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This Article is From May 04, 2016

उत्तराखंड चीफ जस्टिस के ट्रांसफर पर बेवजह कयास क्यों?

Virag Gupta
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 04, 2016 13:09 pm IST
    • Published On मई 04, 2016 13:08 pm IST
    • Last Updated On मई 04, 2016 13:09 pm IST
राजनीतिक गतिरोध के शिकार उत्तराखंड के जंगल भयानक आगजनी के शिकार हैं और अब उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस केएम जोसफ के ट्रांसफर से शहरी मीडिया में अफवाहों का बाजार गर्म हो गया है। जस्टिस जोसफ की खंडपीठ ने ही 21 अप्रैल को उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन रद्द करने का ऐतिहासिक फैसला देकर केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा किया था। मीडिया रिपोर्ट्स में जस्टिस जोसफ के ट्रांसफर को राष्ट्रपति शासन में दिए गए उस बोल्ड फैसले से जोड़ा जा रहा है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अगले दिन ही स्टे कर दिया था। पर ऐसे अनुमान तथ्य और कानून की कसौटी पर शायद ही खरे उतरें।

ट्रांसफर तो उनकी पदोन्नति ही माना जायेगा
बेदाग करियर वाले जस्टिस जोसफ अपनी सादगी और ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं और उनके पिता केके मैथ्यू भी सुप्रीम कोर्ट के जज थे। उत्तराखंड के चीफ जस्टिस बनने से पहले जस्टिस जोसफ केरल हाईकोर्ट के जज थे और अब केरल के पड़ोसी राज्य में ट्रांसफर उनके लिए दंडात्मक तो नहीं हो सकता। हैदराबाद हाईकोर्ट के क्षेत्राधिकार में तेलंगाना तथा आंध्रप्रदेश, दो राज्य हैं जहां जस्टिस जोसफ का  ट्रांसफर उनकी पदोन्नति ही माना जायेगा।

हाईकोर्ट में हैं जजों की 450 से अधिक वेकेंसी
एनजेएसी कानून को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने पिछले साल रद्द किया था जिसके बाद अब सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाला कोलेजियम ही हाईकोर्ट जजों की नियुक्ति और ट्रांसफर करता है। हाईकोर्ट में जजों की 450 से अधिक वेकेंसी हैं जिनके लिए कोलेजियम द्वारा नियुक्ति अनुशंसा के बावजूद केंद्र सरकार द्वारा जजों की नियुक्ति को समयबद्ध मंजूरी नहीं दी जा रही जिस पर चीफ जस्टिस ठाकुर ने क्षोभ भी व्यक्त किया था। जस्टिस जोसफ के ट्रांसफर के साथ तीन अन्य जजों को सुप्रीम कोर्ट जज हेतु नियुक्त करने की चर्चा है और एक सीनियर एडवोकेट को सीधे सुप्रीम कोर्ट जज बनाया जा रहा है। जस्टिस जोसफ के ट्रांसफर होने के बाद उनकी जगह किसी नए चीफ जस्टिस की नियुक्ति नहीं हुई, जिस वजह से अब उत्तराखंड हाईकोर्ट के सीनियर-मोस्ट जज ही कार्यवाहक चीफ जस्टिस की जिम्मेदारी निभाएंगे।

इस ट्रांसफर पर कोई भी विवाद गलत ही होगा
इसके पहले फरवरी 2016 में कई हाईकोर्ट जजों का ट्रांसफर हुआ था। मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस कर्णन का कोलकाता ट्रांसफर उनकी न्यायिक अनुशासनहीनता के लिए दंड माना गया था। परंतु जस्टिस जोसफ के ट्रांसफर पर मीडिया द्वारा किसी भी प्रकार का विवाद गलत और अनैतिक होगा। जस्टिस जोसफ ने राष्ट्रपति शासन के मामले पर अपना फैसला दे दिया है और अब उनके ट्रांसफर से सरकार को कोई राजनीतिक लाभ नहीं मिल सकेगा। इसके अलावा कोलेजियम प्रणाली के तहत यह ट्रांसफर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने किए है जिनकी साख पर कोई सवाल खड़ा नहीं हो सकता। पर इतना तो तय है कि जजों के ट्रांसफर पर विवाद से बचने के लिए ट्रांसफर नीति को सुस्पष्ट और पारदर्शी बनाना होगा जिससे भविष्य में ऐसे कयास रोक कर न्यायपालिका की साख पर आंच को रोका जा सके...।

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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