी सिस्टम बना हुआ है, लेकिन जजों की नियुक्ति में भाई-भतीजावाद और बंदरबांट होती है. जजों की नियुक्ति के लिए आयोग (NJAC) के कानून को सन् 2015 में रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने कॉलेजियम सिस्टम को दागदार बताया. जस्टिस कुरियन जोसेफ ने कॉलेजियम सिस्टम में सुधार के लिए ग्लासनोस्त, यानी खुलापन और पेरेस्त्रोइका, यानी पुनर्निर्माण की बात कही थी. मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर, यानी MoP पर अभी तक बदलाव हुए नहीं और चार साल में सुधार की बजाय स्थिति और बदतर हो गई है.
CBI की तर्ज पर सुप्रीम कोर्ट में बढ़ती राजनीति
चुनावी साल में CBI पर नियंत्रण के लिए घमासान मचा है, जिसके निराकरण में सुप्रीम कोर्ट पूर्णतः विफल रही है. सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक फैसले से पूर्व जज जस्टिस पटनायक को आलोक वर्मा के खिलाफ CVC जांच सुपरवाइज़ करने के लिए अधिकृत किया था. आलोक वर्मा के खिलाफ राकेश अस्थाना द्वारा भ्रष्टाचार के आरोपों को जस्टिस पटनायक ने बहुत प्रामाणिक नहीं माना. दूसरी ओर, जस्टिस एके सीकरी ने उच्चस्तरीय नियुक्ति समिति में PM नरेंद्र मोदी के साथ बहुमत से आलोक वर्मा को हटाने का आदेश पारित कर दिया. विपक्ष में रहते हुए अरुण जेटली ने जजों द्वारा रिटायरमेंट के बाद पद हासिल करने पर आपत्ति की थी. जस्टिस सीकरी के मामले पर विवाद होने पर अब सरकार या सुप्रीम कोर्ट इस बारे में कठोर नियम क्यो नहीं बनाती?
CBI और सुप्रीम कोर्ट के दंगल से संवैधानिक संकट
देश में नेताओं और अफसरों के भ्रष्टाचार की जांच के लिए CBI का ही सहारा है. भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद CBI से आलोक वर्मा की विदाई कर दी गई है, जबकि दो पूर्व डायरेक्टर भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं. इससे ज़ाहिर है कि CBI चीफ की नियुक्ति के लिए बनाई गई विशेष समिति का सिस्टम पूरे तौर पर विफल हो गया है. आलोक वर्मा के खिलाफ आरोपों की जांच करने वाले केंद्रीय सर्तकता आयुक्त (CVC) पर भी भ्रष्टाचार के आरोप हैं, तो जांच कैसे होगी? CBI को स्वायत्त बनाने की बजाय पिंजरे का तोता बनाए रखने की जद्दोजहद से पारदर्शिता और जवाबदेही कैसे आएगी? सरकार और CBI विफल हो जाएं, तो लोगों को सुप्रीम कोर्ट का आसरा है. राजनेताओं के हस्तक्षेप के बढ़ते दौर में जजों में मचे दंगल से जनता का अदालतों पर भरोसा कम हो रहा है. यह कानून के शासन पर ब्रेक के साथ लोकतंत्र के लिए भी खतरे की घंटी है.
विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.