मानसून ने पूरे देश को अपने आगोश में ले रखा है. सबकुछ सराबोर है. बाहर बरसात से और 140 करोड़ मन-मस्तिष्क बारबाडोस से आई सौगात से. मानसून ही वो वक्त होता है, जब नई पौध भी लगाई जाती है. भविष्य के पेड़ और फल की बुनियाद रखी जाती है. कितना अजीब है कि मौजूदा भारतीय क्रिकेट के दो लीजेंड्स ने टीम इंडिया की नई पौध लगाने के लिए मानसून की शुरुआत का बिल्कुल मुफीद वक्त चुना है. कसक है. हम उदास हैं. निराश हैं. लेकिन देश की खातिर लिए गए आपके नि:स्वार्थ फैसले के साथ हैं.
भला ऐसे भी कोई अलविदा कहता है!
रोहित आपने अपनी सूझ-बूझ वाली कप्तानी से 2023 में हमें वनडे विश्व कप के फाइनल तक पहुंचाया. 2024 में 2023 के अधूरे सपने पूरे किए. अपनी लीडरशिप में विश्व विजेता बनाया. अब आपने उसी फॉरमेट को ऐसे मुकाम पर अलविदा कह दिया, जिसके आप आज भी हर मायने में बादशाह हो. अपने खेल से भी और अपनी कप्तानी से भी. हमने तो किसी क्रिकेट कप्तान की आखिरी पारी ऐसे मोड़ पर खत्म होते हुए नहीं देखी.
और विराट, आपने तो हद ही कर दी. हमने तो विश्व कप के फाइनल में प्लेयर ऑफ द मैच चुने गए किसी खिलाड़ी को मैच के बाद संन्यास का ऐलान करते आज तक नहीं सुना. आप दोनों को क्रिकेट लवर्स की मौजूदा जमात ने ‘रोको' (रोहित-कोहली) नाम दिया है. हम करोड़ों देशवासियों का दिल करता है कि मुट्ठी भींचकर हाथ हवा में लहराएं, चिल्लाएं और भारतीय क्रिकेट प्रबंधकों को कहें कि ‘रोको' को रोको.
‘रोको' हम आपको रोक भी तो नहीं सकते
लेकिन नहीं, आज हम ऐसा नहीं करेंगे. क्योंकि आप दोनों और नकी आधी रात को खुशियों की बारिश में धोकर रख दिया है. जेहन को तरोताजा कर दिया है. हमें वहां गलत साबित किया है, जहां गलत साबित होकर आज हमारा मन सबसे सुखद अहसास से तर-ब-तर है. ऐसे में अब हमें अहसास है कि आप दोनों ने जो फैसला लिया है वह सौ फीसदी उचित ही होगा.
हमने तो चयन के दिन से ही सवाल उठाए
सॉरी ‘रोको' हमने तो आपकी टीम के चयन के दिन से ही सवाल उठाने शुरू कर दिए थे. इसको रखा, उसको क्यों नहीं? उसकी जगह बनती थी, उसकी नहीं. वो होना चाहिए था, ये नहीं. लेकिन आप और आपकी टीम हमेशा की तरह अविचलित रही. हमारी शिकायतों को आपने अपने लिए प्यार माना. और आखिरकार पिछले 13 साल में खेल के मैदान से मिली सबसे बड़ी खुशी की नेमत से हमारा सत्कार किया.
आप शिखर चढ़ते गए, हमारी आशंका बढ़ती गई
बिना एक मैच भी गंवाए आपने हमारी टीम को सेमीफाइनल में पहुंचाया. सेमीफाइनल में इंग्लैंड पर धमाकेदार जीत हासिल की. हममें से कई अपनी टीम पर भरोसा कर आश्वस्त होने की जगह 2023 की अहमदाबाद की यादों को अपने भीतर जिंदा कर नकारात्मकता की चादर ओढ़ ली. साउथ अफ्रीकी क्लासेन के कत्लेआम को देख फाइनल अंजाम का इंतजार भी नहीं किया. अपनी टीम को मन-ही-मन कोसने का कार्यक्रम भी शुरू कर दिया. आंक नहीं पाए कि आप और ये टीम हम जैसे 140 करोड़ भारतीयों की उम्मीदों की अग्निपरीक्षा से तपकर और भार सहकर हीरे में तब्दील हो गई है.
हम सवाल उठाते हैं, क्योंकि प्यार करते हैं
फिर भी आप बुरा मत मानना. हम भारतीय खूब सवाल उठाते हैं, क्योंकि सवाल उन्हीं पर उठाते हैं, जिनसे उम्मीद और प्यार करते हैं. हमारी ये उम्मीद घर में अपनों से शुरू होती है. दोस्त-यार तक और फिर समाज तक पहुंचती है. आखिरकार उसका विस्तार सबसे प्रखर रूप से हर उस मंच तक होता है, जहां बात देश की साख की आती है. देश की आन की आती है. हम सवाल उठाते हैं क्योंकि हम अपने तक सीमित नहीं हैं. हमारा दिल अपने से आगे तक सोचता है. वह देश की तो सबसे पहले सोचता है.
आखिर हम क्रिकेटर नहीं क्रिकेट फैंस हैं
‘रोको' हमें माफ करना. हम क्रिकेटर नहीं क्रिकेट फैंस हैं. क्रिकेटर की क्रिकेटिंग सेंस होती है. क्रिकेटर को क्रिकेटिंग सेंस से काम करना होता है. कभी सफलता मिलती है, कभी विफलता. फैंस अकसर क्रिकेटिंग सेंस के आधार पर नहीं सोचते. क्रिकेटिंग सेंस से परे जाकर उम्मीद कर बैठते हैं. निराशा मिलती है, तो आपलोगों पर सवाल उठाते हैं. भला-बुरा भी कहते हैं.
बारबाडोस में ही हुआ होगा वो खास अहसास
29 और 30 जून की मध्य रात्रि में 1 बजे लोगों ने एक-दूसरे को फोन किए. मैसेज भेजे. पटाखों से आसमान गूंजा. करोड़ों दिलों से एक साथ निकली ये ध्वनि बारबाडोस में आपलोगों ने भौतिक रूप से नहीं सुनी होगी, लेकिन 140 करोड़ भारतीयों के जश्न का शिद्दत से आपने भी अहसास जरूर किया होगा.
महान खिलाड़ी कभी खेल से अलग नहीं होते
विराट और रोहित आप जैसे महान खिलाड़ी खेल के किसी फॉरमेट या खेल से कभी अलग नहीं होते. क्रिकेट के सबसे तेज-तर्रार इंटरनेशनल फॉरमेट में अब रोहित मैदान पर नहीं दिखेंगे, लेकिन आपकी कप्तानी की सीख बरसों-बरस टीम इंडिया के साथ चलेगी. पहले गेंद से ही आपकी धमाकेदार बल्लेबाजी की हाई लेवल तकनीक युवाओं को प्रेरित और शिक्षित करने के काम आती रहेगी. विराट आप क्रिकेट के इस सबसे छोटे फॉरमेट में नहीं होंगे. लेकिन विशुद्ध क्रिकेटिंग शॉट्स से भी सबसे बड़ा मैच विनर और फिनिशर बनाने की आपकी सीख युवा पौध को सींचती रहेगी. और हां, आप दोनों ही संन्यास के बाद बरसों-बरस अपने इस महान योगदान के बदले कोई फीस भी नहीं लेंगे.
खत्म नहीं होगी आपकी उपलब्धियों की फिक्सड डिपॉजिट
जो भी अपनी विधा में हाई लेवल सेट करते हैं, आंकड़ों में उनकी निजी उपलब्धियां दरअसल उतनी नहीं होतीं, जितनी कह सकते हैं कि अभौतिक रूप में होती हैं. उस विधा की नई पौध को उनसे मिलने वाली सीख वो महान फिक्सड डिपॉजिट होता है, जिसे जितना खर्च करो, उतना बढ़ता है.
आप सब महज खिलाड़ी नहीं परंपरा हैं
कपिल देव ने भारतीय क्रिकेट में कैसी भी परिस्थिति में जीत सकने का विश्वास भरा. सौरव गांगुली ने जीत के लिए जूझने और हार न मानने की आदत विकसित की. महेंद्र सिंह धोनी ने गांगुली की विकसित आदत को निरंतरता दी. रोहित-कोहली, आप दोनों ने उस निरंतरता को शिखर तक ले जाने का काम किया है.
हम खुशनसीब हैं कि रेड बॉल क्रिकेट और व्हाइट बॉल के 50 ओवर फॉरमेट में अभी कुछ साल और आप दो लीजेंड्स को खेलते देख पाएंगे. लेकिन एक बार फिर सॉरी. क्योंकि हम फैंस ने आपके दिए खुशी के सैकड़ों लम्हों को तो कंजूस की तरह अपनी तिजोरी में डाल लिया, लेकिन आपकी चंद नाकामियों (जो कि किसी भी खेल की ब्यूटी ही है) पर आपसे शिकायत की, सवाल किए और नाराज भी हुए. हम ऐसा फिर करेंगे. क्योंकि हम 140 करोड़ आपसे हद से आगे जाकर उम्मीद और प्यार करते हैं.
अश्विनी कुमार एनडीटीवी में बतौर डिप्टी एग्जिक्यूटिव प्रोड्यूसर के पद पर कार्यरत हैं.
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