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This Article is From Apr 16, 2017

रेसिस्म, भारतीय समाज और एक सांवली लड़की

Kusum Lata
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    April 16, 2017 01:12 IST
    • Published On April 16, 2017 01:12 IST
    • Last Updated On April 16, 2017 01:12 IST
कुछ दिनों पहले एक भाजपा नेता का बयान आया कि भारत के लोग दक्षिण भारतीयों के साथ रहते हैं (यानी केवल उत्तर भारतीय ही असल भारतीय हैं) इसलिए हम एक नस्ली देश नहीं हैं. मैं नोएडा में नाइजीरिया के छात्रों पर हुए हमले पर फिलहाल बात नहीं करूंगी क्योंकि जब यहां लोग अपने ही देश के सांवले लोगों को एक नजर से नहीं देखते तो वे तो दूसरे देश के हैं. खैर, मैं साफ करना चाहूंगी कि मैं मध्यभारत से हूं जिसे अपनी सहूलियत के हिसाब से उत्तर के लोग दक्षिण और दक्षिण के लोग उत्तर भारत का हिस्सा मान लेते हैं. जहां से भी हूं, मुद्दा यह है कि मैं सांवली हूं. मैं एक पढ़ी लिखी, सेल्फ डिपेंडेंट लड़की हूं, पर सांवली हूं. मेरे रंग से मुझे कोई परेशानी नहीं है लेकिन मैं सांवली हूं. मैं सांवला शब्द बार-बार इसलिए लिख रही हूं क्योंकि मैं अक्सर यह सुनती हूं, 'तेरा रंग थोड़ा और फेयर होता तो....'

मेरे साथ कई बार ऐसा हुआ जब मेरा सांवला होना मुझे खला, जब मुझे लगा कि मैं गोरी होती तो शायद... कितनी बार मैंने सोशल मीडिया पर वे तस्वीरें शेयर की हैं जिनमें मैं अन्य तस्वीरों की तुलना में अधिक गोरी लगती हूं. एक समय था जब मैं अपनी ज्यादातर तस्वीरें ब्लैक-एंड-व्हाइट में फिल्टर करके लगाती थी क्योंकि, यू नो उसमें पता नहीं चलता. आज जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं तो मुझे लगता है कि स्कूल-कॉलेज हर जगह अपनी प्रतिभा साबित करने के लिए मुझे मेरे गोरे दोस्तों से थोड़ी ज्यादा मेहनत करनी पड़ी. मैं अकेली नहीं थी और ऐसा नहीं है कि मेरे साथ कोई डिस्क्रिमिनेशन हुआ पर कुछ बातें लोगों के दिमाग में इतनी गहरी होती हैं कि अनजाने में ही उनकी बातों से आपको अपने अंदर कमी दिखने लगती है. आप अपने काम को लेकर, अपनी योजनाओं, अपनी पसंद-नापसंद को लेकर उतने कॉन्फिडेंट नहीं रह पाते जितना आपको होना चाहिए.

आज से तीन-चार साल पहले मैंने और मेरे घरवालों ने तय किया कि मेरी शादी की बात शुरू करनी चाहिए. शुरुआत में आपके रिश्तेदारों, अंकल-आंटियों से कहा जाता है कि कोई अच्छा लड़का हो आपकी नजर में तो बताना. इसी दौरान मेरे एक अंकल हमारे घर आए, उन्होंने मेरा बायोडाटा लिया. इस बायोडाटा में आपके जन्मदिन, क्वालिफिकेशन, प्रोफेशन और ऊंचाई के साथ-साथ आपका रंग भी लिखा जाता है. इसमें रंग में मैंने 'सांवला' लिखा था जिसके बाद करीब एक घंटे तक मेरे और उन अंकल के बीच इसी बात को लेकर डिस्कशन हुआ कि सांवला देखते ही लड़के वाले बिदक जाते हैं, तुम सांवली नहीं हो तुम्हारा रंग गेंहुआ है आदि-आदि. उस दिन मुझे काफी बुरा लगा था कि मुझे शादी के लिए अच्छा लड़का मिलना मेरे स्वभाव, मेरी पढ़ाई और मेरे प्रोफेशन से ज्यादा इस बात पर निर्भर करता है कि मैं गोरी हूं कि नहीं. इसके बाद कई मौके आए जब मेरे शुभचिंतकों ने मेरे रंग को साफ करने के घरेलू उपचार बताए हों.

सच कहूं तो मैंने कई सालों तक चेहरे पर मलाई लगाई है, कई बार भगवान से शिकायत की है कि मुझे मेरी मम्मी का रंग क्यों नहीं दिया? फेयरनेस फेसवॉश, फेयरनेस क्रीम का इस्तेमाल किया है, पर अब मुझे पता है कि इन सबसे कोई फर्क नहीं पड़ता. फर्क मुझे इस बात से भी नहीं पड़ता कि लोग मेरे रंग से मुझे पसंद-नापसंद करते हैं (उनका नुकसान). मेरे आसपास कई लोग हैं जिनके लिए सुंदर की परिभाषा गोरापन है, जो मुझे तसल्ली देते हैं कि तुम गोरी नहीं हो तो क्या हुआ स्मार्ट हो, सेल्फ डिपेंडेंट हो. पर मुझे इस बात से भी फर्क नहीं पड़ता है. मुझे पता है कि यह पढ़ने के बाद कई लोग मुझसे कहेंगे कि तुम सांवली नहीं हो... तुम्हारा रंग... पर छोड़ो, क्या फर्क पड़ता है.

लेकिन अपने रंग को लेकर खुद का विश्वास जीतने में मुझे काफी वक्त लगा. इन दिनों फेयरनेस क्रीम्स के विज्ञापनों पर बहस छिड़ी हुई है कि कैसे ये विज्ञापन एक सांवले व्यक्ति के आत्मविश्वास को कमजोर करते हैं, कैसे एक सांवला व्यक्ति सोचने लगता है कि वह अपने गोरे काउंटरपार्ट की तुलना में कम कैपेबल है. मैं जानती हूं कि मेरे जैसे कई लोग हैं जो इन विज्ञापनों का शिकार हुए हैं, जिन्होंने अपना रंग निखारने की कोशिशें की होंगी, महंगे ट्रीटमेंट लिए होंगे. इन विज्ञापनों के झूठ को उम्मीदों से खरीदा होगा, पर नतीजा सिफर ही रहा होगा.

जब अभय देओल ने फेसबुक पोस्ट के जरिए ऐसे विज्ञापनों की धज्जियां उड़ाईं तो मुझे लगा कोई मेरे मन की बात कह रहा है. जब मॉडल सोनल सहगल ने अपने एक पुराने फेयरनेस विज्ञापन के लिए माफी मांगी तो मुझे लगा कि गलत को सही करने के लिए कभी देर नहीं होती. तो अब भी देर नहीं हुई है, यह चीज़ हमारी मानसिकता में इस हद तक शामिल है कि शायद मैंने भी कभी न कभी किसी के रंग को लेकर टिप्पणी की होगी, उसके लिए मैं माफी मांगती हूं. और जिन्हें अब भी लगता है कि गोरापन ही सुंदरता है उन्हें मैं बता दूं, आप भी एक तरह के रेसिस्ट हैं', क्योंकि रेसिस्ट ही लोगों को उनकी चमड़ी के रंग से आंकते हैं, क्योंकि रेसिस्ट ही कहते हैं कि तुम सांवली हो पर सुंदर हो, क्योंकि जो रेसिस्ट नहीं है उसके लिए हर रंग खूबसूरत है.


(कुसुम लता एनडीटीवी खबर में सीनियर सब एडिटर हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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